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कहने को 'इको-फ्रेंडली' है दिल्ली का यह वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट, लाखों लोगों की सांसों में घोल रहा जहर

जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और आईआईटी-दिल्ली के विशेषज्ञों की मदद से इन सैंपल्स का विश्लेषण किया गया, जिसमें खतरनाक रूप से उच्च स्तर की भारी धातुएं और प्रदूषक पाए गए. कैडमियम का स्तर स्वीकार्य सीमा से 19 गुना, मैंगनीज का 11 गुना, आर्सेनिक का 10 गुना, लेड (सीसा) का चार गुना और कोबाल्ट का तीन गुना दर्ज किया गया.

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ओखला वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट दिल्ली नगर निगम और जिंदल ग्रुप का एक जॉइंट वेंचर है. (Photo: Aajtak)
ओखला वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट दिल्ली नगर निगम और जिंदल ग्रुप का एक जॉइंट वेंचर है. (Photo: Aajtak)

दिल्ली के ओखला में बने 'वेस्ट टू एनर्जी' प्लांट के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स की चौंकाने वाली इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट सामने आई है. रिपोर्ट के मुताबिक इस प्लांट की वजह से आसपास के इलाकों की हवा जहरीली बन चुकी है. हवा में आर्सेनिक और लेड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ गई है, जिससे 10 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार, तिमारपुर-ओखला वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट से निकलने वाली खतरनाक राख को अवैध रूप से दक्षिण-पूर्वी दिल्ली की बदरपुर सीमा के पास के आवासीय इलाकों, स्कूलों और बच्चों के पार्कों के करीब डंप किया जा रहा है, जिससे पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है. 

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दिल्ली में और अधिक कूड़े के पहाड़ न बने, इसके पर्यावरण-अनुकूल समाधान के रूप में 2012 में इस संयंत्र की स्थापना हुई. इसके पीछे उद्देश्य यह था कि वेस्ट मैनेजमेंट भी हो जाएगा और ऊर्जा की कमी भी पूरी हो जाएगी. इस वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में प्रतिदिन 2,000 टन कचरे से लगभग 23 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था. दिल्ली नगर निगम के साथ पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत जिंदल ग्रुप के जेआईटीएफ इन्फ्रालॉजिस्टिक्स द्वारा संचालित ओखला प्लांट को 'ग्रीन मॉडल' के रूप में पेश किया गया. हालांकि, NYT की रिपोर्ट बताती है कि यह फैसिलिटी प्रदूषण नियंत्रण में विफल रही है. पांच साल तक चली इंवेस्टिगेशन के दौरान, NYT ने 2019 से 2023 के बीच संयंत्र के आसपास से हवा और मिट्टी के 150 सैंपल एकत्र किए.

ओखला प्लांट के आसपास की हवा-मिट्टी हुई जहरीली

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जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और आईआईटी-दिल्ली के विशेषज्ञों की मदद से इन सैंपल्स का विश्लेषण किया गया, जिसमें खतरनाक रूप से उच्च स्तर की भारी धातुएं और प्रदूषक पाए गए. कैडमियम का स्तर स्वीकार्य सीमा से 19 गुना, मैंगनीज का 11 गुना, आर्सेनिक का 10 गुना, लेड (सीसा) का चार गुना और कोबाल्ट का तीन गुना दर्ज किया गया. लंबे समय तक इन धातुओं के संपर्क में रहने से इंसान को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें सांस संबंधी बीमारियों से लेकर कैंसर, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर और गर्भ संबंधी समस्याएं शामिल हैं.

सरकारी रिपोर्टों में भी ओखला संयंत्र से कानूनी सीमा से 10 गुना ज्यादा तक डाइऑक्सिन उत्सर्जन की बात कही गई है और NYT के निष्कर्ष भी उसी के अनुरूप हैं. डाइऑक्सिन अपनी अत्यधिक विषाक्तता (जहरीलापन) के लिए जाना जाता है और एजेंट ऑरेंज (खरपतवारनाशक रसायन) का एक प्रमुख घटक है. बता दें कि वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सेना द्वारा एजेंट ऑरेंज डिफोलिएंट (एक रसायन जो पेड़-पौधों से पत्तियां हटा देता है) का उपयोग किया गया था.  

लोगों को हो रहीं सांस, त्वचा और फेफड़े की बीमारियां

ओखला प्लांट के आसपास रहने वाले लोग सांस संबंधी बीमारियों, त्वचा पर फोड़े और काले कफ की समस्या से पीड़ित हो रहे हैं. संयंत्र में काम करने वालों के साथ बातचीत में NYT ने पाया कि कथित तौर पर लागत बचाने के लिए उन्हें बुनियादी सुरक्षा उपायों से वंचित रखा गया है. इस बीच, जिंदल समूह ने कथित तौर पर इस संयंत्र के संचालन से कार्बन क्रेडिट (एक तरह का वर्चुअल सर्टिफिकेट जो यह बताता है कि उक्त कंपनी का प्रदूषण में निम्नतम योगदान है) अर्जित करना जारी रखा है, और नए गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट हासिल करके अपने वेस्ट मैनेजमेंट एम्पायर का विस्तार किया है. 

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