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असम में NRC के बाद दिल्ली के रोहिंग्याओं को सता रहा है बेघर होने का डर

दिल्ली के कैंप में 55 परिवार के करीब 250 लोग रहते हैं, इनका कहना है कि इन्हें अक्सर पुलिस आकर परेशान करती रहती है, इनके मुताबिक, पिछले एक साल में दो बार इनसे एक फॉर्म भी भरवाया गया जो बर्मा की भाषा में था. खासकर जब से एनआरसी की नई लिस्ट असम में जारी हुई है उसके बाद से इस शरणार्थी कैंप में रहने वालों को और ज्यादा डर सताने लगा है. ये लोग बर्मी भाषा में भराए गए फॉर्म को इसी का पहला चरण मान रहे हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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  • भारत से नहीं जाना चाहते रोहिंग्या शरणार्थी
  • शाहिद ने बताया कि वह बांग्लादेश के रास्ते भारत में आया

देश में रोहिंग्या का मुद्दा लंबे समय से सुर्खियों में है, लेकिन अभी तक इसमें कुछ तस्वीर साफ नहीं हुई है. हालांकि बांग्लादेश रोहिंग्याओं के खिलाफ सख्त है. बांग्लादेश में अभी दस लाख रोहिंग्योओं की मोबाइल सेवा बंद करने की घोषणा की गई है. हमने देश की राजधानी दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या कैंप का दौरा किया और उनसे वहां रह रहे लोगों की परेशानी के बारे में सवाल पूछे.

दिल्ली के कालिंदी कुंज में बने रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में आजतक की टीम पहुंची तो वहां रह रहे रोहिंग्याओं ने भारत से जाने से इनकार कर दिया. इस कैंप में रहने वाले शाहिद से बात करने पर उन्होंने कहा कि हम वापस नहीं जाएंगे चाहे हमें यहीं मार दो. शाहिद ने बताया कि वह 2012 में बांग्लादेश के रास्ते हिंदुस्तान  आए थे और तभी से यहां रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि पहले पांच साल में तो उन्हें कोई दिक्त नहीं हुई, लेकिन पिछले दो साल से बहुत परेशानी हो रही है.

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ये कहानी अकेले शाहिद की नहीं है, बल्कि करीब-करीब 2 हजार गज इलाके में फैले इस शरणार्थी कैंप में रहने वाले हर शख्स की है. इस कैंप में 55 परिवार के करीब 250 लोग रहते हैं, इनका कहना है कि इन्हें अक्सर पुलिस आकर परेशान करती रहती है, इनके मुताबिक, पिछले एक साल में दो बार इनसे एक फॉर्म भी भरवाया गया जो बर्मा की भाषा में था. खास कर जब से एनआरसी की नई लिस्ट असम में जारी हुई है उसके बाद से इस शरणार्थी कैंप में रहने वालों को और ज्यादा डर सताने लगा है. ये लोग बर्मी भाषा में भराए गए फॉर्म को इसी का पहला चरण मान रहे हैं.

फॉर्म भरवाने से डरे रोहिंग्या

पिछली करीब 4 महीने पहले पुलिस ने इनसे फॉर्म भरवाया था, इस मुद्दे पर आजतक से बात करते हुए दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता, डीसीपी मनजीत सिंह रंधावा ने कहा कि वो लोग कितने हैं, कौन गया, कौन रह रहा है, कौन क्या काम रहा है, इसकी जानकारी रखनी जरूरी है, लोकल थाना ये वक्त-वक्त पर करता रहता है.

इस कैंप में रहने वाले लोग अब मीडिया को देखकर भी घबराने लगे हैं और बात करने से कतराने लगे हैं, लेकिन थोड़ा समझाने पर वो बात करने को तैयार हो गए. यहीं कैंप में छोटी सी दुकान चलाने वाले हारुन का कहना है कि वो 2005 में ही भारत आ गए थे, हारुन भी पहले बांग्लादेश गए और फिर दलाल की मदद से भारत में घुस गए और तभी से अलग-अलग कैंप में परिवार के साथ रह रहे हैं.

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यहां कैंप में अपने तीन बच्चों के साथ मनीरा भी रहती हैं. मनीरा का कहना है कि उनके ससुराल वालों को बर्मा में मार दिया गया था, वो वापस नहीं जाएंगी. बड़ी मुश्किल से वो अपने बच्चों का पालन पोषण कर रही हैं. मनीरा का कहना है कि फॉर्म के अलावा पुलिस अक्सर कैंप में आकर धमकाती भी है और जरा सी बात पर उनके लोगों को उठाकर थाने ले जाती है.

दिल्ली के अलग-अलग शरणार्थी कैंप में रहने वाले रोंहिग्या मुसलमानों को बर्मी भाषा में फॉर्म भराए जाने के बाद डर बैठा है. हर पल वो डरते रहते हैं कि कभी भी उन्हें भारत से बाहर धकेला जा सकता है. उनका कहना है कि पुलिस ने सभी के अंगूठों के निशान भी लिए हैं. कुछ लोगों ने इस फॉर्म को नहीं भरा है, लेकिन डर सभी को है कि पुलिस, सरकार कभी भी उनकी बस्ती को खाली करके उन्हें बाहर कर देगी. इन लोगों को शक है कि पिछला फॉर्म बर्मी भाषा में था तो हो सकता है ये सारा डाटा म्यांमार की सरकार को दिया गया हो और जल्द ही उन्हें बाहर भेजने की प्रक्रिया शुरू हो जाए.

ये लोग किसी भी कीमत पर देश छोड़कर जाने को तैयार नहीं हैं, हां इनका ये कहना है कि जब उनके अपने देश यानी म्यांमार में परिस्थितियां बेहतर हो जाएंगी तो ये लोग बिना कहे जाने को तैयार हो जाएंगे.

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