वैवाहिक अधिकारों को बनाए रखने और एक-दूसरे के साथ रहने के लिए किसी दंपत्ति को जबरन शारीरिक संबंध बनाने का आदेश नहीं दिया जा सकता. ये टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट ने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली 58 वर्षीय महिला की याचिका को खारिज करते हुए की है. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने महिला को वैवाहिक अधिकारों को बनाने का आदेश दिया था. महिला ने तर्क रखा था कि वो किसी भी हालत में पति के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहतीय
हाई कोर्ट ने कहा कि अगर दोनों एक साल से भी ज्यादा समय के दौरान संभोग यानि वैवाहिक अधिकारों का उल्लंघन करते है तो ऐसी स्थिति में तलाक का अधिकार बन जाता है. कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री की जरूरत नहीं है. दो वैवाहिक लोग घर में एक साथ अकेले भी रह सकते हैं, लेकिन एक साल के दौरान वैवाहिक अधिकारों का पालन नहीं किया जाता तो हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत शादी को खत्म किया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि फिलहाल की कानूनी स्थिति मे वैवाहिक अधिकारों को बनाने का निर्देश तो कोर्ट दे सकता है, लेकिन कानून ये भी कहता है कि वैवाहिक बहाली के लिए किसी को जबरन शरीरिक संबंध बनाने के लिए नहीं कहा जा सकता. कोर्ट ने कहा कि अगर महिला के मन में शंका है कि वैवाहिक अधिकारों को बहाल रखने के आदेश के तहत उसे जबरन पति से शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है. यह एक गलत धारणा है.