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छत्तीसगढ़: दो दर्जन डॉक्टरों पर लटकी बर्खास्तगी की तलवार

मेडिकल एक्ट के इसी नियम के तहत दो दर्जन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. यानी अब नियम कायदों को हवा में उड़ाना डॉक्टरों के बूते नहीं होगा.

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डॉक्टरों पर सख्ती हुई छत्तीसगढ़ सरकार
डॉक्टरों पर सख्ती हुई छत्तीसगढ़ सरकार

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डॉक्टरों की कमी से जूझ रही छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के मेडिकल कॉलेजों से पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले डॉक्टरों को राज्य के सरकारी अस्पतालों में दो वर्ष तक अपनी सेवाएं देना अनिवार्य कर दिया है. ऐसा नहीं करने वाले डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने का प्रावधान किया गया है. छत्तीसगढ़ में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई करने वाले डॉक्टरों की सेवाओं को लेकर राज्य सरकार पहली बार सख्ती से पेश आ रही है. इसके लिए डेड़ साल पहले राज्य के मेडिकल एक्ट में किए गए संशोधन का बतौर हथियार प्रयोग हो रहा है. मेडिकल एक्ट के इसी नियम के तहत दो दर्जन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. यानी अब नियम कायदों को हवा में उड़ाना डॉक्टरों के बूते नहीं होगा.

डॉक्टरी की पढ़ाई में राज्य सरकार लाखों रुपये खर्च करती है. सरकारी मेडिकल कॉलेजो में पढ़ाई की फीस के अलावा कई तरह की सेवाएं रियायती दरों पर डॉक्टरों को मुहैया कराई जाती है. सिर्फ इस अपेक्षा में की इन मेडिकल कॉलेजों से डिग्री लेकर निकले डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में भी अपनी सेवाएं देने में दिलचस्पी दिखाएंगे . लेकिन ऐसा होता नहीं है. डिग्री लेने के बाद ज्यादातर डॉक्टर प्राइवेट अस्पतालों या फिर निजी प्रैक्टिस में ज्यादा ध्यान देते हैं.

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मामला सरकारी सेवा के लिए बॉन्ड भरने के बावजूद वादाखिलाफी का है. लिहाजा आरोपी डॉक्टरों का मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से रजिस्ट्रेशन सस्पेंड कर दिया गया है. स्वास्थ्य विभाग ने सभी डॉक्टरों को चार जनवरी को नोटिस जारी कर 15 दिनों के भीतर सरकारी अस्पतालों में अपनी आमद दर्ज करने के निर्देश दिए थे. इन सभी डॉक्टरों ने इन रायपुर के पंडित जवाहरलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएशन किया था. सभी डॉक्टरों को अच्छे खासे वेतनमान पर नियमानुसार राज्य के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में नियुक्ति दे दी गई थी. लेकिन किसी भी डॉक्टर ने अपनी ज्वाइनिंग नहीं दी, बल्कि सभी निजी प्रैक्टिस में जुट गए . आरोपी डॉक्टर नेत्र रोग विशेषज्ञ, रेडियो डायग्नोसिस, सर्जरी, मेडिसिन, पेड्रिऐटिक्स, एनस्थेसिया और ऑर्थोपैडिक सर्जन हैं.

स्वास्थ्य संचालक आर प्रसन्ना के मुताबिक सभी डॉक्टरों की बर्खास्तगी की तैयारी कर ली गई है. इन सभी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी. फिलहाल सभी का मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से रजिस्ट्रेशन सस्पेंड कर दिया गया है.

डॉक्टरों के खिलाफ कड़ा रुख अख्तियार करने के बाद राज्य के तमाम मेडिकल कॉलेजों में हड़कंप मच गया है. स्वास्थ्य शिक्षा पर राज्य सरकार सालाना करोड़ों रुपये खर्च करती है. निजी मेडिकल कॉलेजो में फीस और सुविधाओं को लेकर जूनियर डॉक्टरों को लाखों रुपये खर्च करने होते हैं, जबकि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रियायती दरों में डॉक्टर अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं.

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