बीते साल उत्तराखंड में आई बाढ़ और उससे हुई जानमाल की क्षति के लिए जलाशयों और झीलों के प्राकृतिक प्रवाह में अतिक्रमण और अस्थायी बाधा को सबसे बड़ा कारण माना गया है. इस बाबत एक केंद्रीय समिति ने इन क्षेत्रों में कर्मशियल एक्टिविटी पर रोक लगाने की सिफारिश की है.
जल संसाधन मंत्रालय की ओर से गठित इस सात सदस्यीय समिति ने तटीय नियमन क्षेत्र (सीजेडआर) की तर्ज पर उपयुक्त तंत्र बनाने का सुझाव दिया है ताकि भविष्य में इस स्तर की आपदाओं को रोका जा सके. इसके साथ ही उत्तराखंड सरकार से आदर्श मैदानी बाढ़ क्षेत्र विधेयक को लागू करने को कहा गया है.
समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष आई अप्रत्याशित आपदा में नदी के किनारे से 50 मीटर से कम दूरी में स्थित इमारतें काफी हद तक बह गई. इसमें 580 लोग मारे गए और 5400 लोग लापता हो गए. समिति ने प्राकृतिक झील के मार्ग में अस्थायी बाधा के कारण क्षेत्र में जल जमाव की संभावना होने का जिक्र किया है.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में नदियों में जल के अत्यधिक प्रवाह के लिए कई कारणों की पहचान की है जिसमें ग्लेशियर के पिघलने की दर और नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश प्रमुख है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ स्थानों पर नदियों के मुख्य मार्ग में पूर्व के बाढ़ के दौरान नदियों द्वारा मलवा जमा करने से भी प्रवाह बाधित हुआ. इस कारण कई स्थानों पर तटबंधों में दरार आ गई और नदियों को मार्ग बदलना पड़ा. समिति ने कहा कि सड़कों के किनारे जल निकासी की अपर्याप्त व्यवस्था और वर्षा के जल को निकालने की व्यवस्था की कमी के कारण भी भूस्खलन के लिए स्थितियां बनीं.
यूएवी से हो ग्लेशियर आदि की निगरानी
समिति के सदस्यों ने उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों का दौरा कर 16 और 17 जून 2013 को आई बाढ़ के कारण व्यापक नुकसान एवं जानमाल की क्षति के कारणों का आकलन किया. समिति ने मानव रहित विमान (यूएवी) से ग्लेशियर झील, भूस्खलन के कारण अस्थायी बाधा आदि की निगरानी करने की पुरजोर वकालत की. समिति ने पहाड़ों की चोटियों पर मानव रहित निगरानी टावर स्थापित करने की भी सिफारिश की है.