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दिल्ली के रैट माइनर्स से मिले CM केजरीवाल, उत्तरकाशी की सुरंग में बचाई थी 41 मजदूरों की जान

सिल्क्यारा सुरंग से मजदूरों को निकालने के दौरान अमेरिकी ऑगर मशीन के खराब होने पर 12 सदस्यीय रैट होल माइनर्स की टीम बुलाई गई थी. इसी टीम में कुछ दिल्ली जल बोर्ड के लिए सीवर लाइनें और पाइपलाइन बिछाने वाले कर्मी भी शामिल हैं. अब इनसे मुख्यमंत्री केजरीवाल ने मुलाकात की है. बैठक के दौरान जल मंत्री आतिशी और शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज भी मौजूद थे.

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मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रैट माइनर्स से की मुलाकात
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रैट माइनर्स से की मुलाकात

उत्तरकाशी की सुरंग से 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने वाले रैट माइनर्स की हर तरफ जमकर तारीफ हो रही है. इस टीम में अलग-अलग राज्यों के लोग शामिल थे, जिन्हें सम्मानित भी किया जा रहा है. इस कड़ी में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के रैट-होल माइनर्स से मुलाकात की. 

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दरअसल, सिल्क्यारा सुरंग से मजदूरों को निकालने के दौरान अमेरिकी ऑगर मशीन के खराब होने पर 12 सदस्यीय रैट होल माइनर्स की टीम बुलाई गई थी. इसी टीम में कुछ दिल्ली जल बोर्ड के लिए सीवर लाइनें और पाइपलाइन बिछाने वाले कर्मी भी शामिल हैं. अब इनसे मुख्यमंत्री केजरीवाल ने मुलाकात की है. बैठक के दौरान जल मंत्री आतिशी और शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज भी मौजूद थे.

क्या होती है रैट-होल माइनिंग

बता दें कि रैट होल माइनिंग में इंसानों द्वारा बहुत छोटी सुरंगें खोदी जाती हैं, जिसके माध्यम से कुशल श्रमिक प्रवेश करते हैं और कोयला या मलबा बाहर निकालते हैं. रैट-होल माइनिंग टेक्निक को इसमें निहित जोखिम और कई दुर्घटनाओं के कारण अतीत में गंभीर आलोचना का सामना करना पड़ा है. कई ऐसी घटनाएं सामने आईं जिनमें रैट होल माइनर्स को चोटें लगीं और उनकी मौतें भी हुईं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने 2014 में खनन की इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था. 

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रैट माइनिंग का इतिहास

बात 1920 की है. तब हम अंग्रेजों के गुलाम हुआ करते थे. अंग्रेजों ने देखा कि धनबाद में बेशुमार कोयले की खान हैं. तब कोयले की सख्त जरूरत भी थी. रेल गाड़ी आ चुकी थी. स्टीम इंजन का जमाना था. और ये इंजन कोयले से ही चलता था. लेकिन अंग्रेजों के सामने दिक्कत ये थी कि खान में कोयला तो भरा पड़ा था, पर उस कोयले तक पहुंचना और उसे बाहर निकालना आसान नहीं था. क्योंकि तब ऑगर जैसी मशीने तो छोड़िए, ऐसी मामूली मशीनें भी नहीं थी, जिनसे पहाड़ों को काट कर या जमीन में सुरंग कर कोयला बाहर निकाला जाता. तब अंग्रेजों को अचानक चूहों की याद आई. वही चूहे, जो घरों में घुस जाएं तो कपड़े कुतर डालें, वही चूहे अपने हाथों और मुंह से छोटे-छोटे सुरंग बना डालें. अंग्रेजों के चूहों की ये अदा बड़ी पसंद आई. 

ऐसे मिला रैट माइनर नाम

इसी के बाद उन्होंने चूहों की इन हरकतों को इंसानों पर आजमाने का फैसला किया. अब धनबाद में कोयला के खानों में इंसान अपने दोनों हाथों से हथौड़ी और छेनी लिए बड़े बड़े पहाड़ों के सीने काट रहे थे. जमीन के अंदर बड़े बड़े गड्ढे खोद रहे थे. और फिर उन्हीं हाथों से वो कोयला बाहर निकालने लगे. तब पहली बार ऐसे इंसानों को एक नाम मिला था, वो नाम था- रैट माइनर.

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