दिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा मामले में एक महिला को गुजारा भत्ता देने से मना कर दिया. अदालत ने कहा कि कोई भी अदालत किसी द्विवैवाहिक संबंध पर पुष्टि की अपनी मुहर नहीं लगा सकती. मामले में महिला ने पहली शादी के 23 दिन के भीतर ही दूसरी शादी कर ली थी.
अतिरिक्त सेशन जज मनोज जैन ने निचली अदालत के आदेश के खिलाफ महिला के दूसरे पति की अपील को मंजूर कर लिया. निचली अदालत ने महिला के दूसरे पति को निर्देश दिया था कि वह महिला को अंतरिम मुआवजे के तौर पर 4000 रुपये का भुगतान करे. निचली अदालत ने कहा था कि एक घरेलू रिश्ता था, जिसका मतलब है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा अधिनियम के अंतर्गत सहजीवन था. अदालत ने इस बात पर गौर किया कि महिला की पहली शादी वैध थी, क्योंकि उसने कथित तौर पर तथ्यों को छिपाकर दूसरी शादी करने से पहले अपनी पहली शादी को समाप्त करने का आदेश नहीं लिया था.
अदालत ने कहा, 'जब तक डिक्री नहीं हासिल की जाती है तब तक वह अपने पहले पति की कानूनन ब्याहता पत्नी है.' अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा मामले में जब महिला पहले से ही विवाहित है और उसने साफ तौर पर तथ्यों को छिपाया और पहली शादी को शून्य करवाने से पहले ही दूसरी शादी कर ली तो वह शादी की प्रकृति के सहजीवन में खुद के होने का दावा नहीं कर सकती.
अदालत ने कहा, 'मौखिक समझ से कोई भी वैध शादी समाप्त नहीं की जा सकती. कानून सम्मान करने के लिए हैं और पारस्परिक सहमति से उन्हें विफल नहीं किया जा सकता. अदालतें किसी भी द्विवैवाहिक संबंध पर पुष्टि की अपनी मुहर नहीं लगा सकती.'
अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि दूसरा पति महिला की तुलना में अधिक असंतुष्ट है. जज ने कहा, 'मैं यह भी कहना चाहूंगा कि किसी को भी अपनी ही गलतियों का फल हासिल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. महिला ने इस बात को भलीभांति जानने के बावजूद कि वह पहले से विवाहित है उसने दूसरे पति को अंधकार में रखा और अब उससे गुजारा भत्ता चाहती है.' अदालत ने कहा कि मौजूदा परिदृश्य में दूसरा पति है जो असंतुष्ट है और महिला नहीं. सहजीवन में रहने वाले सिर्फ वो लोग गुजारा भत्ता हासिल करने की योग्यता रखते हैं, जहां पक्षकार कानूनन शादी कर सकते हैं.