क्या किराया बढ़ने के बाद ऑटोवालों का रवैया बदला है? क्या हेल्पलाइन नंबर लांच होने के बाद सुधरे हैं ऑटो वाले? ये जानने के लिए दिल्ली आजतक की टीम दिल्ली की सड़कों पर निकली और घर तक के लिए एक ऑटो ढूंढने में जुट गई.
लक्ष्मी नगर पर मौजूद हमारी रिपोर्टर ने जब ऑटोवाले से शालीमार बाग चलने के लिए कहा, तो उसने कहा कि गैस नहीं है. रजौरी गार्डन चलने के लिए भी कोई राजी नहीं हुआ. प्रगति मैदान से जब रिपोर्टर ने ऑटोवाले से द्वारका चलने के लिए पूछा, तब भी जवाब ना में आया.
प्रगति मैदान जैसी जगह पर हमें ट्रैफिक पुलिस वाला मदद के लिए नहीं मिला. लेकिन प्री-पेड बूथ देखकर हमें थोडी राहत मिली. गौर करने वाली बात ये है कि जब हम ऑटो प्री-पेड बूथ पहुंचे तो वहां ताला गया हुआ था. हताश होकर हमारी रिपोर्टर ने ट्रैफिक पुलिस की हेल्पलाइन नंबर पर कॉल लगाया. कॉल लगाने पर जवाब मिला कि हमें उन ऑटोवालों के नंबर्स को नोट करना चाहिए था. उनका चालान कट जाता. लेकिन हमारी परेशानी ये थी कि हम समय पर घर पहुंचना चाहते थे. हमने कॉल मदद के लिए किया था. जिसका जवाब हमे नही मिला.
ये हालात अगर दिन के वक्त है तो अंदाजा लगाना मुश्किल नही है कि रात की कहानी क्या होती होगी. ऐसा नही है कि सारे ऑटो वाले मनमानी करते हैं, कई ऑटोवाले हमें ऐसे भी मिले जो पहली ही बार में हमें हमारी मंजिल तक पहुंचाने के लिए तैयार थे.