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कांग्रेस नेता जयराम रमेश की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने किया खारिज

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में किसी भी पक्ष से जवाब दाखिल करने से इनकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया. पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार और सांसद जयराम रमेश की तरफ से बहस सुनने के बाद 27 फरवरी को ही अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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जयराम रमेश (फाइल फोटो)
जयराम रमेश (फाइल फोटो)

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दिल्ली हाईकोर्ट ने 2015 से पीएमएलए यानी धन शोधन निरोधक कानून में किए गए संशोधन को चुनौती देने वाली सांसद जयराम रमेश की याचिका को खारिज कर दिया है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में किसी भी पक्ष से जवाब दाखिल करने से इनकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया. पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार और सांसद जयराम रमेश की तरफ से बहस सुनने के बाद 27 फरवरी को ही अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर आचार्य ने कहा था कि यह व्यवस्था आज से नहीं बल्कि 2015 से ही चल रही है. उस समय से अबतक इस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया गया. दूसरी बात यह कि याचिकाकर्ता जयराम रमेश इस तरह के संशोधन से खुद पीड़ित भी नहीं हैं. लिहाज़ा जो पीड़ित है वह इस मुद्दे को उठाए तो उस पर फिर भी सोचा जा सकता था. याचिकाकर्ता को इस मुद्दे को उठाने का कोई अधिकार ही नहीं है.

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सुनवाई के दौरान इस मामले में केंद्र सरकार ने कोर्ट को कहा कि संशोधनों को उन लोगों की तरफ दाखिल की गई है जो धन शोधन के मामले मे आरोपियों के करीबी हैं. इसलिए इसे निरस्त कर दिया जाना चाहिए. जबकि सांसद जयराम रमेश की तरफ से इस मामले में वकील के तौर पर पेश हुए पी. चिदंबरम ने कोर्ट को बताया कि मौजूदा सरकार से पहले पीएमएलए में किसी तरह का संशोधन साधारण विधेयक के जरिए किया जाता था. लेकिन मौजूदा सरकार ने इसे धन विधेयक के जरिए संशोधन की है. जो सीधे तौर पर संविधान का उल्लंघन है.

चिदंबरम ने कोर्ट को कहा कि धन विधेयक को सिर्फ लोकसभा में पेश किया जाता है. राज्यसभा न तो इसे खारिज कर सकती है और न ही इसमें संशोधन  कर सकती है, राज्यसभा सिर्फ सिफारिश कर सकती है जिसे लोकसभा चाहे तो स्वीकार करे या अस्वीकार कर दे. लिहाज़ा इस तरह से किया गया संशोधन संविधान का उल्लंघन है और इसे निरस्त कर दिया जाना चाहिए.

चिदंबरम का तर्क था कि ये संविधान के अनुच्छेद 110 के मुताबिक धन विधेयक के प्रावधानों से संबंधित ही नहीं है. धन विधेयक के जरिए कानून में संशोधन किया जाना राज्यसभा की अनदेखी करने के जैसा है. दोनों सदनों में किसी संशोधन को पेश किया जाना संविधान के मूल ढांचे का अमूल्य हिस्सा है. लेकिन पी. चिदंबरम के तर्कों और जयराम रमेश की अर्जी पर किसी तरह का कोई रिलीफ देने के बजाए कोर्ट ने इस याचिका को ही खारिज कर दिया है.

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