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कोरोना से मरने वाले सैकड़ों शवों का दाह संस्कार कराया, एम्बुलेंस ड्राइवर आरिफ की कोविड से मौत

आरिफ के निधन पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शोक व्यक्त किया है. बताया जाता है कि आरिफ खान पिछले 25 साल से शहीद भगत सिंह सेवा दल के साथ जुड़े थे.

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प्रतीकात्मक तस्वीर (पीटीआई)
प्रतीकात्मक तस्वीर (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोरोना संक्रमितों को पहुंचाते थे अस्पताल
  • शहीद भगत सिंह सेवा दल से जुड़े थे
  • शंटी की मांग- 1 करोड़ की मदद दे सरकार 

कोरोना वायरस महामारी के दौर में कोरोना वॉरियर्स पिछले 7 महीने से अपनी जान जोखिम में डाल कर दूसरे लोगों की हर संभव मदद करने में लगे हैं. कई लोग ऐसे हैं, जो अपने घर परिवार से दूर रहकर जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. ऐसी ही एक शख्सियत थे, दिल्‍ली के सीलमपुर इलाके में रहने वाले आरिफ खान.

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एम्बुलेंस ड्राइवर आरिफ ने अपनी जान जोखिम में डालकर 200 से ज्यादा मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाया और 100 से अधिक शवों को अंत्येष्टि के लिए श्मशान पहुंचाया. कोरोना महामारी ने एक जिंदादिल वॉरियर की जान ले ली. कोरोना वायरस से संक्रमित आरिफ खान का शनिवार की सुबह निधन हो गया. उनका उपचार हिंदूराव अस्पताल में चल रहा था.

आरिफ के निधन पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने शोक व्यक्त किया है. बताया जाता है कि आरिफ खान पिछले 25 साल से शहीद भगत सिंह सेवा दल के साथ जुड़े थे. वह फ्री में एम्बुलेंस की सेवा मुहैया कराने का काम करते थे. 21 मार्च से आरिफ खान कोरोना के मरीजों को उनके घर से अस्पताल और आइसोलेशन सेंटर तक ले जाने का काम कर रहे थे. शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक जितेंद्र सिंह शंटी ने आरिफ को जिंदादिल शख्सियत बताया और कहा कि मुस्लिम होकर भी आरिफ ने अपने हाथों से 100 से अधिक हिंदुओं के शव का अंतिम संस्कार किया.

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शंटी ने बताया कि जब आरिफ की मौत हुई, उनके अंतिम संस्‍कार के लिए परिवार के लोग पास नहीं थे. उनके परिवार ने आरिफ का शव काफी दूर से कुछ मिनट के लिए ही देखा. उनका अंतिम संस्कार खुद शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह शंटी ने अपने हाथों से किया.

शंटी ने कहा कि आरिफ 24 घंटे  कोरोना संक्रमितों के लिए उपलब्ध रहते थे. रात 2 बजे कोरोना के मरीजों को घर से ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराया. इनमें से कुछ की मौत के बाद उन्हें अंतिम संस्‍कार के लिए भी लेकर गए थे.

शहीद भगत सिंह सेवा दल के संस्थापक ने बताया कि अगर किसी कोरोना मरीज की मौत के बाद परिजनों को आर्थिक मदद की भी दरकार होती थी, आरिफ उनकी मदद करते थे. बताया जाता है कि आरिफ की तबीयत 3 अक्टूबर को खराब हुई थी. तब भी वह कोरोना संक्रमित को लेकर अस्पताल जा रहे थे.

आरिफ ने तबीयत बिगड़ने पर कोरोना टेस्ट कराया. रिपोर्ट पॉजिटिव आई. परिजनों के मुताबिक जिस दिन उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, उसी दिन उनका निधन हो गया. वे परिवार में कमाने वाले इकलौते सदस्य थे. जितेंद्र सिंह शंटी ने आरिफ को असली कोरोना वॉरियर बताते हुए सरकार से एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने की मांग की है.

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