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'खिलाड़ी मैदान के लिए होते हैं, कोर्ट कॉरिडोर के लिए नहीं', दिल्ली हाईकोर्ट की खेल संघों को नसीहत

चिराग खंडाल, शशांक सिंह कटारिया और यश नेन्सी ने कोर्ट में याचिका दायर कर सितंबर-अक्टूबर में चीन के हांग्जो में होने वाले 19वें एशियाई खेलों के लिए चयन मानदंड में महासंघ द्वारा पेश किए गए कुछ बदलावों का मुद्दा उठाया है. जिस पर कोर्ट ने कहा कि चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद चयन मानदंडों में बदलाव नहीं किया जा सकता है.

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खिलाड़ियों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी (प्रतिकात्मक तस्वीर)
खिलाड़ियों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी (प्रतिकात्मक तस्वीर)

दिल्ली हाईकोर्ट ने अगामी एशियाई खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए घुड़सवारों के चयन की प्रक्रिया पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि खिलाड़ी स्टेडियम के लिए होते हैं, न कि कोर्ट कॉरिडोर के लिए. जो लोग मातृभूमि का नाम रोशन करना चाहते हैं, उन्हें खेल संघों द्वारा मानसिक पीड़ा का शिकार नहीं होना चाहिए. न्यायमूर्ति गौरांग कांत ने तीन घुड़सवारों की याचिकाओं पर विचार करते हुए कहा कि वह "इक्वेस्ट्रियन फेडरेशन ऑफ इंडिया (ईएफआई) के प्रतिनिधियों के बीच मामलों की खेदजनक स्थिति और प्रोफेशनलिज्म की स्थिति से बहुत दुखी हैं और वर्तमान मामला डेविड और गोलियथ प्रतियोगिता का प्रतीत होता है, जहां एक संगठन प्रतिस्पर्धा से कुछ व्यक्तियों को खत्म करने के लिए अपनी पूरी ताकत का उपयोग कर रहा है.

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दरअसल, चिराग खंडाल, शशांक सिंह कटारिया और यश नेन्सी ने कोर्ट में याचिका दायर कर सितंबर-अक्टूबर में चीन के हांग्जो में होने वाले 19वें एशियाई खेलों के लिए चयन मानदंड में महासंघ द्वारा पेश किए गए कुछ बदलावों का मुद्दा उठाया है. जिस पर कोर्ट ने कहा कि चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद चयन मानदंडों में बदलाव नहीं किया जा सकता है. सभी घुड़सवारों को "अपना कीमती समय बर्बाद करने के बजाय सख्त प्रैक्टिस करनी चाहिए और उन सभी को अनुमति दी जाए जिन्होंने चयन प्रक्रिया में भाग लिया था. 

अदालत ने कहा कि ईएफआई जैसे राष्ट्रीय खेल महासंघ को सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को बढ़ावा देना चाहिए और अति-तकनीकी और व्यक्तिगत प्रतिशोध से भ्रमित नहीं होना चाहिए.

कोर्ट ने 7 मार्च को पारित अपने आदेश में कहा, “कोई भी व्यक्ति जो अपनी मातृभूमि को गौरवान्वित करने का लक्ष्य रखता है, उसे महासंघों और उसके अधिकारियों द्वारा मानसिक पीड़ा नहीं दी जानी चाहिए. पिछले 18वें एशियाड में पदक तालिका में भारत के निचले स्थान को ध्यान में रखते हुए हमारा पूरा प्रयास हमारे एथलीटों को एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करने की दिशा में होना चाहिए, जहां उनका ध्यान केवल अपने प्रदर्शन में सुधार करने और टूर्नामेंट में शीर्ष स्थान हासिल करने पर हो."

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अदालत ने जोर देकर कहा कि एथलीट हमारी राष्ट्रीय संपत्ति हैं और ईएफआई जैसे राष्ट्रीय खेल महासंघ को किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ अति-तकनीकी और व्यक्तिगत प्रतिशोध से प्रभावित हुए बिना देश में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा की पहचान करने और उसे बढ़ावा देने को प्राथमिकता देनी चाहिए. एक खिलाड़ी मैदान और स्टेडियम के लिए होता है, अदालतों के गलियारों के लिए नहीं.

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