रोशनी का पर्व दिवाली रविवार को मनाया गया. शाम होते ही आतिशबाजी भी शुरू हो गई, लेकिन दिवाली की रात में दिल्ली की आबो हवा में जहर घुल गया. बारूद और धुएं से मरीजों, बच्चों और बुजुर्गों को खासी परेशानी हुई. दिवाली पर कल दिल्ली गैस चैम्बर में तब्दील हो गई. पंजाबी बाग, मंदिर मार्ग, आरके पुरम जैसी जगहों पर एयर क्वालिटी रात के वक्त तो कई हजार गुना खराब हो गई थी.
'आज तक' ने दिवाली पर दिल्ली में बढ़े प्रदूषण का पता लगाने के लिए सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉय चौधरी बात की. इस दौरान हमने उनसे जाना कि दिवाली के पटाखों ने पर्यावरण का कितना नुकसान किया.
अनुमिता ने बताया कि दिल्ली की बहुत खराब हालत है. अगर दिवाली के दिनभर के आंकड़े देखें, तो प्रदूषण रात के वक्त बहुत ज्यादा था. पटाखों से जो केमिकल निकलते हैं, वो हवा में 20 घंटे तक रहते हैं. हम सब उसके एक्सपोज़र में हैं. 20 घंटे के बाद ये जमीन, पानी, सब्जियों, घास, फसलों पर आ जाते हैं. जो खाने-पीने और सांस के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है.
उन्होंने बताया कि इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में गाइडलाइन दी है, लेकिन कोई उनका पालन नहीं करता. पटाखे कहां जलाने हैं, कब तक जला सकते हैं, पटाखों की सेल कैसे करनी है, इसमें केमिकल कॉम्बिनेशन क्या होनी चाहिए? गाइडलाइन में इन सबका जिक्र है. लेकिन, सरकार कैसा कुछ नहीं कर पाई है कि सख्ती से ये लागू हो सके.
अनुमिता ने बताया कि हम चाइनीज पटाखों को बैन करने की बात करते हैं, लेकिन चाइनीज खुद क्या कर रहे हैं, ये हम नहीं देख रहे. ऐसे वक्त में वो उन गाड़ियों की संख्या कम कर देते हैं, जिसमें ज्यादा धुआं निकलता है. इंडस्ट्रियल यूनिट्स को बंद कर देते है. ऑड-इवन शुरू कर देते हैं. ये सिर्फ चीन ही नहीं, यूरोपियन देशों में भी लागू है. हमारे यहां भी इसकी शुरुआत होनी चाहिए.
सीएसआई डायरेक्टर सुनीता नारायण ने कहा, हम सब जानते है कि बच्चे और बुजुर्गों के लिए ये कितना हानिकारक है. सरकार की जो जिम्मेदारी थी वो सरकार ने पूरी नहीं की. सरकार जब कुछ नहीं करना चाहती तो हम तो कुछ करें. उन्होंने कहा कि पटाके कुछ कम जलाए जाते तो आज हवा इतनी जहरीली नहीं होती.
मैं ये कह कहकर तंग आ चुकी हुं कि सरकार को सख्त होना पड़ेगा. दिल्ली में खाली भगवान भरोसे प्रदुषण कम नहीं होगा. सरकार के हाथ बधे हुए नहीं हैं उसमें इत्चाशक्ति की कमी है. लोगों को ही आगे आना होगा कि साफ हवा का उनका अधिकार है. तभी कुछ हो सकता है.