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BJP नेता की याचिका- EVM पर चुनाव निशान नहीं प्रत्याशी की फोटो लगे, SC ने दिया ये जवाब

सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दल संसद या विधान सभा के पूरे कार्यकाल के दौरान अपने चुनाव चिह्न के साथ जनता के बीच रहते हैं. जबकि निर्दलीय और रजिस्टर्ड पार्टी के उम्मीदवारों को कुछ हफ्ते ही मिलते हैं. ऐसे में कोई भी प्रत्याशी की पृष्ठभूमि नहीं जानता.

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Supreme Court
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स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की जनहित याचिका
  • याचिका के मुताबिक पार्टी सिंबल, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता जैसे मामलों का मूल कारण

ईवीएम पर चुनाव चिह्न की जगह प्रत्याशी की रंगीन फोटो, नाम, उम्र और शैक्षणिक योग्यता लगाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस स्टेज पर हम नोटिस जारी नहीं करेंगे. कोर्ट ने याचिककर्ता को कहा कि आप याचिका की कॉपी सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को दीजिए. बता दें कि बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने ये जनहित याचिका दाखिल की है, जिसमें भ्रष्टाचार, अपराधीकरण, जातिवाद, सांप्रदायिकता, भाषावाद और क्षेत्रवाद का मूल कारण पार्टी सिंबल बताया गया है. 

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याचिका के मुताबिक राजनीतिक दल संसद या विधान सभा के पूरे कार्यकाल के दौरान अपने चुनाव चिह्न के साथ जनता के बीच रहते हैं. जबकि निर्दलीय और रजिस्टर्ड पार्टी के उम्मीदवारों को कुछ हफ्ते ही मिलते हैं. ईवीएम पर चुनाव चिह्न की जगह प्रत्याशी की रंगीन फोटो, नाम, उम्र और शैक्षणिक योग्यता लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस स्टेज पर हम नोटिस जारी नहीं करेंगे. इसके साथ ही दूसरा तर्क ये कि चुनाव चिह्न होने पर मतदाताओं को पार्टी का ही ध्यान रहता है. कोई भी प्रत्याशी की पृष्ठभूमि नहीं जानता. 

वहीं सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है, जिसमें चुनाव के बीच चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की गई थी. दरअसल, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड के नए सेट को जारी करने पर रोक लगाने की याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका पर 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. 

ये याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR की तरफ से दाखिल की गई है. इसकी तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में जल्द से जल्द सुनवाई की अर्जी लगाई थी. याचिका में दावा किया गया है कि पांच राज्यों के चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री से राजनितिक पार्टियों को अवैध और गैर कानूनी फंडिंग होगी. 
 

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