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दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में आरोपियों के वकील महमूद प्राचा के दफ्तर पर हाल ही में दिल्ली पुलिस ने छापेमारी की, जिसका दिल्ली बार काउंसिल ने विरोध किया है. काउंसिल ने इस मसले पर गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर अपनी नाराजगी जाहिर की.
गृह मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में बार काउंसिल ने कहा कि जब भी किसी वकील के खिलाफ कोई मामला होता है, तो दिल्ली पुलिस एक्शन लेने से पहले बार काउंसिल को इस मामले में सूचित करती है, लेकिन महमूद प्राचा के दफ्तर में सर्च करने से पहले इसकी कोई जानकारी बार काउंसिल को नहीं दी गई.
दिल्ली बार काउंसिल ने आगे कहा है इस मामले में वह तथ्यों से जुड़ी जानकारी की गहराई में नहीं जा रहे हैं, लेकिन पुलिस की तरफ से जो 15 घंटे की सर्च वकील के दफ्तर के अंदर की गई, उसमें वकील और पुलिस के बीच में बने नियमों का पालन नहीं किया गया.
काउंसिल ने गृह मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में यह कहा है कि वकील के दफ्तर पर पुलिस की तरफ से की गई इस सर्च को लेकर वकीलों के बीच में आक्रोश है. न्यायिक प्रक्रिया में वकीलों का अहम योगदान है और एडवोकेट एक्ट 1961, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के रूल्स में आम लोगों को न्याय दिलाने में वकीलों का बड़ा योगदान है. इंडियन एविडेंस एक्ट के सेक्शन 126 और 129 में वकालत करने वाले किसी भी वकील के पास अपने क्लाइंट से जुड़ी जानकारियां सुरक्षित रखने का अधिकार है.
मालूम हो कि एडवोकेट महमूद प्राचा पर आरोप है कि उन्होंने कथित रूप से एक फर्जी हलफनामा दिया और हिंसा पीड़ितों को झूठे बयान देने के लिए मजबूर किया. साथ ही यह भी आरोप है कि प्राचा ने एक अन्य वकील के हस्ताक्षर वाला शपथ पत्र आगे बढ़ाया था, जबकि वो वकील तीन साल पहले मर चुका था. अदालत ने इस संबंध में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को आदेश दिए, तभी पुलिस ने इस मामले में जांच शुरू की.
बता दें कि अदालत ने निर्देश दिया था कि प्राचा के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए स्पेशल सेल या अपराध शाखा को निर्देश जारी करें. इस मामले पर जानकारी देते हुए स्पेशल सेल के स्पेशल सीपी नीरज ठाकुर ने बताया कि अदालत ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. अदालत द्वारा जारी किए गए सर्च वारंट को अमल में लाया गया.
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