देश की राजधानी दिल्ली में एम्स-सफदरजंग फ्लाईओवर पर पिछले तीन दिन से मलबे का ढेर लगा है और उसे अब तक उठाया नहीं गया है. दरअसल इस वक्त रीकार्पेटिंग की वजह से फ्लाईओवर पर चढ़ने और उतरने वाला हिस्सा टूट चुका है जिसे तोड़कर फिर से बनाया जा रहा है जिसके चलते ना केवल सड़क पर गाड़ियों की रफ्तार धीमी हो गई है बल्कि हर वक्त एक्सीडेंट का खतरा भी बना रहता है.
इस रास्ते से गुजरने वाले बाइक सवार रामपाल ने बताया कि, 'जब भी मैं इस रास्ते से गुजरता हूं मुझे एक्सीडेंट का डर लगा रहता है.' देश के बेहतरीन फ्लाईओवर में शुमार ये फ्लाईओवर रोड डिजाइनिंग के लिए एक चुनौती बन चुका है. पीडब्ल्यूडी के एक अधिकारी ने नाम ना बताने की शर्त पर बताया कि अक्टूबर में ही रिकॉर्डिंग करके डेढ़ इंच मोटी लेयर बनाई गई थी, सड़क निर्माण में करीब 70 लाख रुपये खर्च हुए थे और सड़क तीन महीने में ही टूट गई. मेसर्स चौधरी कंस्ट्रक्शन नाम के जिस ठेकेदार को इस का ठेका दिया गया था वही दोबारा सड़क बना रहा है.
रोड डिजाइन के जानकार मानते हैं कि फ्लाईओवर के रैंप पर हैवी व्हिकल्स का आना इस सड़क के टूटने की वजह है. पहले रीकार्पेटिंग के वक्त टूटे हुए हिस्सों के ऊपर की मरम्मत कर दी गई लेकिन अब टूटे हुए पूरे हिस्से को उखाड़कर मरम्मत की जा रही है. पीडब्ल्यूडी अधिकारी ने बताया कि सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टिट्यूट ने इस बात की अनुमति दे दी है, लिहाजा मरम्मत का काम चल रहा है.
सवाल है कि क्या सड़क बनाने में खराब मटेरियल का इस्तेमाल किया गया? या फिर सरकारी महकमों को रोड सेफ्टी रोड डिजाइन की जानकारी नहीं है. आपको बता दें कि रेड लाइट और दूसरी जगहों पर मास्किंग नाम का मेटेरियल लगाया जाता था लेकिन पॉल्यूशन की वजह से इसे बंद कर दिया और एनजीटी ने इस पर रोक लगा दी है. लिहाजा अब मिलिंग की जा रही है.
साउथ एक्स से निकलकर यह फ्लाईओवर सफदरजंग अस्पताल के ठीक सामने नीचे आता है इसे महात्मा गांधी रोड भी कहते हैं. मॉनसून शुरू होने के बाद आने की स्थिति में हालत और खराब हो सकती है.