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नर्सरी दाखिले पर हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

दिल्ली हाई कोर्ट ने उन दो सरकारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली जनहित वाली याचिका पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिनमें गैर सहायताप्राप्त विद्यालयों को नर्सरी कक्षा में दाखिले के लिए अपना मापदंड तय करने का अधिकार प्रदान किया गया है.

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दिल्ली हाई कोर्ट ने उन दो सरकारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली जनहित वाली याचिका पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिनमें गैर सहायताप्राप्त विद्यालयों को नर्सरी कक्षा में दाखिले के लिए अपना मापदंड तय करने का अधिकार प्रदान किया गया है.

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मुख्य न्यायाधीश डी मुरूगेसन एवं न्यायमूर्ति वी के जैन की पीठ ने गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों के परिसंघ के वकील के अपनी दलील खत्म करने के बाद कहा, ‘हम इस याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखते हैं. संबंधित पक्ष दो दिन में लिखित संक्षिप्त ब्योरा दे सकते हैं.’

तीन सौ 80 से अधिक गैर सहायताप्राप्त विद्यालयों के इस परिसंघ की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ वकील एन के कौल ने कहा, ‘निजी विद्यालयों के लिए उच्चतम न्यायालय तय अधिकतम स्वायत्ता के सिद्धांत को खत्म करने के प्रयास के व्यापक परिणाम होंगे.’ विभिन्न्न कानूनों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जहां तक दाखिला प्रक्रिया की बात है तो निजी विद्यालयों को फरमान के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता और सबसे बड़ी बात है कि उनके द्वारा तय नामांकन मापदंड तर्कसंगत होना चाहिए.

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दाखिले को इच्छुक एक बच्चे के माता-पिता की ओर से एक अन्य वरिष्ठ वकील ने कहा, ‘शिक्षा का मौलिक अधिकार निजी विद्यालयों पर नहीं थोपा जा सकता क्योंकि यह राज्य और उसके अंगों के लिए बाध्यकारी है. शिक्षा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है.’

अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, ‘हम अधिसूचनाओं की संवैधानिक वैधता का परीक्षण कर रहे हैं जो आपको (विद्यालयों को) मापदंड तय करने का अधिकार प्रदान प्रदान करती हैं. इस मामले में हमारी नजर इस बात पर भी है कि शिक्षा का अधिकार कानून यहां लागू होगा या नहीं.’

अदालत पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि जनहित याचिका पर उसका फैसला वर्ष 2013-14 के लिए नर्सरी के दाखिल पर भी असर डालेगा. अदालत मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय की ओर से जारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाले गैर सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है.

पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय के लिए पेश होते हुए अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल राजीव मेहरा ने कहा था कि इस कानून में कहा गया है कि छह से 14 साल के बच्चे उसके अंतर्गत आएंगे. उन्होंने कहा कि सरकार से निर्देश मिलने के बाद वह सारांश दाखिल करेंगे.

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सोशल ज्यूरिस्ट के वकील अशोक अग्रवाल ने कहा, ‘यह बड़ी विचित्र बात है. यदि नर्सरी दाखिले की प्रक्रिया नियमबद्ध नहीं की गयी जो इस कानून का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा क्योंकि जबतक गरीब बच्चे छह साल के होंगे तबतक तो सीटें भर जाएंगी.’

अदालत ने पहले कहा था कि यदि हर गैरसहायताप्राप्त निजी विद्यालय को अपना दाखिला मापदंड तैयार करने दिया गया तब यह बिना किसी निर्देश वाली आजादी या अधिकार होगा और इससे बच्चों के खिलाफ भेदभाव होगा.

जनहित याचिका में आरोप लगाया है कि दो अधिसूचनाओं में सभी गैर सहायताप्राप्त निजी विद्यालयों को बच्चों के वर्गीकरण के आधार पर अपना दाखिला मापदंड तैयार करने के लिए पूरी छूट दे दी गयी है.

याचिका में कहा गया है कि लेकिन दाखिले में बच्चों के वर्गीकरण की बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून अनुमति नहीं देता. कुछ विद्यालय धर्म, पूर्व छात्र, भाई भाई, भाई-बहन आदि के आधार पर दाखिले को वरीयता देते हैं.

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