कोरोना से राजधानी दिल्ली में मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में दिल्ली के श्मशान घाटों पर अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां भी कम पड़ती जा रही हैं. इसके चलते उत्तरी दिल्ली नगर निगम की तरफ से गाय के गोबर और पराली से लकड़ी बनाने की व्यवस्था शुरू की गई है. इसके जरिए हर रोज लकड़िया बनाई जाएंगी, जिससे श्मशान घाट में अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
गोबर से खाद बनने के बारे में सभी अवगत हैं, लेकिन अब गोबर से खाद बनाने के साथ ही लकड़ी भी बनाई जाएगी. इसके लिए नगर निगम को एक मशीन मिली है. जिसका नाम है गोकाष्ट. गोकाष्ट मशीन की शुरुआत रविवार को महापौर जय प्रकाश ने की.
उत्तरी दिल्ली के महापौर जय प्रकाश ने बताया कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने श्मशान घाटों पर दाह संस्कार के लिए ईंधन के रूप में लकड़ी की जगह फसलों के अवशेष (पराली) और गाय के गोबर से निर्मित ईंधन ब्लॉक (गोपराली) के उपयोग किया जाएगा.
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ये मशीन मंगोलपुरी श्मशान घाट पर लगाई गई. जहां पर हर रोज 70 क्विंटल गोबर से मशीन में एक दिन में 60-70 किलो लकड़ी बनाई जा सकती है. अभी यह मशीन सिर्फ मंगोलपुरी श्मशान घाट में लगाई गई है और धीरे-धीरे दिल्ली के अलग-अलग श्मशान घाटों में जहां पर काफी बड़ा स्पेस मौजूद है, वहां पर इसको लगाया जाएगा. ताकि पर्यावरण को भी बचाया जा सके.
जानकारी के मुताबिक इस मशीन की लागत एक लाख रुपए है. 1 लाख की लागत वाली इस मशीन में गाय के गोबर और पराली के साथ लकड़ी का बुरादा भी इस्तेमाल किया जाएगा. मशीन में डालने के साथ ही तुरंत तकरीबन 3 फीट की एक लकड़ी बनकर के तैयार होगी. जिसको धूप में रखा जाएगा. 24 घंटे के बाद के लकड़ी जलने के लिए तैयार हो जाएगी. फिलहाल इसका रेट अभी 6.50 रुपए बताया जा रहा है. अभी स्पष्ट रूप से रेट तय नहीं किया गया है.
मशीन लगाने का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण करना और पेड़ों को कटने से बचाना है. श्मशान घाट में सबसे ज्यादा लकड़ी का उपयोग होता है. हर साल पड़ोसी राज्यों से पराली जलने का प्रदूषण दिल्ली में आता है. पंजाब-हरियाणा तमाम राज्य को पराली इसलिए जलानी पड़ती है, क्योंकि सरकार किसानों से पराली खरीदती नहीं है. ऐसे में अब बड़े स्तर पर दिल्ली नगर निगम पड़ोसी राज्यों से पराली खरीद सकेगा और इसका इस्तेमाल श्मशान घाट में लकड़ी बनाने में किया जाएगा.