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'सार्वजनिक वाहनों की कमी, एयर क्वालिटी की रियल-टाइम जांच में लापरवाही...' CAG रिपोर्ट में दिल्ली वायु प्रदूषण पर चौंकाने वाला खुलासा

प्रदूषणा को लेकर दिल्ली विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे हुए हैं. रिपोर्ट में वाहनों के पीयूसी प्रमाणपत्र जारी करने में अनियमितताएं की बात सामने आई है. साथ ही रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2018-19 से 2020-21 तक 47. 51 लाख 'ओवरएज' वाहनों को डी-रजिस्टर करने की जरूरत थी.

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दिल्ली विधानसभा में मंगलवार को मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने 'वाहनों से वायु प्रदूषण की रोकथाम' पर नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कई खामियों को उजागर किया गया है. यह पिछले दो सालों से लंबित 14 कैग रिपोर्टों में से एक थी. शराब आबकारी नीति और स्वास्थ्य सहित तीन रिपोर्ट पहले ही पेश की जा चुकी हैं.

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रिपोर्ट में प्रदूषण नियंत्रण तंत्र में कई खामियों को उजागर किया है. जैसे कार समेत कई वाहनों के पीयूसी प्रमाणपत्र जारी करने में अनियमितताएं, वायु गुणवत्ता निगरानी सिस्टम का विश्वसनीय न होना और प्रदूषण नियंत्रण उपायों का खराब क्रियान्वयन शामिल है. रिपोर्ट में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों द्वारा उत्पन्न डेटा में संभावित लापरवाहियां, प्रदूषण नियंत्रण सोर्स पर रियल-टाइम की जानकारी की कमी और सार्वजनिक परिवहन बसों की कमी का जिक्र भी किया गया है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत रहा है, लेकिन सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (सीएएक्यूएमएस) के स्थान केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते थे, जिससे उनके द्वारा उत्पन्न आंकड़ों में संभावित अशुद्धि का संकेत मिलता है, जिससे वायु गुणवत्ता सूचकांक मान अविश्वसनीय हो जाता है.

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दिल्ली सरकार के पास प्रदूषक स्रोतों के बारे में कोई रियल-टाइम जानकारी नहीं थी, क्योंकि उसने इस संबंध में कोई अध्ययन नहीं किया था. सरकार ने न तो ईंधन स्टेशनों (मुख्य स्रोत) पर बेंजीन के स्तर की निगरानी की, न ही ईंधन स्टेशनों पर वाष्प रिकवरी सिस्टम की स्थापना पर ध्यान दिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि 24 निगरानी स्टेशनों में से 10 पर बेंजीन का स्तर स्वीकार्य सीमा से अधिक रहा.

सार्वजनिक परिवहन सिस्टम

रिपोर्ट में सार्वजनिक परिवहन बसों की कमी की बात कही गई है, जिसमें 9,000 बसों की पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता के मुकाबले केवल 6,750 बसें उपलब्ध हैं. सार्वजनिक बस परिवहन सिस्टम को बड़ी संख्या में डीटीसी बसों के ऑफ-रोड रहने, बस मार्गों की कम कवरेज और बस मार्गों को तर्कसंगत नहीं बनाने से भी नुकसान उठाना पड़ा है.

हालांकि, 2011 से दिल्ली की आबादी में 17% की अनुमानित वृद्धि हुई है. लेकिन अंतिम मील कनेक्टिविटी प्रदान करने वाले पंजीकृत ग्रामीण सेवा वाहनों की संख्या मई 2011 से 6,153 पर ही बनी हुई है. यहां तक कि ये वाहन 10 साल पुराने हैं, जिनकी ईंधन दक्षता खराब हो सकती है और प्रदूषण फैलाने की अधिक संभावना है.

रिपोर्ट में सार्वजनिक परिवहन बसों की कमी के बावजूद सरकार ने पिछले सात वर्षों से बजट प्रावधानों को बनाए रखने के बाद भी मोनोरेल और 'इलेक्ट्रॉनिक ट्रॉली बसों' जैसे विकल्पों को लागू न करने की बात कही है. सार्वजनिक परिवहन बसों का राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देशों के अनुसार, दो बार उत्सर्जन परीक्षण नहीं किया गया. 

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इसी तरह अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच 6,153 ग्रामीण सेवा वाहनों में से केवल 3,476 वाहनों ने कम-से-कम एक बार परीक्षण करवाया, जबकि चार बार परीक्षण किया जाना जरूरी था.

PUCC जारी करने में मिली अनियमितताएं

वाहनों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र (पीयूसीसी) जारी करने में अनियमितताएं पाई गईं. 10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 तक प्रदूषण जांच केंद्रों (पीसीसी) पर जांचे गए 22.14 लाख डीजल वाहनों में से 24% वाहनों में जांच मूल्य दर्ज नहीं किए गए.

4,007 मामलों में भले ही परीक्षण मूल्य अनुमेय सीमा से अधिक थे. इन डीजल वाहनों को 'पास' घोषित किया गया और पीयूसीसी जारी किए गए. 

10 अगस्त 2015 से 31 अगस्त 2020 तक के पीयूसी डेटाबेस के अनुसार, 65.36 लाख पेट्रोल/सीएनजी/एलपीजी वाहनों को पीयूसीसी जारी किए गए. हालांकि, 1.08 लाख वाहनों को 'पास' घोषित किया गया और अनुमेय सीमा से अधिक सीओ/एचसी उत्सर्जित करने के बावजूद पीयूसीसी जारी किया गया.

7,643 मामलों में एक ही केंद्र पर एक ही समय में एक से अधिक वाहनों की उत्सर्जन सीमा के लिए जांच की गई. एक ही परीक्षण केंद्र में कम-से-कम 76,865 मामले ऐसे पाए गए, जिनमें वाहन की जांच और पीयूसी प्रमाणपत्र जारी करने में केवल एक मिनट का वक्त व्यतीत हुआ जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं हो सकता है.

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PUCC डेटा को VAHAN डेटाबेस से लिंक न किए जाने के कारण, प्रदूषण जांच केंद्र मैन्युअल रूप से वाहन की BS श्रेणी का चयन करते हैं, जिससे उत्सर्जन मानकों के साथ-साथ PUCC की वैधता में भी हेरफेर की गुंजाइश बनी रहती है. VAHAN वाहन से जुड़ी सभी जानकारियों के लिए एक एकीकृत एप्लीकेशन है.

गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए सरकार या तीसरे पक्ष द्वारा ऑडिट किए गए प्रदूषण जांच केंद्रों (पीसीसी) का कोई निरीक्षण नहीं किया गया. यहां तक कि जिन पीसीसी ने वाहनों को पीयूसीसी जारी किए थे, बाद में उनमें से धुआं निकलता पाया गया, उनका भी निरीक्षण नहीं किया गया, ताकि उपकरणों के सही ढंग से काम करने की पुष्टि हो सके. इसके अलावा सरकार के पास प्रदूषण जांच उपकरणों के नियमित अंशांकन को सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र भी नहीं है.

रिमोट सेंसिंग उपकरणों के माध्यम से वाहनों के प्रदूषण की जांच के लिए आधुनिक तकनीक को भी नहीं अपनाया गया, जबकि इस पर 2009 से विचार किया जा रहा था और सुप्रीम कोर्ट ने भी बार-बार इस पर जोर दिया था.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2014-15 से 2018-19 तक परीक्षण के लिए आने वाले वाहनों के प्रतिशत में भारी वृद्धि हुई, जो फिटनेस परीक्षण के लिए भी नहीं आए. साल 2018-19 में 64% वाहन फिटनेस परीक्षण के लिए नहीं आए.

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परिवहन विभाग ने 31 मार्च, 2017 के बाद बेचे गए 382 नए BS-III अनुपालक वाहनों को पंजीकृत किया और 2 जनवरी, 2020 और 20 अप्रैल, 2020 के बीच बेचे गए 1,672 BS-IV अनुपालक वाहनों को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए अप्रैल 2020 में पंजीकृत किया गया.

मार्च 2021 तक स्क्रैप नहीं किए गए 347 वाहन

वहीं, साल 2018-19 से 2020-21 तक 47.51 लाख ओवरएज वाहनों को डीरजिस्टर करने की जरूरत थी. पर सरकार ने सिर्फ एंड ऑफ लाइफ व्हीकल' में से केवल 2.98 लाख वाहनों का ही पंजीकरण रद्द किया. और ये वाहन अभी-भी दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रहे हैं.  रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जब्त किए गए 347 'एंड ऑफ लाइफ व्हीकल' में से किसी को भी मार्च 2021 तक स्क्रैप नहीं किया गया. परिवहन विभाग की प्रवर्तन ब्रांच के पास न तो पर्याप्त कर्मचारी थे और न ही वाहनों में पीयूसी उपकरण लगे थे.

इलेक्ट्रिक वाहनों में हुई मामूली वृद्धि

रिपोर्ट में बताया गया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए वित्तीय और अन्य प्रोत्साहन प्रदान करने के बावजूद, दिल्ली में पंजीकृत इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई. इसके अलावा चार्जिंग सुविधाओं की उपलब्धता भी सीमित थी.

लागू नहीं की गईं योजनाएं

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रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान को सरकार ने ज्यादातर मौकों पर लागू नहीं किया, जिसमें ऑड-ईवन योजना भी शामिल है. जबकि प्रदूषण का स्तर ज्यादा था.

सरकार दिल्ली के एंट्री प्वाइंट पर अंतरराष्ट्रीय डीजल-प्रस्तावित बसों को दिल्ली की परिधि में रखने के लिए ISBT's विकसित करके वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठाने में भी विफल रही.

सरकार ने दिल्ली प्रबंधन और पार्किंग स्थल नियमों को लागू करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की, जिसका उद्देश्य बेतरतीब ढंग से खड़े वाहनों के कारण वाहनों और ट्रैफिक जाम को रोकना था. इसने नियमों के तहत परिकल्पित पार्किंग स्थल की उपलब्धता के साथ वाहनों को परिवहन परमिट देने या नवीकरण को भी नहीं जोड़ा.

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