‘कोरोना वॉरियर्स’...वो कर्मवीर जो कोरोना वायरस से जंग में फ्रंटलाइन पर मोर्चा संभाल रहे हैं. Covid-19 मरीजों के इलाज में लगे डॉक्टर्स, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ संकट की इस घड़ी में जिस तरह का जज्बा दिखा रहे हैं वो बेमिसाल हैं. हेल्थकेयर वर्कर्स समेत तमाम कोरोना वॉरियर्स के जज्बे को सलाम करने के लिए देशवासियों ने तालियां बजाईं, दीये जलाए, फूल बरसाए.
लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि दिन-रात मरीजों का इलाज करने वाले एक युवा डॉक्टर को अपना ही घर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाए? और उसे होटल में कमरा लेकर रहना पड़े? दिल्ली के मालवीय नगर में सरकारी अस्पताल में तैनात डॉ मणि शंकर माधव के साथ ऐसा ही हुआ है. उन्हें लाजपत नगर में ओयो रूम लेकर रहना पड़ रहा है. डॉ माधव के मुताबिक कम से कम लॉकडाउन 3.0 खत्म होने तक यानि 17 मई तक वो यही रहेंगे.
36 साल के डॉ माधव रिहायशी सोसायटी के फ्लैट में अकेले रह रहे थे. उनकी पत्नी भी डॉक्टर हैं जो राजस्थान के भरतपुर में सरकारी अस्पताल में ड्यूटी दे रही हैं. फ्लैट में डॉ माधव का पेट डॉग भी उनके साथ था. अब उसे भी उन्हें अपने साथ होटल के रूम में लाना पड़ा है.

दिल्ली में डॉ माधव पिछले कुछ समय से फ्रंटलाइन में ड्यूटी निभाते आ रहे हैं. सरकारी अस्पतालों में ड्यूटी की वजह से उनके काम के घंटे भी कुछ निश्चित नहीं हैं. राजधानी में निजामुद्दीन जब कोरोना हॉटस्पॉट बना तब भी डॉ माधव इपिसेंटर में रह कर अपनी ड्यूटी को अंजाम देते रहे. 15 मार्च से 31 मार्च तक उन्होंने दिल्ली के राजीव गांधी केंसर अस्पताल में ड्यूटी दी. वहां उन्हें मेडिकल ऑफिसर के नाते रिकॉर्ड तैयार करना था.
कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें...
ड्यूटी को लेकर डॉ माधव को कोई शिकायत नहीं. वो आहत तब हुए जब उनकी अपनी रिहायशी सोसायटी में ही उनसे लोग दूरी बनाने लगे. उनसे ऐसा बर्ताव किया जाने लगा जैसे कि वो वायरस लेकर सोसायटी में आ रहे हों और फैला रहे हों.
डॉ माधव ने आजतक को बताया, "मुझे देखकर लोग रास्ता बदलने लगे. जैसे मैं लिफ्ट इस्तेमाल करता तो वो ऐसा करने से कतराते. मैं जिस फ्लोर पर रहता हूं वहां लोग बाहर आने से डरते. घर पर काम करने वाली मेड से कह दिया गया कि वो और घरों में काम नहीं कर सकती. क्योंकि ऐसा करने से वायरस फैलने का खतरा है."
जिस डॉक्टर का हीरो की तरह सम्मान किया जाना चाहिए था, सोसायटी में जानबूझकर लोग उससे बचने लगे. दरअसल, कुछ लोगों के दिलों में महामारी को लेकर बैठा खौफ और कुछ जागरूकता और सही जानकारी का अभाव. ऐसे में लोगों के बर्ताव का बुरा नतीजा हेल्थकेयर वर्कर्स को भुगतना पड़ रहा है.
डॉ माधव के फ्लैट में खाना बनाने का काम मेड करती थी. डॉक्टर के मुताबिक 3 मई को दिल्ली सरकार के आदेश के बावजूद मेड को फ्लैट में नहीं आने दिया जा रहा था. डॉ माधव ने कहा, "मैं सिंगल रहता हूं. खाने को लेकर मुझे दिक्कत हुई. बाहर का खाना खाने से वेट लॉस हो गया और इम्युनिटी कम हो गई. मेरे लिए इम्युनिटी मैटर करती है. मैं अस्पताल में काम करता हूं, वहां वायरस का इनफ्लो है."
कोरोना पर फुल कवरेज के लिए यहां क्लिक करें
डॉ माधव ने ऐसे में अपनी परेशानी को जताते हुए ट्वीट किया. सीएम को चिट्ठी भी लिखी. अधिकारियों ने दखल दिया. लेकिन सोसायटी प्रबंधन मानने को तैयार नहीं कि डॉ माधव के साथ गलत बर्ताव किया गया. उल्टा डॉ माधव को ही इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया गया.

सोसायटी के महासचिव बीडी विरदी ने कहा, "डॉक्टर माधव को गलतफहमी हुई थी. उन्हें भ्रम हो गया था कि हम उनके साथ भेदभाव कर रहे हैं. उनको गलत इंप्रेशन था. वह 15 से 31 मार्च तक ड्यूटी पर थे. मैंने तो उनको स्पेशल परमिशन दी है. हमें बाद में पता चला कि वो ड्यूटी के बाद क्वारनटीन पर थे."
बता दें कि Covid-19 मरीजों के इलाज से संबंधित ड्यूटी देने वाले हेल्थकेयर स्टाफ को भी निश्चित अवधि पूरी करने के बाद क्वारनटीन में जाने की अनिवार्यता है.
डॉ माधव ने बताया, "अगर मैंने उस चीज को समझाने की कोशिश की तो लोगों ने मुझे पर उल्टा आरोप लगाया कि मैं एडवांटेज ले रहा हूं. डॉक्टर के नाते सिम्पेथी (हमदर्दी) बटोरने की कोशिश कर रहा हूं ऐसी बात नहीं है, आप सावधानी बरत रहे हैं, ये अच्छी बात है. आप यह मत कहिए कि हम (कोरोना) फैला रहे हैं, क्योंकि मैं डॉक्टर हूं और मैं काम कर रहा हूं."
आखिरकार मेड को डॉक्टर के फ्लैट में काम के लिए आने की इजाजत दी गई. मेड ने डॉक्टर को बताया कि सोसाइटी में तीन घरों ने उसे काम पर आने से मना कर दिया है. मेड की ये बात सुनकर डॉ माधव के सब्र का बांध जवाब दे गया और उन्होंने फ्लैट छोड़ कर अस्थायी रूप से ओयो रूम में शिफ्ट करने का फैसला किया.

डॉ माधव के साथ ऐसा बर्ताव करने वालों को कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुआ एक वीडियो जरूर देखना चाहिए. इसमें दिखाया गया कि अमेरिका के साउथ विंडसर में Covid-19 मरीजों के इलाज में लगी भारतीय मूल की डॉक्टर उमा मधुसूदन के प्रति कैसे लोगों ने सम्मान जताया. उनके घर के बाहर से एक-एक कर गाड़ियों का काफिला गुजरा और उनमें बैठे लोग डॉक्टर उमा को सैल्यूट करते हैं, हाथ हिला कर अभिवादन करते रहे.
देश-दुनिया के किस हिस्से में कितना है कोरोना का कहर? यहां क्लिक कर देखें
डॉ माधव के साथ जो हुआ, बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है. Covid-19 की वजह से दुनिया भर में अस्पताल वॉर जोन बने हुए हैं और सोल्जर्स की तरह हेल्थकेयर वर्कर्स दिन-रात इंसानियत की सेवा में लगे हैं. ऐसे में उन लोगों के लिए क्या कहा जाए जो ‘कोरोना वॉरियर्स’ को ही ‘कोरोना कैरियर्स’ समझने की भूल करते हैं.