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दंतेवाड़ा के इस इलाके में पानी की टंकी बना कर पाइप लाइन बिछाना भूल गए अधिकारी

इस गांव में पानी मुहैया कराने के लिए सरकार ने 48 लाख रुपये खर्च करके इस पानी की टंकी को बनवाया था, लेकिन वर्ष 2014 के आखिरी महीने में तैयार हुई इस पानी की टंकी में आज तक पानी नहीं भरा जा सका, इसका कारण है कि यहां पाइप लाइन ही नहीं बिछ पाई.

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पानी की टंकी
पानी की टंकी

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छत्तीसगढ़ के बस्तर के मोंगपाल गांव में पानी की टंकी बने ढाई साल से ज्यादा वक्त बीत गया है, लेकिन ढाई साल बाद भी पानी की लाइन नहीं बिछी है. नतीजतन लोगों को दूर दराज के इलाकों से पानी भरना पड़ रहा है. लेकिन ये पानी की टंकी उनके बड़े काम आ रही है क्योंकि इलाके में मोबाइल नेटवर्क नहीं है, लिहाजा इस टंकी पर चढ़ कर लोग मोबाइल नेटवर्क पाते हैं. जिस किसी को भी मोबाइल से बात करनी होती है, वो इस टंकी पर चढ़ जाता है, फिर बातचीत में मगन हो जाता है.

पानी की टंकी पर नेटवर्क खोजते लोग
बस्तर में दंतेवाड़ा से 33 किलोमीटर दूर मोंगपाल गांव का नजारा देखने लायक होता है. सुबह से ही लोग पानी की टंकी पर चढ़ जाते हैं. फिर कवायद शुरू होती है मोबाइल नेटवर्क ढूंढने की. इस टंकी पर चढ़ने के लिए लोगों का दिन भर तांता लगा रहता है. पानी टंकी के ऊपरी हिस्से पर घंटों लोग बात करते रहते हैं. जब पहली पारी में चढ़े लोगों की बात पूरी हो जाती है, तो ऊपर चढ़ने का इंतजार कर रहे दूसरी पारी के लोग अपने दोस्तों और नाते रिश्तेदारों से बातचीत करते हैं. इस गांव में किसी के भी घर टेलीफोन नहीं है. पूरी आबादी मोबाइल के जरिए संचार व्यवस्था से जुड़ी हुई है. अगर टंकी पर नहीं चढ़े तो मोबाइल नेटवर्क का मुहैया होना संभव नहीं होता. यही नहीं इस गांव से लगभग 33 किलोमीटर दूर तक जाने के बाद ही मोबाइल नेटवर्क मिलता है.

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पाइप लाइन के लिए बजट स्वीकृत नहीं हुआ
इस गांव में पानी मुहैया कराने के लिए सरकार ने 48 लाख रुपये खर्च करके इस पानी की टंकी को बनवाया था, लेकिन वर्ष 2014 के आखिरी महीने में तैयार हुई इस पानी की टंकी में आज तक पानी नहीं भरा जा सका, इसका कारण है कि यहां पाइप लाइन ही नहीं बिछ पाई. अफसरों ने पानी की टंकी बनाने में खूब दिलचस्पी दिखाई, लेकिन जब बारी पाइप लाइन बिछाने की आई तो मोंगपाल गांव से मुंह मोड़ लिया. बताया गया कि इसके लिए बजट ही स्वीकृत नहीं हुआ. साल दर साल दो साल से ज्यादा का वक्त बीत गया. गांव के सरपंच से लेकर प्रधान तक ने सभी कलेक्टर दफ्तर में गुहार लगाई, तो कभी पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग विभाग के चक्कर काटे, लेकिन बात नहीं बनी. आखिरकर ग्रामीणों ने इसका नया उपयोग करना शुरू कर दिया.

मोबाइल टावर को नष्ट कर देते हैं नक्सली
मोंगपाल गांव की आबादी साढ़े बारह सौ है. ये इलाका पूरी तरह से नक्सल प्रभावित है. बीएसएनएल ने यहां अपना मोबाइल टावर लगाया था, लेकिन इसे नक्सलियों ने उड़ा दिया. बीते पांच वर्षों में यहां तीन बार मोबाइल टावर लगाया गया, लेकिन तीनों ही बार नक्सलियों ने इसे ध्वस्त कर दिया. बस्तर के DIG का कहना है कि पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बल हर कोशिश में लगे रहते हैं कि लोगों को बेहतर मोबाइल कनेक्टिविटी मिले, लेकिन नक्सली उनके अरमानों पर पानी फेर देते हैं.

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बस्तर का दंतेवाड़ा हो या सुकमा, फिर नारायणपुर हो या बीजापुर. नक्सली कहीं पर भी मोबाइल नेटवर्क नहीं चाहते. मोबाइल टावरों को नुकसान पहुंचने के चलते कोई भी निजी मोबाइल कंपनी यहां अपने टावर नहीं लगाती. इस इलाके की एक बड़ी आबादी को जितनी पानी की जरूरत है, उतनी ही मोबाइल नेटवर्क की. ताकि वे भी संचार सुविधाओं का फायदा उठा सकें.

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