दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय शहरी विकास और उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने मुख्यमंत्री पद के लिए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का नाम आगे बढ़ाया था. उन्होंने कहा था 'हम मनोज तिवारी के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं और उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर ही दम लेंगे.' वहीं, जोश में आए कार्यकर्ताओं ने जय श्रीराम के साथ अबकी बारी, मनोज तिवारी के नारे लगाए.
हालांकि जब ये मामला तूल पकड़ा तो तीन घंटे बाद ही हरदीप पुरी अपने बयान से पलट गए. हरदीप पुरी ने ट्वीट कर अपनी सफाई में कहा था, 'दिल्ली में बीजेपी विजय की ओर अग्रसर है. पार्टी ने अब तक मुख्यमंत्री पद के लिए किसी को नामित नहीं किया है. मनोज तिवारी प्रदेश अध्यक्ष हैं. बीजेपी उनके नेतृत्व में पूरे जोश से काम कर रही है. ऐसे में सवाल है कि आखिर क्या वजह है जिसके चलते बीजेपी पसोपेश में फंसी हुई है.
मनोज तिवारी बनाम केजरीवाल बनेगी?
बीजेपी मनोज तिवारी के चेहरे को आगे चुनावी मैदान में उतरेगी तो दिल्ली का सियासी संग्राम मनोज तिवारी बनाम केजरीवाल के बीच होगा. ऐसे में केजरीवाल का चेहरा मनोज तिवारी पर भारी पड़ सकता है. क्योंकि केजरीवाल ने पिछले पांच साल में अपने काम के दम पर दिल्ली के कद्दावर चेहरे के तौर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं, जबकि बीजेपी की अभी तक की यही कोशिश है कि केजरीवाल बनाम नरेंद्र मोदी के बीच सियासी संग्राम हो, ताकि पार्टी को जबरदस्त सियासी फायदा मिल सके.
पंजाबी वोटरों के खिसकने का डर
भोजपुरी अभिनेता और उत्तर पूर्वी दिल्ली से बीजेपी सांसद मनोज तिवारी मूलरूप से बिहार के रहने वाले हैं. ऐसे में मनोज तिवारी के नाम पुर्वांचली वोट जहां एकजुट होगा तो वहीं पंजाबी वोट के खिसकने का भी बीजेपी को डर है. दिल्ली में पंजाबी वोटर काफी अहम माने जाते हैं और बीजेपी की उनमें अच्छी पकड़ भी है. ऐसे में बीजेपी मनोज तिवारी को आगे कर पंजाबी वोटरों को नाराज करने का जोखिम भरा कदम नहीं उठाएगी.
किरण बेदी का दांव पड़ा था भारी
बीजेपी ने साल 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के केजरीवाल के खिलाफ पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी के चेहरे को आगे कर दिल्ली में चुनाव लड़ा था. बीजेपी संसदीय दल बोर्ड ने किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. बीजेपी ने किरण बेदी को केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन की सीट कृष्णानगर से चुनाव लड़ाया था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इतना ही नहीं किरण बेदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से बीजेपी को कोई लाभ नहीं मिला था. बीजेपी को महज 3 सीट ही दिल्ली में मिल सकी थी, जबकि केजरीवाल ने जबरदस्त जीत हासिल की थी.