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पटाखा बैन: दिवाली पर पर्यावरण जीतेगा या परंपरा?

दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में ग्रीन दिवाली मनाने के लिए एक NGO ने अनूठी पहल करते हुए बच्चों को दीये, मोमबत्तियां, मिठाइयां और किताबें-कापियां बांटी. यानी दिवाली मनाने के लिए अलग-अलग तरीके देखने को मिल रहे हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर बैन संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अलग-अलग असर देखने को मिल रहा है. हिन्दू हेल्पलाइन नाम के एक संगठन ने मंगलवार की शाम सुप्रीम कोर्ट के पास इंटरनेशनल लॉ इंस्टीट्यूट के बाहर पटाखे फोड़े.

वहीं दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में ग्रीन दिवाली मनाने के लिए एक NGO ने अनूठी पहल करते हुए बच्चों को दीये, मोमबत्तियां, मिठाइयां और किताबें-कापियां बांटी. यानी दिवाली मनाने के लिए अलग-अलग तरीके देखने को मिल रहे हैं.

दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर इलाके में सिंधु समाज के साथ रैपिड फ्लोर के साझा अभियान में एमसीडी स्कूल के सैकड़ों बच्चों को ग्रीन दिवाली यानी पर्यावरण अनुकूल दिवाली मनाने के संकल्प के साथ साथ दीये, मोमबत्तियां, मिठाइयां, किताबें-कापियां, कलम पेन बांटे गए, ताकि ज्ञान की ज्योति जले और अज्ञान का अंधेरा दूर हो. इस मौके पर इलाके के निगम पार्षद परमजीत सिंह राणा ने बच्चों को पर्यावरण अनुकूल दिवाली का संकल्प दिलाया. इस मौके पर स्कूल के बच्चों ने भी पर्यावरण को सहेजने और पटाखे नहीं छोड़ने का वचन लिया.

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सुप्रीम कोर्ट की चौखट के पास इंटरनेशनल लॉ इंस्टीट्यूट के बाहर वहीं दूसरा नजारा दिखा. यहां हिंदू हेल्पलाइन संगठन के सदस्यों का कहना था कि पटाखे बेचने पर पाबंदी लगानी ही थी तो दशहरे से पहले लगानी थी. हिंदू संगठन का तर्क है कि तमाम पटाखा व्यापारियों ने दिवाली पर बिक्री के लिए करोड़ों रुपए के सामान का ऑर्डर दिया और कारखाने वालों ने भी इसे भेज दिया.

इसी संगठन से जुड़े दीपक का कहना है, "दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के साथ रौशनी और आतिशबाजी की वर्षों पुरानी परंपरा है."

देश की राजधानी में एक ओर पर्यावरण बचाने की लड़ाई है तो दूसरी ओर परंपरा बचाने की. अब दिवाली की रात और उसके बाद आने वाली सुबह ही पता चलेगा कि दिवाली कितनी ग्रीन रही या पर्यावरण की दृष्टि से कितनी ब्लैक.

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