छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों ने कई इलाको में देशी और परंपरागत हथियार बनाने के कारखाने खोल रखे हैं. ज्यादातर इलाको में कृषि औजारों के निर्माण की आड़ में रैम्बो तीर बनाने का गोरख धंधा चल रहा हैं. हालांकि महीने भर से सुरक्षा बलों के दबाव और औजारों के कारखानों में पुलिस के दबिश के चलते इनके निर्माण में कमी आयी हैं. आज तक और इंडिया टुडे की टीम ने बस्तर के उन गांव का जायजा लिया, जहां बेहद गोपनीय तरीके से रैम्बो तीर बनाने का काम जोरो पर हैं.
ज्यादातर घर कारखाने में तब्दील हो चुके हैं
बस्तर के सुकमा नारायणपुर और बीजापुर के कई ऐसे गांव हैं, जहां घरों में चोरी छिपे रैम्बो तीर बन रहे हैं. इस तरह के कारखाने खोलने की पहल नक्सलियों ने ही की हैं. इसके लिए बस्ती के कुछ एक घरो के कमरे को बतौर कारखाने की तरह इस्तेमाल किया जा रहा हैं. यह काम चोरी छिपे तो हो ही रहा है. यहाँ बनने वाले देशी हथियारों की खबर किसी को कानों कान नहीं हैं. चाहे स्थानीय ग्रामीण हो या फिर पुलिस और सुरक्षा बलों के लोग, उन्हें भनक भी नहीं है कि ग्रामीण इलाको के कई लोग नक्सलियों के दबाव और लालच के चक्कर में रैम्बो तीर बनाने के काम में जुटे हैं.
कैसे ग्रामीण बनते हैं रैम्बो तीर
नक्सलियों के दल में हथियारों और गोलियों की कमी के कारण ग्रामीणों को इन दिनों रैम्बो तीर बनाने का काम मिल गया हैं. रैम्बो तीर के सामने के हिस्से में ग्रेनेट शेल जैसा मेकेनिज्म होता हैं. इस शेल को अल्युमिनियम और लोहे की बॉडी से तैयार किया जाता हैं. शेल के सामने के हिस्से में बारूद और छर्रे भरे जाते हैं. जब ये सुरक्षा बलों के शरीर से टकराता है तो सर्किट मेकेनिज्म पूरा होता है और विस्फोट हो जाता हैं. विस्फोट के दौरान रैम्बो शेल के सामने के हिस्से में भरे हुए छर्रे सुरक्षा बलों के शरीर को जख़्मी कर देते है. जवानों के घायल होते ही नक्सलियों उन पर गोलियों की बौछार कर देते है. गांव के कुछ एक घरों में रौट आयरन, बेल मेटल और लोहारी के काम के ठिकाने मिले. ज्यादातर लोगो ने इस बात से इंकार क्या कि उनके यहां रैम्बो तीर बनाने का काम भी होता है. लेकिन जानकारों की मानें तो बंदूक की नोक पर नक्सली इन लोगो से रैम्बो तीर बनवाते है. एक दिन में कारीगर 15 से 20 रैम्बो तीर बना पाते है. लोहे को नरम कर रैम्बो तीर की शक्ल दी जाती है. इसके लिए बेहद अधिक तपमान में लोहे की छड़ो और पाइप को गलाया जाता है. इसके सामने के हिस्से को पोला रखा जाता है, ताकि उसमे बारूद और लोहे के छर्रे भरे जा सके. इन कारखानों में सिर्फ रैम्बो तीर तैयार किये जाते हैं. इसमें बारूद और छर्रे भरने का काम नक्सली करते है. रैम्बो तीर तैयार करने के लिए हुनरमंद ग्रामीण को प्रति दिन ढाई सौर रूपये बतौर पारिश्रमिक मिलता है.
जवानों के खिलाफ रैम्बो तीर का करते है इस्तेमाल
पहले सुकमा के भेज्जी में 11 मार्च 2017 को CRPF के जवानो पर नक्सलियों ने घात लगा के हमला किया था. नक्सलियों ने इस हमले में AK 47, इंसास रायफल और देशी बंदूकों से गोलीबारी की. लेकिन बाद में पता चला की नक्सलियों ने इस दौरान रेम्बो तीर का भी इस्तेमाल किया था. आमतौर पर तीर कमान के जरिये भी नक्सलियों ने कई मौको पर सुरक्षा बलों को नुक्सान पहुंचाया है. लेकिन ये पहला मौका था जब सुरक्षा बलों पर हमले के लिए नक्सलियों ने रैम्बो तीर का इस्तेमाल किया. इसके बाद लगातार हमलों में रैम्बो तीर का इस्तेमाल हो रहा हैं.
CRPF ने भी कमर कस ली है
फिलहाल रैम्बो तीर के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने भी कमर कस ली है. गांव कस्बों में संदेहास्पद घरों की तलाशी ली जा रही है, तो कहीं कृषि औजार बनाने वाले ठिकानों में भी दबिश दी जा रही है. इसके चलते रैम्बो तीर बनाने का काम दिनों दिन ठप पड़ रहा हैं.