दिल्ली सरकार को हाई कोर्ट से झटका लगा है. उनकी डोर स्टेप राशन डिलिवरी योजना पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि योजना का प्रारूप सही नहीं है. मामले की सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की खंडपीठ ने की.
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार टीपीडीएस के तहत लाभार्थियों को घर बैठे राशन भिजवाने की योजना तैयार करने की हकदार है. लेकिन मौजूदा कानून के मुताबिक दिल्ली सरकार को अपने संसाधनों से ही ऐसा करना होगा. ऐसी किसी भी योजना को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत पारित सभी आदेशों का पालन करना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि पिछले साल 24 मार्च को दिल्ली सरकार की कैबिनेट के फैसले के बाद तैयार की गई ये योजना दरअसल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और जन वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के आदेश 2015 के प्रावधानों का पालन नहीं करती है.
फैसले में पीठ ने यह भी लिखा है कि टीपीडीएस आदेश, 2015 को एनएफएसए के साथ ही पढ़ा जाना चाहिए. दिल्ली सरकार की ये योजना टीपीडीएस आदेश, 2015 और एनएफएसए की धारा 36 के विपरीत है इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.
अधिनियम के मुताबिक मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद उपराज्यपाल को ऐसी किसी भी योजना या प्रस्ताव या फिर अपने निर्णयों/प्रस्तावों को भेजने के लिए बाध्य है. इसका मकसद यही है की उप राज्यपाल उस योजना या उसके प्रस्तावों की पूरी तरह जांच परख कर इस पर निर्णय ले सकें.
नियमों और परंपरा के मुताबिक जब मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद का कोई निर्णय उपराज्यपाल के समक्ष उनकी स्वीकृति के लिए रखा जाता है तो वह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रति भी सचेत होंगे. साथ ही यदि उक्त निर्णय के आलोक में अपने मतभेद है तो वो भी बताना होगा. यदि उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली अपनी मंत्रिपरिषद के निर्णयों से असहमत होता है तो वह राष्ट्रपति को उस मामले को संदर्भित करने के लिए मुख्यमंत्री से कह सकता है. या फिर वह खुद उस मामले और मतभेद के बिंदुओं की जानकारी राष्ट्रपति तक पहुंचा सकता है. ऐसी स्थिति में अंतिम निर्णय राष्ट्रपति ही करते हैं. उनका निर्णय ही सर्वोपरि होता है.
राशन डीलर संघ ने जताई खुशी
कोर्ट के आदेश पर सरकारी राशन दुकान मालिकों ने खुशी जताई है. याचिका लगाने वाले DSRDC यानी दिल्ली सरकारी राशन डीलर संघ के अध्यक्ष शिव कुमार गर्ग ने कहा कि कोरॉना काल में अब तक राशन देते हुए 20 राशन डीलर की मौत हो चुकी है. उन्होंने कहा कि नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट और प्रधानमंत्री राशन योजना के अंतर्गत अब तक दिल्ली में राशन देते रहे हैं, लेकिन दिल्ली सरकार की मनमानी के खिलाफ कोर्ट जाना पड़ा. अच्छी बात ये है की हम पहले से ही इसके खिलाफ थे, अब कोर्ट ने भी रोक लगा दी है. गर्ग ने कहा कि फैसला दिल्ली के करीब 2000 राशन डीलरों के हक में है.
भाजपा ने साधा आप पर निशाना
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने आम आदमी पार्टी पर हमला तेज कर दिया है. तंज कसते हुए दिल्ली बीजेपी के चीफ आदेश गुप्ता ने कहा कि अरविंद केजरीवाल गैर कानूनी ढंग से यह नियम दिल्ली में लाना चाह रहे थे. उनका उद्देश्य गरीबों की मदद नहीं, बल्कि अपने लोगों की जेब भरना डोर स्टेप डिलीवरी के माध्यम से भ्रष्टाचार करना था.
सरकार और राज्यपाल में चल रहा था टकराव
बता दें कि इससे पहले दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने भी दिल्ली सरकार को अपनी डोर-टू-डोर राशन की डिलिवरी की योजना का प्रस्ताव केंद्र के पास भेजने को कहा था. इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में राशन की डोर स्टेप डिलिवरी योजना लागू करने की सशर्त इजाजत दी थी. राशन की डोर स्टेप डिलिवरी योजना को लेकर केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच काफी समय से टकराव चल रहा था. केजरीवाल सरकार राशन की डोर स्टेप डिलिवरी योजना लागू करने पर अड़ी थी, वहीं एलजी और केंद्र सरकार इसके खिलाफ थे.
कोर्ट ने कही थी कार्डधारकों की जानकारी देने की बात
दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार को लोगों को घर में राशन पहुंचाने को मंजूरी दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि उचित दर पर दुकानों में राशन की कमी नहीं होनी चाहिए. हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि वह सभी उचित मूल्य की दुकानों को उन कार्डधारकों की जानकारी दें, जिन्होंने घर पर ही राशन प्राप्त करने का विकल्प चुना है.
कोर्ट ने कहा था कि इसके बाद उचित मूल्य के दुकानदारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के उन लाभार्थियों को राशन की आपूर्ति करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जिन्होंने घर पर ही राशन प्राप्त करने का विकल्प चुना है. ऐसे में इन दुकानों पर ऐसे लोगों का राशन भेजे जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने कहा था कि इसलिए हमने 22 मार्च 2021 को दिए अपने आदेश में संशोधन किया है.
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