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दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में संविधान का संरक्षक है भारतीय सुप्रीम कोर्ट: CJI NV Ramana

स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सीजेआई एनवी रमणा ने भारतीय संविधान को लेकर अपने विचार रखे. सीजेआई रमणा ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करने की यह शक्ति भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के आदर्श  वाक्य "यतो धर्म स्थिरो जया" को जीवंत करती है जिसका मतलब होता है "जहाँ धर्म है, वहाँ विजय है". लोगों को न्यायपालिका पर विश्वास है.

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सीजेआई एनवी रमणा ( फाइल फोटो )
सीजेआई एनवी रमणा ( फाइल फोटो )

भारत के 76वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा (CJI NV Ramana) ने कहा है कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of india) दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में संविधान का संरक्षक है. सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय करने का व्यापक अधिकार संविधान ने दिया है. अपेक्स  कोर्ट में आयोजित स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में बोलते हुए सीजेआई रमणा ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करने की यह शक्ति भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के आदर्श  वाक्य "यतो धर्म स्थिरो जया" को जीवंत करती है जिसका मतलब होता है "जहाँ धर्म है, वहाँ विजय है".

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सीजेआई रमणा बोले कि देश के लोगों को पता है कि जब उनके साथ कुछ ही गलत होगा तो न्यायपालिका उनके साथ खड़ी होगी. लोगों को भरोसा है उन्हें न्यायपालिका से न्याय मिलेगा. इस भरोसे के चलते ही  लोग अपने मामलों को आगे तक बढ़ा पाते हैं. सीजेआई बोले भारतीय न्यायिक प्रणाली न केवल लिखित संविधान और इसकी भावना के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण विशिष्ट है बल्कि व्यवस्था में लोगों द्वारा व्यक्त किए गए अपार विश्वास के कारण भी अद्वितीय है.

भारतीय न्यायपालिका की भूमिका के बारे में सीजेआई रमणा ने कहा विधायिका उन मुद्दों को देखने में सक्षम नहीं हो सकती है जो कार्यान्वयन के दौरान सामने आ सकते हैं. अदालतों ने क़ानूनों की व्याख्या करके विधायिका के सच्चे इरादे पर असर डाला है. सीजेआई ने यह भी कहा है कि अदालतों ने कानूनों को समकालीन समय के लिए प्रासंगिक बनाकर उनमें जान फूंक दी है. 

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राज्यों के तीनों अंग यानी कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका संवैधानिक विश्वास के भंडार हैं और राज्य के प्रत्येक अंग का प्रत्येक कार्य संविधान की भावना में होना चाहिए. सीजेआई बोले 'संवैधानिक ढांचे के तहत, प्रत्येक अंग को एक विशिष्ट दायित्व दिया गया है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 38 द्वारा यह धारणा दूर की गई है कि न्याय केवल न्यायालय की जिम्मेदारी है. यह अनुच्छेद राज्यों को राज्यों को  सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुरक्षित करना अनिवार्य करता है.

 

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