दिल्ली में विधानसभा चुनाव का माहौल बन चुका है. गली-नुक्कड़ों में भी राजनीतिक चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं. दिल्ली सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड में अक्सर अपने स्कूलों और शिक्षा के अच्छे बजट की चर्चा करती है. अब जब चुनाव सामने हैं, हमने शिक्षा जगत से जुड़े लोगों से जाना कि उन्हें सरकार से क्या उम्मीदें हैं.
'सरकारी स्कूलों में माहौल बदले, निजी में बंद हो लूट'
दिल्ली अभिभावक संघ की अध्यक्ष अपराजिता गौतम कहती हैं कि राजधानी के बच्चों के लिए सबसे जरूरी है 'पढ़ाई के लिए माहौल'. यहां कभी प्रदूषण के कारण स्कूल बंद करने पड़ते हैं तो कभी बम की धमकी तो कभी बाढ़ तो कभी कोई और कारण. यहां जो भी सरकार बनती है उसकी पहली चुनौती तो प्रदूषण पर कंट्रोल करने की होगी. जिस तरह फेफड़ों की समस्या बच्चों में बढ़ रही हैं, वो चिंताजनक है. इसके अलावा दूसरा मुद्दा सरकारी स्कूलों में खाली पड़े पदों पर शिक्षकों की भर्ती और उन शिक्षकों को सिर्फ शिक्षण कार्य में लगाना है. शिक्षकों की तमाम सरकारी कामों में ड्यूटी लगाने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है.
वहीं निजी स्कूलों में फीस बढ़ोत्तरी पर लगाम लगाना जरूरी है. दिल्ली सरकार एक तरफ दावा करती है कि उसने 10 साल में फीस नहीं बढ़ने दी, लेकिन कोर्ट के ढेरों केस उदाहरण हैं कि किस तरह स्कूलों ने फीस बढ़ाई है. अपराजिता कहती हैं कि ऐसे भी दस्तावेज हैं जिसमें शिक्षा विभाग ने बैक डेट में जाकर फीस बढ़ाने की परमिशन दी है. प्राइवेट स्कूलों की फीस में लगाम लगना जरूरी है. आंकड़े
बताते हैं कि कैसे गरीब बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों में एक तिहाई सीटें रह गई हैं. पांच-छह साल पहले जहां 66 हजार सीटें हुआ करती थीं, वहीं पिछले साल महज 22 हजार के आसपास निकली हैं. ये बाकी दो तिहाई सीटें गायब हो गईं.
'यूथ स्पेशल बसें, रेंट कंट्रोल एक्ट लागू हो, कैंपस के आसपास अंधेरा दूर हो'
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रौनक खत्री कहते हैं कि दिल्ली में छात्रों के सामने प्रदूषण सबसे बड़ा मुद्दा है. यहां छात्रों के लिए रोजगार की भारी कमी है. दिल्ली में सड़कों का बुरा हाल है. यहां छात्रों के लिए मुश्किलें ही मुश्किले हैं. बाहर से आकर पढ़ने वाले छात्रों के लिए सस्ते पीजी नहीं है, यहां मनमानी किराया वसूल किया जाता है.
डीयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष तुषार डेढ़ा ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने कहा था कि हर साल 12 नये कॉलेज खोलेंगे लेकिन ये वादा पूरा नहीं हुआ. दिल्ली सरकार के जो कॉलेज चल रहे हैं, उनमें फंड न रोके जाएं. छात्रों के मुद्दे की बात करें तो जिस तरह महिलाओं के लिए फ्री बस चलती है, सरकार वैसे ही यूथ स्पेशल बसें चलाए. छात्र प्रतिनिधि के तौर पर हमने सरकार से यह मांग भी की लेकिन इन्होंने कह दिया था कि बसों की कमी है जो पार्टी ये मुद्दे उठाएगी, हम उसे ही वोट देंगे. आप ये देखिए कि दिल्ली के अंदर पीडब्ल्यूडी की सड़कें खराब हैं, लाइटें नहीं है, कैंपस और कॉलेजों के पास अंधेरा है, जहां बड़ी संख्या में छात्र रहते हैं, वहां भी अंधेरा है. तुषार भी पीजी का मुद्दा उठाते हुए कहते हैं कि दिल्ली के अंदर जो पीजी और हॉस्टल चल रहे हैं, वहां रेंट कंट्रोल एक्ट लागू हो. साथ ही इन हॉस्टलों में छात्र सुरक्षा के मानक तय हों.
दिल्ली विश्वविद्यालय विद्वत परिषद के सदस्य प्रो राजेश झा कहते हैं कि मौजूदा दिल्ली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम किया है. केंद्रीय बजट में जहां शिक्षा बजट में कमी आई है, वहीं दिल्ली सरकार के शिक्षा बजट आवंटन में बढ़ोत्तरी हो रही है. अगर मुद्दे की बात करें तो दिल्ली सरकार के एडेड कॉलेजों में शिक्षकों के पद भरे जाएं. यहां एलजी का हस्तक्षेप कम हो. दिल्ली सरकार के विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति में केंद्र में सत्ताधारी दलों का हस्तक्षेप कम होना चाहिए.
जामिया के आसपास विकास की कमी पर भी बात हो
जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र अतीक अहमद का कहना है कि जामिया विश्वविद्यालय के इलाके के आसपास आज भी किताबों आदि की अच्छी मार्केट की कमी है. जिस तरह केंद्रीय विश्वविद्यालय के आसपास हाइजीनिक माहौल होना चाहिए, वैसा इतने सालों में भी नहीं हो पाया. इस इलाके में जाम की समस्या है. यहां का विकास जितना अच्छा होना चाहिए, उतना नहीं हुआ. जामिया इलाके में अमानतुल्लाह विधायक रहे हैं, वो जामिया की छात्र राजनीति में एक्टिव रहे हैं. लेकिन क्या कारण हैं कि उन्होंने भी यहां विकास की ओर ध्यान नहीं दिया.
जेएनयू में वॉटर सप्लाई बने मुद्दा
जेएनयू छात्र मो. सादान का कहना है कि यूनिवर्सिटी के कई हॉस्टल्स में हमेशा पानी की सप्लाई की दिक्कत रहती है. दिल्ली में चुनाव लड़ रही राजनीतिक पार्टियों को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए. यही नहीं राजधानी में महिला सुरक्षा को मुद्दा बनाना जरूरी है. इसके लिए पुलिस को ही जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते. अगर स्कूलों में सेक्स एजुकेशन पढ़ाई जाए, साथ ही अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए सरकार तो लोगों में बचपन से ही महिला मुद्दों के लिए संवेदनशीलता पैदा की जा सकती है. इसके अलावा दिल्ली में चुनी सरकार ऐसी पॉलिसी बनाए जिसमें छात्रों का धार्मिक मुद्दों में इस्तेमाल न हो, वे न्यूट्रल पर्सनैलिटी के तौर पर विकसित हों. यहां दिल्ली में जो प्रवासी मजदूरों के बच्चे रहते हैं, उन्हें फोर्स लेबर बनना पड़ता है. उनके शिक्षा और स्वास्थ्य को भी मुद्दा बनाया जाना चाहिए.