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दिल्ली: हत्या के दोषी को आजीवन कारावास की सजा, कोर्ट ने बताया क्यों नहीं दिया 'मृत्युदंड'

दिल्ली में एक हत्या के मामले में कोर्ट ने दोषी पाए गए शख्स को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. हालांकि पीड़ित पक्ष ने इस मामले में फांसी की सजा की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने इस केस को रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मानने से इनकार कर दिया और इसके पीछे कारण भी बताया. कोर्ट ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के एक मामले का उदाहरण भी दिया.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

दिल्ली की एक अदालत ने हत्या के दोषी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, लेकिन उसे मौत की सजा देने से इनकार कर दिया.कोर्ट ने कहा कि यह मामला रेयरेस्ट ऑफ द रेयर की श्रेणी में नहीं आता है.

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अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एकता गौबा मान ने यह फैसला आशीष उर्फ बबलू के खिलाफ सुनाया, जिसके खिलाफ प्रसाद नगर पुलिस स्टेशन में हत्या और आर्म्स एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.

कोर्ट के 31 जनवरी के आदेश के अनुसार, दोषी आशीष ने सार्वजनिक स्थान पर आया, अपनी जेब से देसी पिस्तौल निकाली, उसे पीड़ित पारस के सिर पर रखा और गोली मारकर उसकी हत्या कर दी.'

कोर्ट ने कहा कि यह गंभीर मामला है क्योंकि एक 25 साल के युवक की नृशंस हत्या कर दी गई. संविधान प्रत्येक नागरिक को जीवन जीने का अधिकार देता है और कानून भी यही कहता है कि 'खुद भी जिएं और दूसरों को भी जीने दें.

दोषी की पारिवारिक परिस्थितियों पर विचार

अदालत ने दोषी की पारिवारिक स्थिति को भी ध्यान में रखा. जज ने कहा कि अपराध के समय दोषी की उम्र 34 साल थी और वह अपने परिवार का इकलौता कमाने वाला व्यक्ति था. वह अपने बुजुर्ग माता-पिता और दो नाबालिग बच्चों की देखभाल करता था. अदालत ने यह भी माना कि आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना है.

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कोर्ट ने 1980 के सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया, जिसमें "rarest of the rare doctrine" की व्याख्या की गई थी. इस सिद्धांत के अनुसार, 'हर हत्या क्रूर होती है, लेकिन कुछ हत्याओं की क्रूरता चरम सीमा तक पहुंच जाती है, तभी विशेष कारणों से मृत्युदंड दिया जा सकता है.'

भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत आजीवन कारावास और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है जो मृतक के पिता को मुआवजे के रूप में दिया जाएगा. शस्त्र अधिनियम के तहत उसे तीन साल की सजा सुनाई गई है. दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी.

 

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