दिल्ली की राजनीति में MCD (म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ दिल्ली) और मुख्यमंत्री (CM) की कुर्सी के बीच एक दिलचस्प संबंध रहा है. यहां एक ऐसी परंपरा रही है कि अक्सर जिस पार्टी का MCD पर नियंत्रण होता है, उसका मुख्यमंत्री पद पर अमूमन कब्जा नहीं रहता है. यह ट्रेंड दिल्ली की जनता के वोटिंग पैटर्न और राजनीतिक गतिशीलता को दर्शाता है.
सबसे ताजा उदाहरण तो हमें 2022 मिलता है. जब आम आदमी पार्टी ने 15 साल से MCD की सत्ता पर काबिज बीजेपी को हटाकर दिल्ली नगर निगम की कुर्सी पर कब्जा किया था.
लेकिन 2025 में जब दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ तो एक बार फिर से पुराना ट्रेंड सच साबित हुआ. MCD की कुर्सी पर रही आम आदमी पार्टी चुनाव हार गई और MCD में विपक्ष में रही बीजेपी दिल्ली चुनाव में सत्ताधारी पार्टी बन गई.
2022 के MCD चुनाव में आम आदमी पार्टी 134 सीटें जीती थी. बीजेपी के खाते में 104 सीटें आई. कांग्रेस को 9 सीटों पर सफलता मिली थी. जबकि अन्य दल 3 सीट जीत पाए थे.
बता दें कि दिल्ली की सत्ता के तीन पावर सेंटर्स हैं. ये सेंटर हैं दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और MCD. MCD सत्ता का आखिरी पायदान है. MCD के पार्षद भी जनता द्वारा चुने जाते हैं इसलिए इस चुनाव का भी काफी महत्व है.
2022 में जब आम आदमी पार्टी MCD में सत्ता में आई थी तो इसने MCD में बीजेपी के सालों से चले आ रहे प्रभुत्व को खत्म किया था.
2022 से पीछे चलें तो 2015 से 2025 तक लगातार दिल्ली की सत्ता पर आम आदमी पार्टी काबिज रही.
2017 से 2022 तक दिल्ली की सत्ता पर आम आदमी पार्टी काबिज थी. लेकिन दिल्ली नगर निगम पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा था.
2011 में दिल्ली नगर निगम को कांग्रेस सरकार ने 3 भांगो में बांट दिया था. ये फैसला 2012 में लागू हुआ. 2012 में दिल्ली नगर के चुनाव में बीजेपी सत्ता में आई लेकिन 2013 और 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार गई. इन दोनों ही चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सत्ता हासिल की थी.
2007 से लेकर 2012 तक भी दिल्ली नगर निगम की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी काबिज थी, लेकिन दिल्ली विधानसभा के चुनाव में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा.
2008 में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की शीला दीक्षित ने 43 सीटें जीतकर सत्ता में तीसरी बार धमाकेदार वापसी की थी.