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बैगर होम में मानवाधिकारों का हनन, DCW ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट

निर्मल छाया कॉम्पलेक्स में अलग-अलग गृहों में रहने वाली लड़कियों और महिलाओं की संख्या लगभग 1500 है लेकिन इन सभी की देखभाल और जांच के लिए सिर्फ 2 डॉक्टर ही हैं. नारी निकेतन में सुधार के लिए दी गई सिफारिश में भी आयोग ने डाक्टरों की संख्या बढ़ाने की बात कही थी.

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सुधार के लिए सरकार के पास भेजी सिफारिश
सुधार के लिए सरकार के पास भेजी सिफारिश

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दिल्ली महिला आयोग ने निर्मल छाया कॉम्पलेक्स में स्थित बैगर होम (भिक्षु गृह) में सुधार के लिए दिल्ली सरकार को अपनी सिफारिशें भेज दी हैं. आयोग ने इस होम की खराब हालत के लिए जिम्मेदार, अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की सिफारिश की है. पिछली महीने 4 जनवरी को दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने अपनी टीम के साथ बैगर होम का औचक निरीक्षण किया था. आयोग की अध्यक्ष ने पूरी रात बैगर में होम में रहने-खाने की व्यवस्था और साफ सफाई आदि का निरीक्षण किया और जिसमें बहुत सारी खामियां पाई गईं. इसके बाद 8 फरवरी को भी उन्होंने सुबह 5 बजे वहां का दौरा किया था. आयोग की टीम ने अपने निरीक्षण के दौरान वहां मानवाधिकारों का उल्लंघन भी पाया था. इसके बाद एक महीने तक जांच-पड़ताल की गई और अब सुधार के लिए दिल्ली सरकार को अपनी सिफारिश भेज दी हैं.

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आयोग को औचक निरीक्षण के दौरान पता चला कि बैगर होम में जब विदेशी महिलाएं आती हैं तो वहां का स्टाफ उनके प्राइवेट पार्ट तक चैक करता है जो कि सीधा-सीधा मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं. इस बात की पुष्टि वहां के स्टाफ ने भी की थी. आयोग ने अपनी सिफारिश में इस तरह की जांच तो तुरंत प्रभाव से बंद करने के लिए कहा है. साथ ही वहां जांच के लिए उपकरण लगवाने की बात कही है.

आयोग ने जांच में पाया था कि मानसिक रूप से अक्षम महिलाएं, बैगर होम में रहने वाली अन्य महिलाओं का खाना तैयार करती हैं. आशा ज्योति होम और बैगर होम की रसोई एक ही है. एक कुक और एक सहायक ही बैगर होम और आशा ज्योति में रहने वाली 80 महिलाओं के लिए खाना तैयार करते हैं. खाना बनाने वाली महिलाएं भी साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखती हैं. आयोग ने सिफारिश की है कि बैगर होम के लिए पर्याप्त संख्या में कुक और सहायकों को नियुक्त किया जाए और मानसिक रूप से अक्षम महिलाओं से खाना बनवाना तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए.

आयोग की टीम ने निरीक्षण में पाया कि वहां रहने वाली विदेशी महिलाओं को पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े भी नहीं दिए जाते हैं. एक उज्बेक महिला ने बताया कि उसने 22 दिन से कपड़े नहीं बदले हैं क्योंकि उन्हें पहनने के लिए दूसरे कपड़े नहीं दिए गए हैं. इसके अलावा आयोग ने पाया कि यहां सोने के लिए गद्दे भी नहीं मुहैया कराये गए हैं. आयोग ने सिफारिश की है कि उन्हें पहनने के लिए पर्याप्त कपड़े और सोने के लिए गद्दे मुहैया कराये जाएं.

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बैगर होम को कई सालों से विदेशी महिलाओं को ठहराने के लिए डिटेन होम की तरह प्रयोग में लाया जा रहा है. इनके रहने के लिए किस तरह का डिटेन होम होना चाहिए इस पर गृह मंत्रालय और अन्य किसी विभाग ने आज तक कोई रुचि नहीं दिखाई है. इसके अलावा बैगर होम में रहने वाली एक महिला ने आयोग के निरीक्षण के दौरान शिकायत की थी कि फोरनर रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (एफआरआरओ) ने उसके साथ छेड़छाड़ की है. यहां शिकायत के समाधान की कोई व्यवस्था नहीं है. आयोग ने अपनी सिफारिश में लिखा है कि बैगर होम में सुधार के लिए संबंधित विभागों से चर्चा करके एक नियामावली बनानी चाहिए. साथ ही शिकायतों के निवारण के लिए जरुरत पड़ने पर पुलिस की सहायता भी ली जानी चाहिए.

बैगर होम में बीमार और गर्भवती महिलाओं की देखभाल और उनके खानपान के लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं की गई है. आयोग का मानना है कि ऐसी महिलाओं की देखभाल और उनके खानपान की विशेष व्यवस्था होना जरूरी है.

निर्मल छाया कॉम्पलेक्स में अलग-अलग गृहों में रहने वाली लड़कियों और महिलाओं की संख्या लगभग 1500 है लेकिन इन सभी की देखभाल और जांच के लिए सिर्फ 2 डॉक्टर ही हैं. नारी निकेतन में सुधार के लिए दी गई सिफारिश में भी आयोग ने डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने की बात कही थी.

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आयोग ने निरीक्षण के दौरान पाया कि यहां बने टायलेट बहुत गंदे हैं। वहां बदबू से बुरा हाल था। साफ सफाई के लिए सिर्फ एक कर्मचारी था। हैरानी की बात यह है कि सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने भी अपने जवाब में यह बात स्वीकार की है कि बैगर होम व आशा ज्योति होम में एक ही सफाईकर्मी है। यह बहुत ही निंदनीय है कि डिपार्टमेंट को भी इस बात की जानकारी है कि वहां साफ सफाई के लिए स्टाफ की कमी है लेकिन फिर भी स्टाफ की कमी को पूरा नहीं किया गया है। आयोग ने अपनी सिफारिश में सफाईकर्मी स्टाफ की कमी को जल्द से जल्द दूर करने के लिए कहा है। आयोग ने पाया है कि इस होम में पानी कीभी काफी कमी है जिस वजह से वहां रहने वाली महिलाएं सही से नहा भी नहीं पाती हैं और उन्हें एलर्जी हो गई है। आयोग का मानना है कि डिपार्टमेंट यदि समय-समय पर इन होम का निरीक्षण करेगा तो इस तरह की छोटी-छोटी समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी.

आयोग के निरीक्षण के बाद सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट से जो जवाब आया है उसमें कहा गया है कि एफआरआरओ डिटेंशन सेंटर (बैगर होम) चलाने का इच्छुक नहीं है. इसके लिए विभाग ने कई बार लिखा भी है कि उसके कर्मचारी विदेशी नागरिकों को रखने में अक्षम हैं. इसलिए एफआरआरओ को अलग से एक डिटेंशन सेंटर बनाना चाहिए और उसमें विदेशी महिलाओं को रखना चाहिए. लेकिन 2014 में उप राज्यपाल की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि एफआरआरओ की ओर से जो तीन डिटेंशन सेंटर चलाये जा रहे हैं उन्हें चलाने की जिम्मेदारी सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट की होगी. आयोग का भी मानना है कि सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट को ही डिटेंशन सेंटर चलाना चाहिए.

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आयोग ने अपने निरीक्षण और जांच के बाद पाया बैगर होम की मॉनिटरिंग न के बराबर होती है. 2014 में तत्कालीन सोशल वेलफेयर सचिव सतबीर बेदी और 2015 में इसी विभाग के निदेशक ने आखिरी बार इस होम का दौरा किया था. आयोग का मानना है कि विभाग के सबसे सीनियर ऑफिसर को महीने में एक बार इन जगहों का दौरा करना चाहिए. साथ ही इनकी निगरानी के लिए सीसीटीवी जैसे उपकरण लगाने की जरुरत भी बताई गई है.

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