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दिल्ली: प्लाज्मा डोनर को मां के लिए नहीं मिला बेड, होम आइसोलेशन में ही तोड़ा दम

42 साल के सैयद युसूफ की कहानी बड़ी करुणाभरी है. वो पिछले साल नवंबर से बेरोजगार हैं, वो ग्रेटर नोएडा में कार के पुर्जे बनाने वाली एक कंपनी में काम करते थे, लेकिन नवंबर में ये कंपनी बंद हो गई.

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दिल्ली के अस्पताल में इलाज कराती महिला (फोटो- पीटीआई)
दिल्ली के अस्पताल में इलाज कराती महिला (फोटो- पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • प्लाज्मा डोनेशन सर्टिफिकेट लेकर भटकते रहे यूसुफ
  • मां के लिए 6 अस्पतालों के चक्कर काटे, नहीं मिला बेड

यूसुफ के एक हाथ में उसकी मां की कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट थी, तो दूसरे हाथ में अपना प्लाज्मा डोनेशन सर्टिफिकेट. यूसुफ को अस्पताल में अपनी बीमार मां के लिए एक अदद बेड चाहिए था. वो दो दिन में दिल्ली के लगभग 6 अस्पतालों/कोविड केंद्रों में अंदर गये...बड़ी उम्मीद के साथ. फिर बाहर आये बड़ी नाउम्मीदी के साथ. लेकिन दूसरों की जान बचाने के लिए प्लाज्मा दान करने वाले यूसुफ अपनी मां के लिए एक बिस्तर नहीं तलाश सके और उनकी अम्मी होम आइसोलेशन में ही दुनिया को छोड़कर चली गईं. 

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भावुक कर देने वाली ये कहानी दिल्ली के दिलशाद गार्डन के सैयद यूसुफ की है, जिन्हें पिछले 3-4 दिन में जिन मानसिक हालत से होकर गुजरना पड़ा है उसे वो शायद कभी नहीं भूल पाएंगे.  

रविवार की सुबह यूसुफ की मां 69 साल की सिफाली बेगम सैयद दुनिया छोड़कर चली गईं. सैयद यूसुफ अब टूटे दिल में कई कड़वी यादों को लिए हुए हैं. 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सैयद यूसुफ इस घटना से टूट गये हैं. यूसुफ ने कहा, "जब दूसरे लोगों की जरूरत थी, तो मैं वहां मौजूद रहा, मैंने दो बार प्लाज्मा दान किया, सिर्फ इसलिए क्योंकि मुझे लगा कि मैं किसी की जिंदगी बचाऊंगा. लेकिन जब मुझे मदद की दरकार पड़ी...तो लोग कहां थे.?"

42 साल के सैयद यूसुफ की कहानी बड़ी करुणाभरी है. वो पिछले साल नवंबर से बेरोजगार हैं, वो ग्रेटर नोएडा में कार के पुर्जे बनाने वाली एक कंपनी में काम करते थे, लेकिन नवंबर में ये कंपनी बंद हो गई, इससे पहले वो सितंबर में कोरोना पॉजिटिव हुए थे, इसके बाद उन्होंने दो बार प्लाज्मा डोनेट किया था. पिछले साल अक्टूबर और नवंबर में.  

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यूसुफ की मां पिछले गुरुवार को बीमार पड़ी थीं. कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और उनका ऑक्सीजन लेवल नीचे जाने लगा. 

शुक्रवार से सैयद यूसुफ अस्पताल की तलाश करने लगे. जीटीबी अस्पताल में उन्हें बेड खाली नहीं मिला, यमुना स्पोर्ट्स् कॉम्पलेक्स में भी बेड खाली नहीं था. 

उन्होंने कहा कि उस दिन 7 शाम से 11 बजे रात तक यूसुफ ने अपनी मां को ऑटो में लेकर कई अस्पतालों के चक्कर लगाए लेकिन कामयाबी नहीं मिली. यूसुफ बताते हैं कि वो पहले दिलशाद गार्डन के दयानंद अस्पताल में गए, वहां पर बेड तो था लेकिन वेंटिलेटर नहीं, डॉक्टरों ने कहा कि उनकी मां कमजोर थी और उन्हें वेंटिलेटर जरूरत थी. मैंने उनसे ऑक्सीजन सिलेंडर की गुहार लगाई लेकिन कुछ नहीं मिला.  

चूंकि यूसुफ की मां बीमार थीं इसलिए यूसुफ ने उन्हें घर में छोड़ दिया और रात 3 बजे तक बेड खोजते रहे. यूसुफ को कामयाबी तो नहीं मिली, बस कुछ जानकारी मिली. 

शनिवार को यूसुफ ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए शाहदरा गए. यहां उन्हें जवाब मिला कि ऑक्सीजन तो है लेकिन सिलेंडर यूसुफ के पास नहीं था. 

इसके बाद यूसुफ जीवन ज्योति अस्पताल गये. फिर वो राजीव गांधी सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल पहुंचे, यहां भी उनकी मां भर्ती नहीं हो सकीं. इसके बाद बेजार सैयद यूसुफ शनिवार को 3.30 बजे घर लौट आये. तब तक उनकी मां की तबीयत बिगड़ चुकी थी. वो अचेत हो चुकी थीं और खाना-पीना बंद कर दिया था. अगले कुछ घंटों में यूसुफ ने 6000 रुपये में एक ऑक्सीजन सिलेंडर का जुगाड़ किया. लेकिन तबतक उनकी मां का ऑक्सीजन लेवल 32 पहुंच चुका था. इससे पहले यूसुफ ने झिलमिल के ESIC अस्पताल में भी अपनी मां को भर्ती कराने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली. आखिरकार रविवार को यूसुफ की मांग दुनिया को छोड़कर चली गईं.

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