संसदीय सचिव नियुक्त करने के मामले में 20 विधायकों की सदस्यता गंवा चुकी आम आदमी पार्टी लगातार चुनाव आयोग पर हमला कर रही है. 'आप' प्रवक्ताओं का आरोप है कि चुनाव आयोग को कई चिट्ठियां लिखने के बावजूद विधायकों को सुनवाई के लिए नहीं बुलाया गया.
'आप' प्रवक्ता राघव चड्ढा का कहना है कि संसदीय सचिव मामले में 20 विधायकों ने अक्तूबर 2017 और नवम्बर 2017 में आयोग को बाकायदा लिखित चिठ्ठी देकर सुनवाई में शामिल होकर अपना पक्ष रखने की अपील की थी. लेकिन विधायकों को नहीं बुलाया गया.
23 जून के अपने ऑर्डर में चुनाव आयोग ने यह कहा था कि विधायकों को सुनवाई के लिए सूचित किया जाएगा, लेकिन उसके बाद कभी विधायकों को बुलाया ही नहीं गया.
राघव चड्ढा ने नव नियुक्त चुनाव आयुक्त ओपी रावत पर गंभीर आरोप लगाते हुए सवाल खड़े किए हैं. राघव का आरोप है कि जिन ओ पी रावत ने अपनी बीजेपी से नजदीकियों के चलते आम आदमी पार्टी के विधायकों के इस मामले से अपने आप को दूर कर लिया था, वो आखिरी छह महीने में फिर से इस मामले में शामिल हुए और आयोग की रिपोर्ट में उन्होंने भी हस्ताक्षर कर दिए. ऐसा क्यों हुआ? इसका कारण समझ से परे है.
आम आदमी पार्टी के मुताबिक 'आप' विधायकों को अयोग्य ठहराने वाली रिपोर्ट में नसीम जैदी के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त बने सुनील अरोड़ा के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं, जिन्होंने विधायकों की इस फाइल को कभी देखा भी नहीं और वो इस मामले से पूरी तरह से अनभिज्ञ रहे. ऐसा कैसे हो गया कि सुनील अरोड़ा ने भी उस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिए?
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने चुनाव आयोग की चिट्ठी लहराते हुए दावा किया और कहा कि "मुख्य चुनाव आयुक्त ने 20 विधायकों को बोलने का और अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया और तुगलकी फरमान सुना दिया. चुनाव आयोग ने 23 जून 2017 को लिखित में कहा था कि वो आम आदमी पार्टी के विधायकों को सुनवाई के लिए बुलाएंगे, लेकिन आयोग ने ऐसा नहीं किया और अपना एक तरफा फैसला सुना दिया."
20 विधायकों को सदस्यता रद्द होने के बाद से ही आम आदमी पार्टी आरोप लगा रही है कि संसदीय सचिव मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर फैसला देने वाले ए के जोति ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दवाब में आकर 20 विधायकों को अयोग्य करार दिया है, जो सीधे-सीधे राजनैतिक षडयंत्र के तहत की गई कार्रवाई है.