गरीब और बेघर लोगों से जुड़ा मामला हो और इस पर राजनीति न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. CHD की ओर से पेश आंकड़ों में महज 6 दिनों में दिल्ली में हुई 44 मौत की खबर आने के बाद सत्ता और विपक्ष के बीच राजनीति शुरू हो गई है.
सेंटर फॉर होलिस्टिक डिवेलपमेंट (CHD) नाम की संस्था ने ये आंकड़े जारी किए थे. संस्था का दावा है कि ये आंकड़े गृह मंत्रालय की वेबसाइट से निकलवाए गए हैं और जो दर्शाता है कि दिल्ली की जनता बेहद खराब हालत में है. सीएचडी के सुनील अलीदा ने बताया कि जोनल पुलिस रात में सड़क से शवों को उठाती है और अब तक केवल जनवरी में 44 बेघरों के शव को उठाया गया है, जिसके आंकड़े पब्लिक डोमेन में डाले गए हैं.पार्टी की ओर से राज्यसभा के उम्मीदवार संजय सिंह की सफाई के बाद आप पार्टी की नेता और राजनीतिक मामलों की समिति (PAC) की सदस्या आतिशी मारलेना ने इसी सीएचडी के आंकड़ों का सहारा लेते हुए एक ट्वीट किया है जिसे बाद में आप पार्टी ने रिट्वीट भी किया. इस पोस्ट में दिल्ली में 2004 से 2017 तक महीनेवार हुई मौत का आंकड़ा शामिल है.
पोस्ट के अनुसार, दिल्ली में लगभग हर महीने बड़ी संख्या में बेघर लोगों की मौत होती रही है. हर महीने होने वाली मौतों में 80 फीसदी मौत बेघर लोगों की होती है. अगर जनवरी महीने की बात की जाए तो पिछले 5 सालों में औसतन ढाई सौ लोगों की मौत हुई. 2013 में 241, 2014 में 251, 2015 में 262, 2016 में 245 और 2017 में 207 लोगों की मौत हुई. इस लिहाज से पिछले साल 2017 मौत का आंकड़ा पिछले 4 सालों में काफी कम रहा था.Surprised at story being run by several channels on cold wave deaths. If the number of deaths of homeless/ unidentified persons is consistent across all 12 months, how can they be attributed to the cold wave? pic.twitter.com/eoiXWoWIb2
— Atishi Marlena (@AtishiMarlena) January 8, 2018
जनवरी में ठंड अपने चरम पर होती है, 2004 के बाद लगातार 14 सालों में इस महीने में सबसे ज्यादा मौतें (287) 2010 में हुईं. जबकि 2011 में मौत का आंकड़ा 283 तक पहुंचा. जबकि दिसंबर में दिल्ली में 2017 में 250, 2016 में 235, 2015 में 251, 2014 में 279 लोगों की मौत हुई. 2009 में कांग्रेसराज में मरने वालों की संख्या 300 पार कर गई थी और कुल 301 लोग मारे गए थे.
दिसंबर और जनवरी में उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है, 2010 से लेकर अब तक गुजरे 7 सालों में इन दो महीनों में औसतन 220 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई.
न सिर्फ ठंड में बल्कि गरमी के सीजन में भी बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं. मई के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 259 (2010), 322 (2011), 312 (2012), 323 (2013), 240 (2014), 291 (2015), 288 (2016) और 275 (2017) मौतें हुई, जबकि जून में 355 (2010), 273 (2011), 567 (2012), 288 (2013), 485 (2014), 264 (2015), 317 (2016) और 268 (2017) मौतों का आंकड़ा बढ़ गया. 2012 में पौने छह सौ लोग एक ही महीने में मारे गए जबकि 2014 में पौने 5 सौ लोग की मौत हो गई. जून में हुई मौतों पर आप पार्टी की नेता ने लाल रंग से मार्क भी किया है.
इस बीच मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) के सीईओ पर कारण बताओ नोटिस जारी किया है. साथ ही उन्होंने उन्हें बेकार अधिकारी भी करार दिया. एलजी ने अधिकारियों की नियुक्ति से पहले हमसे कोई मशविरा नहीं लिया.
Media reporting 44 deaths of homeless due to cold. Am issuing show cause notice to CEO, DUSIB. Negligible deaths last year. This year, LG appointed a useless officer. LG refuses to consult us before appointing officers. How do we run govt like this?
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) January 8, 2018नए साल के शुरुआती 6 दिनों में राष्ट्रीय राजधानी में ठंड के कारण 44 बेघर लोगों की मौत के बाद सत्ताधारी आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी में जंग छीड़ती दिख रही है. विवाद उस समय बढ़ा जब दिल्ली भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी ने इस मुद्दे पर आप पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा. उन्होंने ट्विटर पर वीडियो जारी कर कहा कि सड़क से आंदोलन की शुरुआत करने वाले महलों में सो गए हैं और सड़क पर लोग मौत के मुंह में समा रहे हैं. हम भी सड़क पे हैं आप भी अपनी क्षमताभर कोशिश करें.
Advertisementजिस पर आप पार्टी की ओर से राज्यसभा में जाने वाले संजय सिंह ने बेतुका बयान देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार बेघरों के लिए शेल्टर होम का इंतजाम कर रही है. इस बीच ठंड से किसी की भी मौत होना दुखद है. भाजपा अपने राज्यों की चिंता करे, जहां पर बच्ची भात-भात कहकर मर जाती है. उनका इशारा भाजपा शासित राज्य झारखंड की ओर था जहां कुछ महीने पहले एक बच्ची की मौत भूख के कारण हो गई थी.