काफिले की एक कार लैंडमाइन फटने से उड़ गई. सड़क उखड़ी, कार के पुर्जे उड़े. और काफिला रुक गया. इसमें थे कांग्रेस के तमाम राज्य स्तर के नेता. नक्सली आए और फायरिंग के बाद सबसे पहले महेंद्र कर्मा को ललकारा. कर्मा हाथ ऊपर किए बाहर आए.
ये 25 मई को बस्तर में हुए नक्सली हमले का पहला सच है. जिसकी सब तस्दीक करते हैं. हालिया खबरों की मानें तो नक्सली जब कर्मा को घसीटकर अपने साथ ले गए, तो उन्हें मारने से पहले जनअदालत चलाने का ड्रामा हुआ. इसमें कर्मा को ‘बस्तर टाइगर’ कहा गया, उनके खिलाफ सलवा जुडूम शुरू करने जैसे आरोप लगे और फिर कोई आखिरी विश पूछने के साथ ही गोलियों, गालियों और चाकुओं की बौछार तेज हो गई.
कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और पूर्व विधायक मुदलियार समेत कुल 28 लोग शहीद हुए. वे चुप हो गए, मगर लोकतंत्र में उनकी आस्था गूंजने लगी. नक्सली इलाका होने के बावजूद चुनावी बरस में जोर शोर से आदिवासियों तक पहुंचने की कोशिश. परिवर्तन यात्रा के जरिए. ऐसी ही कोशिश में सत्तारूढ़ बीजेपी भी लगी थी, विकास यात्रा के जरिए.
मगर ‘बस्तर टाइगर’ और दूसरे कांग्रेसी नेताओं की मौत के बाद ये सब थम सा गया. तमाम व्हाइट कुर्ता पाजामी धारी टाइगर मैदान में आ गए गुर्राने एक दूसरे पर. और शुरू हो गया सिलसिला बेहिसाब, अश्लीलता की हद तक गैरजिम्मेदाराना बयानों का.
शुरुआत की छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और कभी सोनिया दरबार के बेहद खास रहे अजीत जोगी ने. स्वास्थ्य कारणों के चलते व्हील चेयर पर सवार जोगी ने आव देखा न ताव, रोते रोते रमन सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर दी. अभी हमले को 12 घंटे भी नहीं हुए थे और हर कोई फौरी उपायों में जुटा था, जोगी मीडिया अटेंशन का ये मौका, जो बरसों बाद हाथ लगा था, गंवाना नहीं चाहते थे. कोशिश ये भी थी कि जो हायतौबा मच रही है कि कांग्रेस की स्टेट लीडरशिप खत्म हो गई, उसके थमने के बाद ध्यान जोगी पर ठहर जाए.
जोगी के बाद राज्य से मनमोहन की मंत्री परिषद में जगह पाए चरणदास महंत समेत कई कांग्रेसी नेता राज्य सरकार की लापरवाही पर पिल पड़े. शुरुआती चुप्पी के बाद बीजेपी भी बेसिर पैर बयानों के समर में कूद पड़ी. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर तो यहां तक बोल गए कि जोगी के घड़ियाली आंसू बता रहे हैं कि हमले में उनका भी हाथ है. उन्होंने कहा कि रमन सरकार पर आरोप इसीलिए लगाए जा रहे हैं क्योंकि जोगी की पोल खुलने वाली है.
बयानों को साजिश के संदर्भों से जोड़ते हुए स्टेट बीजेपी प्रवक्ता बोले कि नक्सलियों की पकड़ में आने के बाद भी जिंदा बच गए कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा का नारको टेस्ट होना चाहिए. उन्होंने यात्रा में महंत, विपक्ष के नेता रविंद्र चौबे और जोगी के न होने पर भी सवाल उठाया. इस पर कांग्रेस प्रवक्ता बोले कि टेस्ट तो सीएम और उनके अधिकारियों का होना चाहिए. उन्होंने कहा कि बीजेपी दुखी लग रही है कि महंत और चौबे कैसे बच गए.
और इन सबके बाद जब सोमवार सुबह खबर आई की एनआईए की जांच से पता चला है कि कांग्रेस के ही चार नेताओं ने मुखबिरी की थी, तो बीजेपी वाले नए सिरे से आस्तीन चढ़ाने में जुट गए हैं. इस खुलासे के बाद कांग्रेस की सिंपैथी स्ट्रैटिजी भी फ्लॉप होती नजर आ रही है. इन नेताओं की मौत के बाद राज्य कांग्रेस हर जिला मुख्यालय में रैली करना चाह रही थी. अब क्या गला फाड़ेंगे वहां ये नेता.
हमारे आपके यानी जनता के लिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये कैसा लोकतंत्र है, कितना परिपक्व लोकतंत्र है, जिसके नेता एक हिंसक हमले के बाद न तो जांच रिपोर्ट का इंतजार करते हैं, न न्यायिक कमीशन का इंतजार करते हैं. आपात हालत में भी बस इस्तीफा दो जैसे रटे नारे दोहराने लगते हैं और आगे की चुनावी संभावनाओं के गुणाभाग में जुट जाते हैं.
जो मर गया वो ‘बस्तर टाइगर’ था. जो बोल रहे हैं वे व्हाइट टाइगर हैं, मगर दमखम वाले नहीं. ये सब वर्बल डायरिया के शिकार हैं. क्या है इनका इलाज. आप ही बताइए.
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