देश की राजधानी में इन दिनों सड़कों का नाम बदलने का एक नया चलन निकल पड़ा है. ताजा मामला प्रधानमंत्री निवास से गुजर रही रेस कोर्स रोड का है. फिलहाल आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और उनके कई विधायक पूरे मामले में जमकर राजनीति कर रहे हैं.
सैनिकों को सम्मान के लिए विरोध
आम आदमी पार्टी के दिल्ली कैंट से विधायक कमांडो सुरेंद्र एनडीएमसी के सदस्य भी हैं और उन्होंने मीनाक्षी लेखी के उस प्रस्ताव का विरोध किया था, जहां रेस कोर्स रोड का नाम 'एकात्म मार्ग' रखने को कहा गया था. सवाल पूछने कमांडो सुरेंद्र कहते हैं, 'मैं विरोध इसलिए कर रहा हूं क्योंकि आज हमारी रक्षा के लिए जो सैनिक जान की बाजी लगा देते हैं. उन्हें कोई भी सम्मान बीजेपी सरकार नहीं दे रही है. रेस कोर्स रोड पर एयरफोर्स का बहुत बड़ा स्टेशन है, जहां से 1973 का जब युद्ध हुआ, तब फ्लाइट लेफ्टिनेंट निर्मलजीत पाकिस्तान की जमीन पर जाकर लड़े और शहीद हुए. आज प्रधानमंत्री के घर का महत्व नहीं है, प्रधानमंत्री तो आएंगे और चले जाएंगे.'
PM आवास के बाहर करूंगा भूख हड़ताल
आगे कमांडो सुरेंद्र ने कहा, 'एक आत्मा तो वहां एक ही है, बीजेपी अपना एजेंडा थोप रही है. आज 20 सैनिक शहीद हुए, पूरा देश गम में डूब गया है. ये बीजेपी सरकार सैनिकों के जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही है. मेरी बात नहीं मानी गई, तो मैं प्रधानमंत्री के घर के सामने भूख हड़ताल पर बैठूंगा. सैनिक मुझे फोन करके कह रहे हैं कि जब हमारा वहां कैंप है तो हमारी बात रखी जाए.'
सड़क का नाम 'श्री गुरु गोविंद सिंह मार्ग' रखने की मांग
इसके अलावा AAP विधायक जरनैल सिंह अपनी मांग के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर पहुंचे. उनके साथ सिख समुदाय के लोग मौजूद थे. केजरीवाल से मुलाकात कर जरनैल सिंह ने रेस कोर्स रोड का नाम बदलकर श्री गुरु गोविंद सिंह मार्ग रखने की मांग की. इसे लेकर विधायक ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को एक चिट्ठी सौंपी और प्रधानमंत्री को नाम बदलने का सुझाव देने की अपील की है. जरनैल के मुताबिक श्री गुरु गोविंद सिंह का 350वां प्रकाशोत्सव वर्ष है और सभी की इससे भावनाएं जुड़ी हुई हैं.
किसे खुश करने की कोशिश?
रेस कोर्स रोड का नाम बदलने को लेकर जमकर हुई राजनीति इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि सत्ता में आने के बाद पार्टियां सिस्टम को किस तरह इस्तेमाल करती हैं. लेकिन सवाल ये भी खड़ा होता है कि रास्तों या सड़कों का नाम बदलकर राजनीतिक दल किसे खुश करना चाहते हैं, अपने बड़े नेताओं को या जनता को.