दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 48 सीटों पर जीत का दावा कर रही थी. 11 फरवरी को जब चुनाव परिणाम आए, तब बीजेपी महज 8 सीटों पर सिमट गई. 2015 में महज 3 सीटों पर सिमटने वाली बीजेपी ने अपने प्रदर्शन में सुधार जरूर किया, लेकिन महज सात महीने पहले आम चुनाव के प्रदर्शन को बरकरार रखने में विफल रही.
बीजेपी को 8 में से सबसे ज्यादा 6 सीटें यमुना पार से हासिल हुईं, जबकि 2 सीटें उत्तर पश्चिमी दिल्ली से. वैसे तो दिल्ली में बीजेपी की हार के कई कारण हैं, जिसमें केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी का कोई नेता न उतारना भी शामिल है. इन सबके अलावा एक कारण सभी सांसदों और प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मनोज तिवारी का फेल होना भी रहा.
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दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी की बात करें तो उनकी संसदीय सीट उत्तर पूर्वी लोकसभा से साल 2015 में बीजेपी महज एक सीट पर सिमट गई थी. इस बार पार्टी ने तीन सीटें जीती हैं लेकिन पूर्वांचली वोटों की बात करें, तो पूर्वांचलियों ने भी मनोज तिवारी को नकार दिया है.
बीजेपी ने 10 विधानसभा सीटों में से जो 3 सीटें रोहतास नगर, करावल नगर और घोंडा की सीट जीती हैं, वहां पार्टी ने मनोज तिवारी की पसंद को दरकिनार कर टिकट दिए थे. जिन नेताओं को मनोज तिवारी ने टिकट दिलवाया, उन सभी को करारी शिकस्त मिली है.
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गौतम गंभीर के निर्वाचन क्षेत्र पूर्वी दिल्ली की कुल 10 में से एक मात्र विश्वास नगर सीट ही बीजेपी 2015 के चुनाव में जीत पाई थी. बीजेपी ने इस बार 3 सीटें लक्ष्मीनगर, विश्वास नगर और गांधीनगर सीट जीती है. लक्ष्मीनगर सीट से जीते अभय वर्मा भी मनोज तिवारी की पसंद के नहीं थे. गौतम गंभीर के पास अनुभव की कमी का असर भी चुनाव परिणाम पर देखने को मिला.
मीनाक्षी लेखी, डॉक्टर हर्षवर्धन के क्षेत्र में नहीं खुला खाता
नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से सांसद मीनाक्षी लेखी के क्षेत्र में बीजेपी का खाता भी नहीं खुल सका. कुल 10 में से एक भी सीट पार्टी को न तो 2015 में नसीब हुई थी, ना ही 2020 में ही मिली. पंजाबी होने के बावजूद लेखी अपने समुदाय का वोट बीजेपी को नहीं दिलवा पाईं.
वहीं केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन के संसदीय क्षेत्र चांदनी चौक में भी यही तस्वीर है. बीजेपी की घोषणा पत्र कमेटी के चेयरमैन रहे हर्षवर्धन ने 250 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा शामिल करने की नेताओं की सलाह दरकिनार कर दी थी. वैश्य (बनिया) बिरादरी से आने वाले हर्षवर्धन के निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी ने 2015 का प्रदर्शन दोहराया.
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रमेश बिधुड़ी के निर्वाचन क्षेत्र दक्षिणी दिल्ली में भी बीजेपी शून्य पर रही. बिधुड़ी ने जिस सीट का प्रतिनिधित्व किया, उसी तुगलकाबाद सीट पर उनके भतीजे को लगातार दूसरी बार करारी शिकस्त मिली. 2015 के चुनाव में भी बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. हंस राज हंस की संसदीय सीट उत्तर पश्चिम की 10 में से 2 सीटें बीजेपी की झोली में आईं. रोहिणी सीट से विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे विजेंद्र गुप्ता एक बार फिर जीत हासिल करने में सफल रहे.
भारी पड़ी परवेश वर्मा की बयानबाजी
पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे परवेश शर्मा के संसदीय क्षेत्र पश्चिम दिल्ली में भी बीजेपी का खाता नहीं खुला. परवेश की अनर्गल बयानबाजी और इसके कारण गए नकारात्मक राजनीति के संदेश ने पार्टी की लुटिया डूबो दी. परवेश ने शाहीन बाग से लेकर पाकिस्तान तक का राग अलापा. यहां तक कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अतंकवादी भी कह दिया, ये बयान पार्टी को भारी पड़े. परवेश के चाचा मास्टर आजाद सिंह भी चुनाव हार गए. दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम देखने के बाद ऐसा कहा जाने लगा है कि दिल्ली की सातो सीटें बीजेपी पीएम मोदी के नाम पर जीत गई.