देश में कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी इसका कहर जारी है. इस बीमारी का खतरा इसलिए भी गंभीर बताया जा रहा है क्योंकि अधिकांश मरीज बिना लक्षण वाले (एसिंप्टोमेटिक) हैं. ऐसे लोग कोरोना से संक्रमित होते हैं लेकिन उनमें इसके लक्षण नहीं दिखते. इसके अलावा अन्य मरीज प्री-सिंप्टोमेटिक और सिंप्टोमेटिक भी होते हैं. इसके बारे में गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के न्यूरोलॉजी हेड डॉ. प्रवीण गुप्ता ने इंडिया टुडे/आजतक से बातचीत की. उन्होंने कोरोना वायरस के प्रसार के बारे में विस्तार से बताया.
डॉ. प्रवीण गुप्ता के मुताबिक, कोरोना वायरस के तीन प्रकार के वाहक (कैरियर) होते हैं- एसिंप्टोमेटिक, प्री-सिंप्टोमेटिक और सिंप्टोमेटिक. एसिंप्टोमेटिक ऐसे मरीज होते हैं जिनमें कोरोना का संक्रमण होता है लेकिन उनमें कोई लक्षण नहीं दिखता. प्री-सिंप्टोमेटिक मरीज वे हैं जिनमें कुछ दिनों बाद इस बीमारी के लक्षण दिखते हैं. जबकि सिंप्टोमेटिक मरीज वे हैं जिनमें कॉमन फ्लू जैसे लक्षण होते हैं. इन मरीजों को बुखार, सर्दी और कफ की शिकायत हो सकती है.
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प्रवीण गुप्ता ने बताया कि शुरू में ऐसा कहा जाता रहा कि एसिंप्टोमेटिक लोग ही कोरोना वायरस के सबसे बड़े स्प्रेडर (बीमारी फैलाने वाले) हैं. जबकि इस श्रेणी में प्री-सिंप्टोमेटिक स्प्रेडर आते हैं या ऐसे लोग जिनमें कोरोना के हल्के लक्षण हैं. इन लक्षणों में बदन दर्द भी शामिल है. प्री-सिंप्टोमेटिक मरीज अपने अंदर लक्षण आने के 48 घंटे पहले ही वायरस फैलाना शुरू कर देते हैं. ऐसे मरीज बेहद खतरनाक हैं क्योंकि इनमें कोई लक्षण नहीं होते और ये लोग कोई एहतियात भी नहीं बरतते. इनका घर से बाहर आना-जाना जारी रहता है.