दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों का औपचारिक ऐलान अभी तक भले न हुआ हो, लेकिन सभी दलों ने शतरंज की बिसात पर अपने-अपने मोहरे चलने शुरू कर दिए हैं. चुनाव आयोग जनवरी के पहले सप्ताह में तारीखों का ऐलान कर सकता है. बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है. दूसरी ओर 'आप' भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है.
पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल हर दांव आजमा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि मुकाबला बीजेपी और आप के बीच होगा, लेकिन चुनाव फिर चुनाव होता है, बाजी पलट भी सकती है. कांग्रेस कुछ चौंकाने वाले कदम उठाने का मन बना रही है.
देखना रोचक होगा कि इस बार भी जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा या फिर देश की सबसे पुरानी पार्टी खोया वजूद पाने में कामयाब रहेगी. आइए जानते हैं कि दिल्ली के चुनावी दंगल में A- 'आप', B-बीजेपी और C-कांग्रेस की रणनीति क्या है और किस सीट पर क्या समीकरण हैं जातिगत.
A- 'आप' की रणनीति
- माफी, 49 दिन का भूत छुड़ाने के लिए. गलती तो हुई जी
- मोदी पर सीधा हमला नहीं. आप कह रही है, दिल्ली में मोदीजी सीएम नहीं बन सकते. दिल्ली में केजरीवाल केंद्र में मोदी टाइप के जुमले भी 'आप' की जुबान पर हैं
- 'आप' ने चुनाव से ठीक पहले SC/ST विंग की शुरुआत की है. पिछले चुनाव में 12 सीटें SC के लिए रिजर्व थीं, इनमें से 9 सीटों पर 'आप' ने जीत दर्ज की थी
-'आप' ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 'गली प्रभारी' बनाए हैं. पार्टी ने हर वॉलिंटयर को 25 घरों से सपोर्ट मांगने की जिम्मेदारी सौंपी है
-ऑटो रिक्शा 'आप' की रणनीति में इस बार भी बेहद अहम हैं. पार्टी ने ऑटो वालों को प्रश्नतालिका दी हैं, जिससे वे पैंसेजर का फीड बैक ले सकें
-युवाओं को लुभाने के लिए टीम बनाई गइ है, जिसका नाम रखा गया है 'प्ले फॉर चेंज'. यह टीम नुक्कड़ नाटक के जरिये युवाओं से सपोर्ट मांगेगी
B-बीजेपी की रणनीति
- मोदी बनाम अदर्स का नारा
- हर्षवर्धन का मंत्रालय हलका किया गया है. ऐसे में पार्टी उन्हें ट्रंप कार्ड के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है.
- किरण बेदी या स्मृति ईरानी जैसा कोई सरप्राइज महिला नेता सामने लाने पर पार्टी विचार कर रही है
- नेताओं की फौज. दिल्ली चुनाव प्रचार में 200 से ज्यादा सांसदों की तैनाती. बीजेपी को पता है कि अगर यहां केजरीवाल मोदी लहर के बावजूद जीत गए तो वह मोदी विरोधी मोर्चे की धुरी बन सकते हैं
-'आप' छोड़कर बीजेपी में आए नेताओं को चुनाव प्रचार में आगे रखकर केजरीवाल को नुकसान पहुंचाने का प्रयास
C-कांग्रेस की रणनीति
-अब इससे बुरा और क्या होगा, कांग्रेस इस बार खुलकर रिस्क ले सकती है
-सरकार वही जो काम करके दिखाए. शीला सरकार की इन्फ्रास्ट्रक्चर वाली उपलब्धियां
-सरप्राइज नाम. वरिष्ठ नेता भी उतर सकते हैं मैदान में
-बिजली के बिल में बढ़ोतरी जैसे मुद्दे
-पार्टी 20 से 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल सकती है
-प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बेटी लतिका भी चुनाव मैदान में उतर सकती हैं
-कांग्रेस शीला दीक्षित कांग्रेस की ओर से सरप्राइज पैकेज हो सकती हैं. वह स्टार प्रचारक होंगी, यह खबर पुष्ट हो चली है, अब देखना होगा चुनाव लड़ती हैं या नहीं?
जातिगत समीकरण
-गुर्जर वोटर : बदरपुर, तुगलकाबाद, संगम विहार, गोंडा, करावल नगर, ओखला
-सिख वोटर: मोती नगी, तिलक नगर, विश्वास नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा, हरी नगर, तिमारपुर
-वैश्य वोटर : सदर, चांदनी चौक, शालीमार बाग, रोहिणी, शकूर बस्ती और मॉडल टाउन
-जाट वोटर: यह क्षेत्र जाट बहुल माना जाता है, यहां पर महरौली, मुंडका, रिठाला, नांगलोई, मटियाला, नजफगढ़ और बिजवासन
किसके, कितने वोट
-दिल्ली में 15 प्रतिशत वोटर मुसलमान हैं
-70 में से कुल 11 सीटों पर मुसलमान वोटरों का प्रभाव है
-2013 विधानसभा चुनाव में 12 सीटें ऐसी रहीं, जहां हार-जीत का फैसला सिर्फ 2000 या इससे कम वोट मार्जिन से हुआ
-दिल्ली में हिंदू वोटरों की बात करें तो यह जाट, गुर्जर, वैश्य आदि में बंटा हुआ है. यहां 10 प्रतिशत वोटर जाट हैं, जबकि गुर्जर वोटर सात प्रतिशत हैं. अनुसूचित जाति समुदाय 17 प्रतिशत और 9 प्रतिशत पंजाबी वोट हैं, इनमें 4 प्रतिशत हिस्सेदारी सिखों की है और वैश्य समुदाय के 8 प्रतिशत वोट हैं
2013 विधानसभा चुनाव परिणाम
- बीजेपी को 32 सीटें, कांग्रेस को 8, आप को 28 और अन्य को कुल 2 सीटें मिली थीं
-पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 47 फीसदी वोट हासिल हुए थे
-लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली की सातों सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें उसने 52 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की थी