देश की राजधानी दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके में साल 2016 में हुए मर्सिडीज कार हादसे के आरोपी को जेल नहीं भेजा जाएगा. आरोपी को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत नाबालिग के तौर पर ट्रीट किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के फैसले को सही बताया है.
हादसे के वक्त आरोपी के बालिग होने में कम थे 4 दिन
दरअसल, साल 2016 में कार की तेज रफ्तार की वजह से एक शख्स की मौत हो गई थी. जब यह हादसा हुआ था तो आरोपी कार ड्राइवर 18 साल यानी बालिग होने की उम्र से 4 दिन छोटा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस वक्त आरोपी की उम्र 18 साल से कम थी. इसलिए कानून के मुताबिक उसे नाबालिग के तौर ही माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि युवक जेल में नहीं रहेगा. उसे जुवेनाइल यानी नाबालिग के तौर पर दोषी पाया गया है.
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम कानून में बदलाव नहीं कर सकते. कानूनी प्रावधान स्पष्ट है, हम कानून में बंधे हुए हैं इसलिए जघन्य अपराध के बावजूद भी हम जेल की सजा नहीं सुना सकते. बता दें कि 5 अप्रैल 2016 को तेज रफ्तार के कहर में बिजनेसमैन सिद्धार्थ मित्तल की मौत हो गई थी. आरोपी युवक दुर्घटना के सिर्फ 4 दिन बाद ही 18 साल का यानी बालिग हुआ.
Remember this horrifying hit & run in Delhi in 2016 that killed one Sidharth Sharma? Driver of Mercedes was 4 days short of 18th bday. And today, Supreme Court rules he will be tried as a juvenile. No prison, nothing. Son of businessman Manoj Aggarwal. pic.twitter.com/ouB6lV1t8o
— Shiv Aroor (@ShivAroor) January 9, 2020
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में सुधार की जरूरत
वकील सिद्धार्थ लूथरा ने सुप्रीम कोर्ट ने कानून में संशोधन की सलाह देते हुए कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में सुधार की जरूरत है. उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उन अपराधों से कैसे निपटा जाए, जहां न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह ऐसा मामला है जो जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है.
कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट परिजन
वहीं, पीड़ित परिवार सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट है. हादसे में मरने वाले सिद्धार्थ की बहन शिल्पा मित्तल ने इंडिया टुडे से खास बातचीत में कहा, कोर्ट के फैसले ने साफ कर दिया है कि एक सामान्य व्यक्ति के जीवन का कोई मूल्य नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट से भी हमें न्याय ना मिले तो हम कहां जाएं. मित्तल ने कहा, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कानून में खामियां हैं, लेकिन अदालत उसमें बदलाव या दखलअंदाजी नहीं कर सकती.