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तीन तलाक के खात्मे पर क्या कहती हैं दिल्ली की लड़कियां...

मंगलवार को तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद जहां कुछ लोगों ने दिल खोल कर इसका स्वागत किया है. तो वहीं कुछ इस फैसले से नाखुश भी हैं. देश की राजधानी के युवा इस फैसले को एक अच्छी पहल मानते हैं. दिल्ली के मशहूर जाकिर हुसैन कॉलेज की लड़कियों ने महिला शशक्तिकरण के दिशा में इसे एक बेहद सकारात्मक कदम मानती हैं

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तीन तलाक
तीन तलाक

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मंगलवार को तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद जहां कुछ लोगों ने दिल खोल कर इसका स्वागत किया है. तो वहीं कुछ इस फैसले से नाखुश भी हैं. देश की राजधानी के युवा इस फैसले को एक अच्छी पहल मानते हैं. दिल्ली के मशहूर जाकिर हुसैन कॉलेज की लड़कियों ने महिला शशक्तिकरण के दिशा में इसे एक बेहद सकारात्मक कदम मानती हैं

फर्स्ट ईयर में पड़ने वाली नुसरत के चेहरे पर इस फैसले की खुशी साफ-साफ दिखती है. वो कहती हैं कि इस फैसले से उन्हें बहुत खुशी मिली है. उनकी चचेरी बहन को सात साल पहले एक दिन अचानक उनके पति ने तलाक देकर घर से निकाल दिया था. उनके दो बच्चे भी हैं. छोटी बेटी तब सिर्फ तीन महीने की थी. इस फैसले से भले ही उनकी जिंदगी न बदले लेकिन उनका दुख जरूर थोड़ा कम होगा. कम से कम दूसरो के साथ ऐसा नहीं होगा.

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इसी कॉलेज की फरहीन ने भी इस फैसले पर राहत की सांस ली. वह कहती हैं कि उनके कॉलेज जॉइन करने के पहले दिन से ही शादी का दबाव बन रहा है. दूसरो की कहानियां सुन कर उन्हें डर भी लगता था. उन्होंने तीन तलाक से बर्बाद होती जिंदगियां भी देखी हैं. वह अंत में कहती हैं कि इस फैसले के बाद अब वह बिना डर के शादी कर सकती हैं.

मेहरौली की रहने वाली दो बच्चों की माँ हिना (35) इस फैसले के बाद रो पड़ीं. अपनी मायूस आंखों में हल्की सी चमक के साथ उन्होंने कहा कि अभी 6 महीने पहले उनके पति ने दूसरी शादी कर ली और उन्हें मौलवी के सामने तीन तलाक दे कर घर से निकाल दिया. वह कहती हैं कि अगर यह फैसला उस वक्त आया होता तो उनकी जिंदगी कुछ और होती. उनके दोनों बेटे अभी छोटे हैं और उन्हें बस उनके सहारे ही रहना है.

दिल्ली के युवाओ में खास तौर पर मुस्लिम लड़कियों में इस फैसले के बाद एक जोश की लहर है. समान अधिकार पाने की लड़ाई में वो इस फैसले को एक अहम कदम मानती हैं. शादी जैसे पवित्र रिश्ते को महज तीन शब्दो के दबाव के चलते नहीं जिया जा सकता. हालांकि कुछ लड़कियों ने इसे मजहबी मामला बताते हुए दूसरों को इसमें दखल देने को गलत ठहराया लेकिन उमंग और उम्मीद से भरी सकारात्मक आवाजों के नीचे ऐसे कुछ आवाजें कहीं दब गईं.

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