सीएफएल बनने वाली कंपनियों को हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है. एक अक्टूबर से लागू हो रही नई ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 के हिसाब से ही सीएफएल कंपनियों को ई-वेस्ट का करना निपटारा होगा. सीएफएल की इस्तेमाल करने की मियाद खत्म होने या खराब होने के बाद कंपनियों को ग्राहकों से सीएफएल बल्ब वापस लेना होगा. नई ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल एक अक्टूबर से लागू हो रहा है.
1 अक्टूबर के बाद ई-वेस्ट का निपटारा कैसे करना है, इसका पूरा प्रपोजल इन कंपनियों को केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को भेजना होगा. हलाकि केंद्र ने साफ कर दिया है कि प्रॉसिक्यूशन की कार्रवाई 1 अक्टूबर से नहीं की जाएगी. सभी कंपनियों को कुछ महीने का वक्त ई-वेस्ट के निपटारे की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए दिया जाएगा. इस वक्त में कंपनियों को ये तय करना होगा की ई-वेस्ट को ग्राहकों से कैसे वापस लेना है. अभी तक ये काम करने की जिम्मेदारी दिल्ली की सभी एमसीडी पर है.
दरअसल हाई कोर्ट का फैसला इलेक्ट्रॉनिक लैंप बनाने वाली कंपनियों की तरफ से दायर उस याचिका पर आया है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार की न्यू ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 को चुनौती दी गई है. सरकार ने इस मामले में 23 मार्च को अधिसूचना जारी की थी.
सीएफएल बनाने वाली कंपनिया फिलिप्स लाइटिंग, हैवेल, सूर्या जैसी कंपनियों ने इस मामले में याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया है कि नए नियमों के तहत सीएफएल व मर्करी से बने लैंप के अवधि खत्म होने के बाद उनको उपभोक्ताओं से लेने व उनका निस्तारण करने की जिम्मेदारी उसे बनाने वाली कंपनियों की है. याचिका में कहा गया है कि किसी ब्लब की लाइफ कब खत्म होगी ये उपभोक्ता के हाथ में है. ऐसे में वह कैसे इनको उपभोक्ता से इकटठा कर सकते हैं.
इस मामले मे पर्यावरण मंत्रालय ने दलील थी कि नए रूल भी उन योजनाओं जैसे ही है,जिसें कंपनियां उपभोक्ताओं को पुराना ब्लब लौटाकर नया ब्लब लेने पर दस रुपए तक का डिस्काउंट देती है. इसी तरह की योजना सीएफएल के लिए भी लागू की है. वहीं नए नियमों के तहत कंपनियां उपभोक्ताओं से इस तरह के लैंप देते हुए कुछ पैसा जमा करा सकती है. उस पैसे को खराब लैंप वापिस करने पर ब्याज सहित लौटाया जा सकता है.