केंद्र सरकार ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद विधान सभा भंग नहीं करने को न्यायोचित ठहराते हुए उच्चतम न्यायालय में कहा कि ऐसा जनहित में किया गया है. केंद्र ने कहा कि सरकार बनाने के लिए बीजेपी की ओर से दावा किए जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
शीर्ष अदालत में दाखिल हलफनामे में सरकार ने दलील दी है कि इतनी कम अवधि में चुनाव कराना जनहित में नहीं था, जैसी कि उपराज्यपाल ने सिफारिश की थी. केंद्र ने विधान सभा भंग नहीं किए जाने को लेकर दायर याचिका पर न्यायालय के नोटिस के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है.
हलफनामे में कहा गया है कि उपराज्यपाल ने दो कारण दिए थे कि दिसंबर के पहले सप्ताह में संपन्न चुनाव के बाद 28 दिसंबर, 2013 को ही सरकार का गठन हुआ था और इसलिए इन परिस्थितियों में इतनी कम अवधि में अगला चुनाव कराना न तो उचित था और न ही जनहित में था.
हलफनामे के अनुसार उपराज्यपाल ने यह भी कहा था कि इन परिस्थितियों में निकट भविष्य में किसी अन्य राजनीतिक दल या गठबंधन द्वारा सरकार बनाने का दावा करने की संभावना बंद नहीं की जानी चाहिए. केंद्र सरकार ने कहा कि उपराज्यपाल द्वारा दिए गए कारण सही और उपयुक्त थे और विशेषरूप से विधान सभा की अस्थिर स्थिति के संदर्भ में इसे स्वीकार करना ही उचित था.
हलफनामे के अनुसार दिल्ली में बीजेपी की ओर से सरकार बनाने का दावा करने की अभी भी संभावना है और इस संदर्भ में विधान सभा को भंग करना सही नहीं होता. दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किए जाने को चुनौती देने की आम आदमी पार्टी की याचिका पर 24 फरवरी को केंद्र सरकार से जवाब मांगा गया था.
लेकिन न्यायालय ने इस मामले में बीजेपी और कांग्रेस को नोटिस जारी करने से गुरेज करते हुए कहा था कि वह सिर्फ संवैधानिक मसले पर गौर करना चाहता है और राजनीतिक झमेले में नहीं पड़ना चाहता. आम आदमी पार्टी चाहती है कि विधान सभा भंग करके लोक सभा के साथ ही चुनाव कराने का निर्देश उप राज्यपाल को दिया जाए.