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योग की तैयारी के बीच नशे में डूबे बच्चों को जिंदगी से जोड़ता 'अली'

जब 'आज तक' की टीम योगा डे से एक दिन पहले कनॉट प्लेस का चक्कर लगा रही थी तो वहीं कदम-कदम पर नशे से जूझते युवा भी नजर आए. जहां योगा डे पर हर जगह स्वस्थ भविष्य की बात हो रही है वहीं कई बच्चे ड्रग्स से जूझते सड़कों पर ही दिख जाते हैं. लेकिन यहां पर भी एक उम्मीद की किरण है और वो है अली.

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नशे की गिरफ्त में बचपन
नशे की गिरफ्त में बचपन

इन दिनों दिल्ली में योगा डे की धूम है. सबसे बड़ा आयोजन दिल्ली के दिल्ली यानि कनॉट प्लेस में हो रहा है. लेकिन उसी कनॉट प्लेस के कोने-कोने में युवाओं की सेहत के साथ सबसे बड़ा खिलवाड़ हो रहा है. या यूं कहें कि दिल्ली के सबसे ज्यादा नशाखोर बच्चे यहीं नशे के शिकंजे में जाते आपको दिख जाएंगे.

जब 'आज तक' की टीम योगा डे से एक दिन पहले कनॉट प्लेस का चक्कर लगा रही थी तो वहीं कदम-कदम पर नशे से जूझते युवा भी नजर आए. जहां योगा डे पर हर जगह स्वस्थ भविष्य की बात हो रही है वहीं कई बच्चे ड्रग्स से जूझते सड़कों पर ही दिख जाते हैं. लेकिन यहां पर भी एक उम्मीद की किरण है और वो है अली.
 
कनॉट प्लेस में नशे से बिगड़ता बचपन और अली की मुहिम
दिल्ली का दिल माने जाने वाले सी पी यानी कनॉट प्लेस में ऐसे बच्चों की भरमार है. यहां नशा करने वाले ज्यादातर बच्चों की उम्र 10 साल से कम की है और नशा इनकी जिंदगी का एक मात्र उद्देश्य बन गया है. ताज्जुब की बात ये है कि दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस ऐसे बच्चों के पुनर्वासन के लिये अब तक किसी भी तरह के ठोस कदम नहीं उठा सकी है पर इन्हीं सडकों पर बड़े होते अली ने खुद के मासूम कंधों पर नशा करते बच्चों को वापस मुख्यधारा में जोड़ने का बीड़ा उठाया है.

सी पी में राहगीरों को फूल बेचते हुए अली को 3 साल हो चुके हैं. नोएडा के सेक्टर 62 से वो रोज सुबह यहां फूल बेचने आता है. दूसरे हमउम्र बच्चों को वो नशा करने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास करता है. नाश मुक्ति केंद्र को कॉल करने से लेकर ऐसे बच्चों की पिटाई करने से भी वो गुरेज नहीं करता.

"अली ने मुझे नशा नहीं करने के लिए बहुत समझाया है, वो मुझे पीट भी चुका है और अब पिछले दो महीनों से मैंने नशे को हाथ नहीं लगाया है. अब मैं भी उसके साथ मिल कर दूसरे बच्चों को रोकता हूं." ये कहना है दिलशाद का जिसकी उम्र 13 साल है और जिसने अब अली के कंधे से कंधा मिलाकर इस मुहिम में हाथ बंटाने का फैसला किया है.

देश की राजधानी में खुलेआम चल रहे सस्ते नशे के कारोबार पर अब तक नकेल क्यों नहीं लग पा रही है ये समझ पाना मुश्किल है. ऐसा नहीं है कि नशे का कारोबार सिर्फ दिल्ली की सड़कों तक सीमित है. पहाड़ गंज, आनंद परबत और पुरानी दिल्ली के कई इलाकों में मध्यम वर्गीय परिवार के ज्यादातर बच्चे और युवा नशे की गिरफ्त में हैं. इन सब के बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर वो कौन सा कारण है कि दिल्ली सरकार इस ओर आंख मूंदे बैठी है.

कई बड़े टूरिस्ट स्पॉट्स की सड़कें भी बनीं नशे का अड्डा
सभी बड़े रेड लाइट्स, मंदिर, गुरुद्वारा और टूरिस्ट स्पॉट्स पर ये बच्चे सस्ते नशे की गिरफ्त में कैद हो कर भीख मांगते हैं या छोटे-मोटे सामान बेचते हैं. इनकी फिक्र न तो इनके परिवारवालों को है ना ही प्रशासन को. राजधानी में दुनिया भर से घूमने आने वाले सैलानी हों या फिर दिल्ली के बाशिंदे सभी इन बच्चों के लिए कमाई के साधन हैं और दिन भर की कमाई का एक हिस्सा नशे के सामानों को खरीदने में खर्च होता है.

दिल्ली में देश के कोने-कोने से हर वर्ग के लोग अच्छे भविष्य का लेकर आते हैं. खास कर बिहार राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के मजदूरी करने वाले परिवारों को रोजी रोटी की तलाश दिल्ली ले कर आती है. पर यहां इन परिवारों को सुविधाओं के अभाव में सड़कों पर अपनी जिंदगी गुजारनी पड़ती है और इनमें से ज्यादातर परिवारों के बच्चे सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर होते हैं. दिल्ली के हर बड़े इलाके में चाहे वो राजेन्द्र नगर, करोल बाग, सी पी या फिर इंडिया गेट हो यहां हर रेड लाइट पर भीख मांगते बच्चे ट्रैफिक पुलिस से लेकर सभी राहगीरों के लिए आम बात हैं और आम है इनका नशे में डूबा होना.

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