2011 में अन्ना हजारे के अर्जुन बनकर एंटी-करप्शन मूवमेंट के चेहरे के रूप में उभरे अरविंद केजरीवाल ने सियासत में एंट्री धमाकेदार तरीके से की. लेकिन दिल्ली में रिकॉर्ड बहुमत से साथ सरकार बनाने के दो साल बाद ही आज केजरीवाल करप्शन के सबसे गंभीर सवालों से घिरे हैं. विडंबना ये है कि जो केजरीवाल आरोप लगते ही पद से हटने की सियासी परंपरा के सबसे बड़े पैरोकार थे वो अपने खिलाफ रोज-रोज हो रहे खुलासों पर चुप्पी साधकर बैठे हैं. जानकार मानते हैं कि आप सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाले कपिल मिश्रा के जो आरोप केजरीवाल का सियासत खत्म करने पर आमादा हैं, वहीं उनके लिए संजीवनी भी बन सकते थे लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ये अहम मौका हाथ से गंवा दिया.
दो साल की सरकार में बर्खास्त हुए चार मंत्री
दिल्ली के लोगों ने केजरीवाल में भ्रष्टाचार को खत्म करने वाला मसीहा देखा. 2014 में 49 दिन की सरकार रही हो या फिर 2015 में 70 में से 67 सीटों पर जीत. लोगों ने केजरीवाल को हाथों-हाथ लिया. इतने रिकॉर्ड बहुमत के बाद जहां कोई भी लोकतांत्रिक सरकार पांच साल के लिए निश्चिंत होकर अपने एजेंडे पर राज्य को आगे बढ़ा सकती थी और वादों को पूरा कर सकती थी लेकिन केजरीवाल सरकार इसकी बजाय विवादों में ही उलझी रही. दिल्ली जैसे छोटे से राज्य जहां की कैबिनेट में महज छह मंत्री हैं, वहां भी महज दो साल में चार मंत्रियों(जितेंद्र तोमर, असीम अहमद खान, संदीप कुमार और कपिल मिश्रा) को सरकार से बर्खास्त किया जाना बताता है कि सरकार कैसे चल रही है.
कपिल के आरोपों पर हैरतंगेज चुप्पी
केजरीवाल के मंत्री कपिल मिश्रा ने केजरीवाल पर 2 करोड़ रुपये लेने का आरोप लगाकर सनसनी फैला दिया. लेकिन आंदोलनकारी की छवि लेकर सियासत में उतरे केजरीवाल जवाब देने के नाम पर चुप्पी साध गए. केजरीवाल की जगह मीडिया में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया आए और वो भी महज 40 सेकेंड में सबकुछ झूठ है कहकर चलते बने. कपिल मिश्रा एक के बाद एक गंभीर आरोप लगा रहे हैं. मीडिया में केजरीवाल के खिलाफ लगातर खुलासे हो रहे हैं लेकिन केजरीवाल बयान क्या एक ट्वीट तक करने की जहमत नहीं उठा रहे.
दो करोड़ की घूस के आरोप से मजबूत हुए केजरीवाल
कपिल मिश्रा ने जब केजरीवाल पर दो करोड़ रुपये लेने का आरोप लगाया तो उस वक्त केजरीवाल पार्टी के अंदर घिरते जा रहे थे. पंजाब, गोवा और फिर एमसीडी में मिली हार से केजरीवाल कमजोर पड़े और कुमार विश्वास उनके विकल्प के रूप में उभरने लगे. पार्टी के तमाम नेता कुमार विश्वास के खेमे में जाते दिखे लेकिन कपिल मिश्रा के आरोप सामने आते ही जैसे सबकुछ बदल गया. खुद कुमार विश्वास सबसे पहले केजरीवाल के बचाव में सामने आए और ईमानदारी पर अपनी मुहर लगाई. पार्टी से निकाले गए योगेंद्र यादव जो कि केजरीवाल के धुर विरोधी बन गए हैं उन्होंने भी एक तरह से केजरीवाल का बचाव ही किया. अलका लांबा जैसी नेता जिनके सुर में थोड़ी तल्खी देखी गई थी वो भी केजरीवाल के पीछे खड़ी नजर आईं. यानी कपिल मिश्रा के आरोपों ने केजरीवाल के पीछे पूरी पार्टी को एकजुट कर दिया.
सीएम पद छोड़कर बढ़ा सकते थे कद
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक केजरीवाल इस मौके का फायदा उठाने से चूक गए. वो चाहते को कपिल मिश्रा का आरोपों के तुरंत बाद सीएम पद छोड़ सकते थे जबकि उनके पार्टी संयोजक बने रहने पर कोई सवाल नहीं उठता. इस तरह पूरे देश के सामने वो एक मिसाल कायम कर सकते थे जिसे कई दूसरी पार्टियों द्वारा भी सराहा जाता और उनका राजनीतिक कद बढ़ता. केजरीवाल के पद छोड़ने पर कपिल मिश्रा भी उनके खिलाफ माहौल नहीं बना पाते जिससे पार्टी और सरकार की कम बदनामी होती.
नेशनल ड्रीम को साकार करने का मिलता मौका
केजरीवाल पर आरोप लगते रहे हैं कि वो दिल्ली का काम छोड़कर गोवा, पंजाब, गुजरात, हिमाचल आदि राज्यों पर ज्यादा फोकस करते हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री का दूसरे राज्यों में पार्टी के काम से घूमते रहना विपक्ष को भी सवाल खड़े करने का मौका देता है. अगर केजरीवाल मुख्यमंत्री पद छोड़ देते तो पार्टी संयोजक होने के नाते दूसरे राज्यों में विस्तार के लिए भरपूर वक्त दे सकते थे और कोई उनपर बाहरी होने का ठप्पा भी नहीं लगाता. वैसे भी दिल्ली में केजरीवाल के पास कोई विभाग नहीं है और सरकार का सारा कामकाज डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ही संभालते दिखे हैं.