किसी जमाने में फिल्म पोस्टर्स और साइन बोर्ड्स को हाथों से रंग भर कर जिंदा कर देने वाले कलाकारों की हर वक्त जरूरत हुआ करती थी. इनके हुनर के कद्रदान हुआ करते थे और अच्छी आमदनी बेहतर भविष्य की गारंटी हुआ करती थी. बदलते जमाने और नई टेक्नोलॉजी ने आज इनकी जगह ले ली है. कल तक जो कलाकार हुआ करते थे, आज बेरोजगार हो गए हैं. वक्त और हालात इस कदर बदले हैं कि आज इनके लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है. पर किसी ने ठीक ही कहा है कि सच्ची ईमानदार कोशिश और मेहनत कभी जाया नहीं होती.
डिजिटल प्रिंटिंग के इस दौर में भी एक बार फिर पोस्टर्स और साइन बोर्ड बनाने वाले कलाकारों को अपने फन को दुनिया के सामने दर्शाने का मौका मिल रहा है और इनकी जिंदगी एक बार फिर पटरी पर वापस लौट रही है.
'आर्ट ऑन वॉल' से मिल रही अलग पहचान
'आर्ट ऑन वॉल' एक ऐसी पहल जिसके चलते उन कलाकरों को एक अलग पहचान मिल रही है, जो आगे बढ़ने की रेस में नई तकनीक का शिकार हो गए. वो जिनके हुनर को भुला दिया गया था, आज उसी के सहारे मुख्य धारा से एक बार फिर जुड़ गए हैं और ये संभव हो पाया है दिल्ली की रहने वाली कृतिका महिंद्रा की कोशिशों के चलते. कृतिका ऐसे ही कलाकारों के पुनर्वासन के लिये काम कर रही हैं. उनकी पहल 'आर्ट ऑन वॉल' को दिल्ली के साथ-साथ नोएडा और गुरुग्राम में भी काफी सराहा जा रहा है.
किसी भी जगह को खूबसूरत बनाने की कला
घर हो या दफ्तर, स्कूल की दीवारें हों या बड़े होटलों की लॉबी, ये खोए कलाकार अपने हैंड पेंटेड आर्ट वर्क से किसी भी जगह को खूबसूरत बना देते हैं. इनकी तकनीक भले ही पुरानी है, पर इनके कौशल ने दीवार, छत, कैनवास, होम डेकोरेशन, कपड़ों और अन्य चीजों को भी इस कदर खूबसूरत बना दिया है कि देखने वाले तारीफ करते नहीं थकते.
कलाकारों की जिंदगी में भरा रंग
कृतिका की इस छोटी सी कोशिश ने एक बार फिर से उन कलाकारों की जिंदगी में रंग भर दिया है, जिनको नई तकनीक ने बेरंग कर दिया था. उनकी ये पहल वाकई सराहनीय है.