दिल्ली सरकार और नगर निगम के स्कूलों में टीचर्स के 50 फीसदी पद खाली होने पर हाई कोर्ट ने हैरानी जताई है. हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और निगम पर सवाल उठाते हुए कहा कि शिक्षा मद में जारी बजट आखिर जा कहां रहा है. ये बड़े चौंकाने वाली बात है कि सरकारी स्कूलों में इतनी बड़ी संख्या में टीचर्स ही नहीं हैं.
कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रशासन ने कई वर्षों से किसी टीचर को रखा ही नहीं है. पूरा सिस्टम ही ध्वस्त है. आप केवल आधे स्टाफ से काम कर रहें हैं. उन टीचर्स पर काम का कितना अधिक दबाव होगा. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कहा कि वह जल्द डीएसएसएसबी (दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड ) के माध्यम से टीचर्स की भर्ती शुरू करें. कोर्ट ने दिल्ली सरकार और तीनों नगर निगम (दक्षिण, उत्तरी, पूर्वी) को इस जन हित याचिका पर नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 8 दिसंबर को होगी.
मामले में सोशल ज्यूरिस्ट संस्था ने जनहित याचिका दायर की है. याचिकाकर्ता के वकील अशोक अग्रवाल ने कोर्ट को बताया कि 2001 में हाई कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने आदेश दिया था कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक का एक भी पद खाली नहीं होना चाहिए. लेकिन बावजूद इसके राजधानी के सरकारी स्कूल में बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं. अशोक अग्रवाल ने दावा किया है कि दिल्ली सरकार और तीनों नगर निगम स्कूलों में इस समय टीचर्स के करीब 26 हजार (सरकार द्वारा निकाले 9 हजार पद के अलावा) पद रिक्त हैं जो कुल शिक्षकों का 50 फीसदी है. आंकड़े बताते हुए याचीकाकर्ता का दावा है कि तकरीबन 1977 स्कूलों में 2,50,591 बच्चे पढ़ते हैं. जिससे उन्हें परेशानी हो रही है. ये छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन है.
इसके आलावा 80 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं है, जो प्रिंसिपल हैं उन्हें यह कहकर की उनका पद लॉ ऑफिसर में तब्दील कर दिया गया है, कोर्ट के कामकाज में लगा रखा है. वहीं, सरकार और डीएसएसएसबी के वकील ने कहा कि विशेष शिक्षकों के पद के लिए विज्ञापन निकाला गया है, जो लोग आए थे उनमें से केवल 89 लोग ही योग्य मिलें हैं, जिन्होंने पढ़ाना शुरू भी कर दिया है.