पंजाब के मालवा की तरह की राजधानी दिल्ली के पड़ोस में भी कैंसर बेल्ट तेजी से पनप रही है. यूपी के ग्रेटर नोएडा में छपरौला इंडस्ट्रियल पार्क के पास कम से कम पांच गांव कैंसर की चपेट में हैं.
राजधानी दिल्ली से इस इंडस्ट्रियल पार्क की दूरी महज घंटे भर की है. लेकिन औद्योगिक विकास का खामियाजा यहां के लोगों को कैंसर के रूप में चुकाना पड़ रहा है. इन गांवों में सादोपुर, अछेजा, सादुल्लापुर, बिशनुली और खेड़ा धरमपुर हैं. पिछले पांच सालों में इन गांवों में असामान्य रूप से कैंसर के मरीजों की संख्या में भारी इजाफा देखा गया है. महंगी हुई टीबी, डायबिटीज की दवाएं, कैंसर की 8,000 की दवा अब एक लाख में
इन गांवों के ज्यादातर मरीज गैस्ट्रिक, लीवर और ब्लड कैंसर के शिकार हैं. इसके साथ ही हेपटाइटिस और स्किन की बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या भी बड़ी तादाद में है. इन सारी बीमारियों का एक सिरा पेट के अंगों से जुड़े कैंसर के रूप में मिलता है, जो यहां के पानी में कैंसर को पैदा करने वाले तत्वों की मौजूदगी की पुष्टि करता है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि बीस साल पहले छपरौला इंडस्ट्रियल पार्क बनने से पहले यहां का पानी मीठा और बढ़िया होता था. हालांकि पार्क बनने के बाद यहां लगभग सौ फैक्ट्रियां लगी और उनके कचरे से यहां का पानी दूषित होने लगा. ये फैक्ट्रियां कॉस्मेटिक्स, पेस्टिसाइड्स, टीवी ट्यूब्स सहित कई अन्य वस्तुओं का उत्पादन करती है. जिससे यहां का पानी प्रदूषित होता गया.
खेड़ा धरमपुरा निवासी वकील नीरज शर्मा का कहना है कि इन गांवों में एक ब्लॉक ऐसा भी है जिसे कैंसर वाला मोहल्ला के तौर पर जाना जाता है. वहां रहने वाले ज्यादातर लोग बीमार हैं. जबकि स्थानीय निवासी नरेंद्र भाटी के मुताबिक उनका ज्यादातर वक्त एम्स में ही गुजरता है. प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने वाले भाटी को इस हालात में गुजर बसर करना मुश्किल लगता है.
इन गांवों के अलावा क्षेत्र के अन्य गांव भी दूषित पानी की वजह से कई प्राणघातक बीमारियों की चपेट में हैं. इनमें दुजाना, वैदपुरा, मिलक लच्छी और खेड़ी भनौता हैं. हालांकि इन गांवों के आंकड़े उपलब्ध नहीं है.