दो साल पहले जिस आम आदमी पार्टी को दिल्ली में ऐसा प्रचंड बहुमत मिला, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा रही थी, आज वही आम आदमी पार्टी घरेलू मोर्चे से लेकर ईमानदारी की चौखट तक बेनकाब हो रही है. दो साल पहले केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा दिल्ली में ही नहीं समा रही थी. इसलिए पंजाब से गोवा तक चले गए. उन राज्यों में मिली हार ने केजरीवाल की तमन्नाओं को ठिकाने लगा दिया, और रही सही कसर दिल्ली में एमसीडी की हार ने पूरी कर दी.
जब जुबान की कद्र नहीं होती तो सफलता भरी उम्मीदों का ज्वार महज दो साल में ही नाकामियों का भाटा बनकर उतरने लगता है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ यही हुआ, कहां तो मुख्यमंत्री बनने के बाद वो दिल्ली को जन्नत बनाने के लिए जी जान से जुटने वाले थे और कहां दिल्ली छोड़ अलग-अलग सूबों को जीतने के लिए निकल पड़े. लेकिन पंजाब से गोवा तक नतीजा आया तो सब नील बने सन्नाटा.
2015 की वो गुलाबी शाम थी, जब दिल्ली में प्रचंड बहुमत के गुलाब केजरीवाल पर बरस रहे थे. पूरी की पूरी दिल्ली केजरीवाल ने नाम हो गई. लेकिन दो साल में भरोसा ऐसा टूटा कि जिस राजौरी गार्डन सीट पर आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत पाया था, वहां अपनी इज्जत की जमानत तक नहीं बचा पाई.
माना कि एक सीट की हार जीत से बहुमत वाली सरकार की सेहत पर असर नहीं पड़ता. लेकिन जब राजनीति की सारी कायनात एक सीट पर सिमट जाए तो उसकी गूंज दूरतलक जाती है और इस मुश्किल से निकल पाते कि एमसीडी में पार्टी की सारी उम्मीदें धराशायी हो गईं.
ईवीएम पर सवाल उठाने वाले केजरीवाल के सामने अब दिल्ली के वोटरों के सवाल इन चुनाव नतीजों से उछल रहे हैं. ये ठीक है कि आम आदमी पार्टी आगे डटकर लड़ने की दुहाई दे रही है लेकिन अभी का नतीजा तो केजरीवाल के लिए दिल्ली के लोगों का कठोर पैगाम है. पैगाम ये कि नहीं संभले तो बर्बादियों का मंजर इंतजार कर रहा है, इसलिए दो साल पुरानी जीत के हैंगओवर में जीने वाले नेताओं की जुबान भी नरम पड़ गई.
बेईमान से लड़ने का दावा और विकास की नई ऊंचाइयों को छूने का वादा. गोवा-पंजाब से होते हुए एमसीडी के चुनावों में हार ने केजरीवाल के इस दावे पर भी सवाल खड़ा कर दिया है, जो उन्होंने शपथ लेते हुए किया था. कहां तो 24 घंटे परिश्रम का वादा था और कहां विवादों और बवालों में सरकार घिरती चली गई.
- केजरीवाल सरकार पर आरोप लगा कि इसने 12 हजार रुपये प्रति थाली के हिसाब से ताजमहल होटल से खाना मंगाया.
- केजरीवाल सरकार पर ये भी आरोप लगा कि इसने विज्ञापनों पर 97 करोड़ रुपये खर्च कर दिए.
- केजरीवाल के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाना भी उनके लिए मुसीबतों का सबब बन गया.
- और वित्त मंत्री अरुण जेटली से मानहानि का मुकदमा लड़ने के चक्कर में राम जेठमलानी की तीन करोड़ 86 लाख की फीस भी गले की फांस बन गई.
इन सबके बीच खुद केजरीवाल दिल्ली का मुख्यमंत्री होकर भी दिल्ली से दूर-दूर खड़े रहे. विरोधी पार्टियां इस बात को भुनाने में कामयाब रहीं. केजरीवाल की छवि पर सबसे बड़ा सवालिया निशान तो शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट से लगी, जिनमें सरकार के खिलाफ 7 मामलों की जांच सीबीआई को सौंप दी गई.
- शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में मोहल्ला क्लिनिक के सलाहकार पद पर स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की बेटी सौम्या जैन की नियुक्ति नियमों की धज्जियां उड़ाकर हुई.
- दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल को घर मुहैया कराए जाने को भी गलत बताया.
- AAP विधायक अखिलेश त्रिपाठी को अनुचित तरीके से टाइप 5 बंगला दिया गया.
- केजरीवाल के रिश्तेदार निकुंज अग्रवाल को स्वास्थ्य मंत्री का ओएसडी बनाने पर भी सवाल उठाया गया है.
- उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत मंत्रियों की विदेश यात्रा के लिए उप-राज्यपाल से इजाजत नहीं लेने को भी गलत बताया है.
- रिपोर्ट में आप के दफ्तर के लिए 206 राउज एवेन्यू का बंगला आवंटित करने को भी अनुचित ठहराया गया है.
केजरीवाल पर जब भी उंगली उठी, इसे वो दूसरे राजनीतिक दलों की सियासी चाल बताकर पल्ला झाड़ लेते थे. इस बीच अपने पुराने वादों को भुलाकर वो पंजाब और गोवा में किस्मत आजमाने चले गए. पंजाब में जीत के मनसूबों पर कैप्टन अमरिंदर ने पानी फेर दिया तो गोवा कहीं की नहीं रही. अब एमसीडी की हार के बाद पार्टी में मचा हाहाकार केजरीवाल को जरूर डरा रहा होगा.