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पहलवान सागर हत्याकांड के आरोपी ओलंपिक पदक विजेता रेसलर सुशील कुमार अब बुरी तरह से फंस चुके हैं. हत्या में उनकी कथित संलिप्तता पर बड़े-बड़े अखाड़ों और पहलवानों ने चुप्पी साध रखी है. आम युवा पहलवानों पर इस हत्याकांड का कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है. कई पहलवानों ने यह कहा कि सुशील और उसके साथियों की सोच का फल उन्हें मिला, हमें हमारी मेहनत का फल मिलेगा. पहलवान हार जाते हैं लेकिन कुश्ती जीतती रहेगी.
आजतक की टीम करीब 150 साल पुराने गुरु चिरंजी अखाड़ा में पहुंची. जब सभी अखाड़ों ने सागर धनखड़ हत्याकांड, सुशील कुमार के पतन, गैंग्स्टर्स के साथ रिश्तों, बाउंसर्स जैसे सवालों पर चुप्पी साधी है तो इस अखाड़े के पहलवानों ने आजतक से अपनी बात साझा की.
पहलवान दीपक ने कहा कि हम पर इसका कोई असर नहीं पड़ता. गुरु का निर्देशन ही हमारे लिए सबसे बड़ा मंत्र है, हम उसी पर चलते हैं.
सागर हत्याकांड और पहलवान सुशील के पतन का युवा पहलवानों की तपस्या, सोच, डर और करियर पर कैसा असर पड़ रहा है? सवाल तो बस सबके जेहन में यही उमड़ घुमड़ रहा है लेकिन जवाब तलाशने निकलिए तो बड़े अखाड़े, बड़े पहलवान, बड़े नाम तो इन सवालों पर बिलकुल खामोश हो जाते हैं. बिना कैमरे के तो खूब बातें करते हैं लेकिन कैमरा ऑन करने से पहले ही हाथ जोड़कर सिर्फ यही कहते हैं, हमें बख्श दीजिए भाई! हमें कुछ नहीं बोलना.
सुशील कुमार: ओलंपिक विनर जो बन गया किलर!
इस खामोशी की वजह सुशील के ससुर महाबली सतपाल की धाक, इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं के लिए पहलवानों के चयन में अच्छा खासा दखल और जाट कार्ड का है.
यमुना किनारे करीब डेढ़ सौ साल पुराना गुरु चिरंजी अखाड़े में कुछ युवा पहलवान जोर आजमाते मिले. उनके गुरु विक्रम वशिष्ठ ने भी पहले तो यही कहा कि पहलवान, आसपास की घटनाओं से भी बेखबर होता है. उसे तो सिर्फ एक ही लक्ष्य दिखता है, अपनी कसरत और दांव पेंच. उसे इन घटनाओं से क्या लेना देना.
युवा पहलवानों में से एक, पसीने और मिट्टी में लथपथ अमन यादव ने कहा कि एक की गलती से सबका करियर और मेहनत थोड़े ही बेकार होती है. उसने अपना देखा हम अपना देखेंगे. आखिर सबकी सोच भी तो समान नहीं होती. कुश्ती लड़ने वाले हर पहलवान का नजरिया, खेल और जीवन में अलग अलग होता है.
पढ़ाई, तैराकी और कुश्ती तीनों में मेहनत कर रहे युवा खिलाड़ी हृदय वशिष्ठ से भी सवाल किया तो उन्होंने ने अलग जवाब दिया. हृदय का कहना है कि मेडल लाना, तिरंगा ओढ़कर देश का नाम रोशन करने की तस्वीर ही हमेशा ख्वाबों, में निगाहों में होती है. यही लक्ष्य है जो रोज अखाड़े की मिट्टी चूमने के लिए खींच लाती है.
'हमें नहीं पड़ता कोई फर्क'
सात साल का नन्हा 'पहलवान' श्रेष्ठ भी अपने से बड़े पहलवानों को देख देख कर कुश्ती के गुर और वर्जिश के तौर तरीके सीख रहा है. पहलवानों की बात सच लगने लगी कि जुनून, संस्कार और सुडौल शरीर बनाने के हसीन ख्वाब सभी को अखाड़ों की ओर बरबस धकेलते हैं. अखाड़े में वर्जिश कर रहे दीपक शर्मा ने कहा कि हम तो अपने हिस्से का हंड्रेड परसेंट देंगे. उससे कम में हमारे उस्ताद नहीं मानने वाले. इन घटनाओं का कोई फर्क किसी पहलवान पर नहीं पड़ने वाला है.
चिरंजी पहलवान द्वारा स्थापित इस अखाड़े से थोड़ी ही दूर पर यमुना नदी है. सुबह-शाम पहलवान कसरत व्यायाम से पहले अखाड़े की मिट्टी संवारते हैं. गुरु चिरंजी पहलवान के वंशज विक्रम वशिष्ठ के मुताबिक अखाड़े की मिट्टी में हर साल कई कट्टे मेहंदी, हल्दी डाली जाती है और कई पीपे सरसों का शुद्ध तेल. मिट्टी चिकनी, भुरभुरी और औषधीय गुणों से युक्त हो जाती है. अखाड़ों को पहलवान पवित्र भूमि मानते हैं, तीर्थ की तरह. रोज मिट्टी पलटना, लकड़ी के तख्ते से समतल करना पहलवानों के लिए अनिवार्य सेवा है.
'ख्वाब में खौफ का क्या काम'
यहीं अखाड़ा खोदने और समतल करने में मशगूल सागर पहलवान की भी सोच यही है कि जब एक सपना आंखों में बसा हो तो किसी दूसरे विषय की एंट्री नहीं हो पाती. यानी ख्वाब में खौफ का क्या काम? इन पहलवानों को माता पिता के आदेश और गुरु के कठोर निर्देशन में कुश्ती करते समय और बाद में खाली समय में भी दांव पेंच ही दिमाग में घूमते रहते हैं. पहलवान अमन यादव का कहना है कि हमारी जिंदगी हंड्रेड परसेंट हमारी नहीं होती. हमारे माता पिता और गुरु का भी अधिकार होता है. इसी गणित के साथ हम अपना सौ फीसद तय करते हैं.
कुश्ती को जीने वाले बब्बू खलीफा पुरानी दिल्ली के अमीर परिवार से हैं. गुरु हनुमान की तरह ही इनका असली नाम प्रशांत रोहतगी है. उनका कहना है कि जुनून के आगे ना तो कोई खौफ होता है ना कोई रोक टोक. बस सच्चा प्यार होना चाहिए कुश्ती के लिए. लक्ष्य और अनुशासन आपको कुछ और सोचने ही नहीं देते. तूफान आते हैं तो पेड़ ही उखड़ते हैं. दूब और घास जमे रहते हैं. बस कुश्ती वही घास है और ये पहलवान भी.
इस वजह से बड़े अखाड़े-पहलवानों ने साधी है चुप्पी
सागर हत्याकांड पर दिल्ली के बड़े अखाड़ों ने चुप्पी साध रखी है. बड़े पहलवान भी इस हत्याकांड पर बोलने के कतरा रहे हैं. इसके पीछे की वजह सुशील कुमार के ससुर महाबली सतपाल की धाक मानी जा रही है. महाबली सतपाल की धाक देश से लेकर विदेश तक है. अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए पहलवानों के चयन में उनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बड़ी भूमिका रहती है.
सुशील कुमार पर अखाड़ों और पहलवानों की चुप्पी की वजह खाप, कुनबे, भाईबंदी और जाट कार्ड को मानी जा रही है. यही वह फैक्टर है, जिसकी वजह से लोगों ने चुप्पी साधी है. अखाड़ों में जोर आजमाइश कर रहे पहलवानों का मिशन साफ है कि उन्हें अपना दिमाग आपराधिक दांव पेंच पर नहीं खर्च करना है, वे अपना दिमाग कुश्ती में लगाना चाहते हैं, उसे ही बेहतर मानते हैं.
'किसी भी घटना का नहीं पड़ता है असर'
एक पहलवान ने कहा कि कसरत और मेहनत भी हसरत की तरह है जितना करो उतना कम है. अपनी मेहनत का फल हमें ही मिलेगा. उनकी करनी उनके साथ. पहलवानों के साथ उस्तादों की भी यही सोच है. अखाड़े में मौजूद बब्बू खलीफा ने कहा कि लड़के तो ओलंपिक, मेडल, शरीर बनाने की हसरत लेकर यहां आते हैं, दिन रात जुटते हैं. कुछ घटनाओं का कोई असर लंबे समय तक नहीं होता. उनके सपने उनको कुछ और सोचने नहीं देते.
यानी मेहनत, तपस्या और जंग के अलग-अलग रंग, अलग अलग सोच. अधिकतर पहलवानों को मीडिया में चल रहे फितूर और सुर्खियों से लेना देना नहीं बल्कि अपने अखाड़ों, जोर आजमाइश, खुराक, दांव पेंच, मेडल और दुनिया भर में अपनी मेहनत की रोशनी बिखेरने की ललक है.
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