
छत्तीसगढ़ में अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस ने नया दांव चल दिया है. कांग्रेस ने टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाने का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर हुई बैठक में सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाने का फैसला लिया गया. इसकी जानकारी कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने ट्वीट कर दी. छत्तीसगढ़ में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं. सवाल है कि इस बदलाव से कांग्रेस और खुद टीएस सिंहदेव को क्या हासिल हुआ?
सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाने के पीछे वजह क्या?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि कोई भी पार्टी अंतर्कलह, गुटबाजी जैसी चीजों के साथ चुनाव में नहीं उतरना चाहती. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को फिलहाल अपनी स्थिति ठीक नजर आ रही है. पार्टी नहीं चाहती कि सरकार बचाने की उसकी संभावनाएं केवल बघेल-सिंहदेव की गुटबाजी के कारण धूमिल हों.
वैसे छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों की अंतर्कलह कांग्रेस नेतृत्व की साख पर बट्टा लगा रही थीं. सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाकर कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश इकाइयों को, अलग-अलग राज्यों के मजबूत नेताओं को संदेश भी दिया है. तिवारी कहते हैं कि संदेश साफ है कि नेतृत्व जब चाहे, जिसे चाहे, जहां चाहे, कुर्सी पर बैठा भी सकता है और हटा भी सकता है.
डिप्टी सीएम पद पर कैसे मान गए सिंहदेव
टीएस सिंहदेव 2018 चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनने की रेस में भी थे. वे भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली अपनी ही सरकार के खिलाफ भी मुखर रहे. ढाई-ढाई साल के चर्चित फॉर्मूले को लेकर सिंहदेव खेमे की ओर से लगातार संकेत दिए जाते रहे. सिंहदेव ने तीन साल पहले जब ढाई-ढाई साल के सीएम फॉर्मूले को लेकर बहस तेज थी, तब कहा था कि मुख्यमंत्री दो दिन के भी हुए हैं और 15 साल के भी. आलाकमान जब-जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना और हटा सकता है.
फिर सिंहदेव डिप्टी सीएम पद पर कैसे मान गए? इस पर अमिताभ तिवारी कहते हैं कि 70 साल के टीएस सिंहदेव मंझे हुए राजनेता हैं. उनको शायद ये लगा हो कि अगर कांग्रेस चुनाव जीतकर सत्ता बचा ले जाती है तो भूपेश बघेल और मजबूत हो जाएंगे. इसके बाद उनकी पार्टी पर पकड़ और सियासत, दोनों ही कमजोर पड़ सकते हैं. ऐसे में जहां बस सामान्य मंत्री हैं, डिप्टी सीएम की सेरेमोनियल कुर्सी भी सही. कम से कम सरकार में नंबर दो होने का संदेश तो चला जाएगा. समर्थक भी खुश और मान भी रह गया.
कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी हैं सिंहदेव
सरगुजा के राज परिवार से आने वाले टीएस सिंहदेव के सहारे पार्टी की रणनीति सरगुजा संभाग के छह जिलों की कुल 14 विधानसभा सीटों का समीकरण साधने की भी है. नौ आदिवासी सीटों समेत ये सभी 14 सीटें इस समय कांग्रेस के कब्जे में हैं. कांग्रेस सरगुजा संभाग की सीटों पर अपनी पकड़ किसी भी तरह से कमजोर नहीं होने देना चाहती. दूसरा फैक्टर आदिवासी वोट भी हैं. सरगुजा की नौ सीटें मिलाकर छत्तीसगढ़ में कुल 29 आदिवासी सीटें हैं.
टीएस सिंहदेव की गिनती ऐसे नेताओं में होती है जो आदिवासी समुदाय के बीच अच्छी पैठ रखते हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम पहले ही सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस सिंहदेव को नाराज करने का रिस्क नहीं लेना चाहती.
ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले की पूरी कहानी क्या है
छत्तीसगढ़ में 15 साल तक विपक्ष में रहने के बाद कांग्रेस ने 90 में से 67 विधानसभा सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी. विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बात सरकार का नेतृत्व कौन करेगा पर आई. तब चार नाम रेस में थे- ओबीसी कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू, छत्तीसगढ़ कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और चरणदास महंत.
छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री चुनने के लिए दिल्ली में बैठकों का दौर शुरू हुआ. कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने चारों नेताओं को दिल्ली बुलाया. चरणदास महंत पहली ही बैठक में मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर हो गए. वे विधानसभा स्पीकर बनाए जाने की बात पर मान गए.
कहा जाता है कि आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद के लिए ताम्रध्वज साहू के नाम पर मुहर लगा दी थी लेकिन बघेल और सिंहदेव ने एकसुर से साफ कह दिया कि अगर उनको सीएम बनाया जाता है तो वे मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होंगे. शुरुआत में ही सिरफुटौव्वल न हो जाए, इस डर से आलाकमान को फैसला बदलना पड़ा और बात बघेल और सिंहदेव के नाम पर आकर अटक गई.
दोनों में से कोई नेता मुख्यमंत्री पद से कम पर मानने को तैयार नहीं था. मान-मनौव्वल के लंबे दौर के बाद कहा जाता है कि दोनों नेताओं के बीच पावर बैलेंस का फॉर्मूला निकला ढाई-ढाई साल का कार्यकाल. सहमति बनी कि शुरुआती ढाई साल भूपेश बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे और बाद के ढाई साल सिंहदेव सरकार का नेतृत्व करेंगे. हालांकि आधिकारिक रूप से न तो कभी कांग्रेस की ओर से और न ही किसी बड़े नेता की ओर से इसपर कुछ सार्वजनिक रूप से कहा गया.