दिल्ली नगर निगम (MCD) में उपराज्यपाल द्वारा नियुक्त किए एल्डरमैन (मनोनीत पार्षद) को लेकर दिल्ली सरकार और एलजी एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं. अब दिल्ली सरकार ने LG द्वारा चुने गए एल्डरमैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है. केजरीवाल सरकार ने एल्डरमैन की नियुक्ति को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है. सुप्रीम कोर्ट 24 मार्च को एल्डरमैन की नियुक्ति को चुनौती देने वाली इस अर्जी पर सुनवाई करेगा. दरअसल दिल्ली में पहली बार LG ने MCD में एल्डरमैन अपनी मर्जी से नियुक्त किए हैं. इससे पहले अब तक दिल्ली सरकार एल्डरमैन का चयन करती थी.
आप का आरोप
एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर आम आदमी पार्टी उप राज्यपाल वीके सक्सेना पर फ्रॉड करने का आरोप लगा चुकी है. तब पार्टी नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा था कि एलजी ने गैर क़ानूनी तरीके से निगम प्रशासन का अनुभव रखने वाले विशेषज्ञ की बजाए भाजपा कार्यकर्ताओं को एल्डरमैन बनाया. उन्होंने कहा कि संविधान का आर्टिकल 243R कहता है कि एल्डरमैन वो लोग होंगे जिन्हें निगम प्रशासन का ख़ास अनुभव होगा, विशेषज्ञ हों.
भाजपा का जवाब
दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा है कि नगर निगम में नामांकित एल्डरमैनों के सदन की सदस्यता की शपथ लेने के एक माह बाद अचानक दिल्ली सरकार के द्वारा इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय जाना सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की राजनीतिक हताशा का परिणाम है. भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव का नतीज़ा आने के तीन माह बाद भी आम आदमी पार्टी और उसकी दिल्ली सरकार ना तो चुनाव नतीजे स्वीकार कर पा रही है और ना ही यह स्वीकार कर रही है कि नगर निगम एकीकरण के बाद दिल्ली नगर निगम एक्ट में बदलाव हो गए हैं और अब एक्ट में सरकार शब्द का मतलब दिल्ली सरकार नही केन्द्र सरकार है.
भाजपा का कहना है कि चुनाव नतीजे भी कुछ इस तरह आये हैं जिनके चलते नगर निगम के 12 जोनों में अधिकांश में आम आदमी पार्टी के पास बहुमत नहीं है और उपराज्यपाल महोदय ने परिवर्तित एक्ट अनुसार जो एल्डरमैन नामांकित किये हैं उसके चलते निगम जोनों मे आम आदमी पार्टी का सत्ता समीकरण पूरी तरह बिगड़ गया है, इसलिए हताश आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार किसी भी तरह नामांकित एल्डरमैनों को नगर निगम सदन से बाहर रखना चाहती है.
कौन होते हैं एल्डरमैन
बता दें कि डीएमसी ऐक्ट, 1957 के तहत 10 ऐसे विशेषज्ञ मनोनीत पार्षद के तौर पर चुने जाते हैं, जिनके पास स्पेशल नॉलेज या निगम के प्रशासन का अनुभव हो. इन्हें प्रशासक यानि राज्यपाल की तरफ से मनोनीत किया जाता है. दिल्ली के एलजी ने जिन 10 एल्डरमैन को नॉमिनेट किया था, वे सभी बीजेपी के सदस्य हैं. एल्डरमैन को वो सभी अधिकार होते हैं जो एक पार्षद के पास होते हैं. उन्हें वोटिंग का अधिकार मिलने से मेयर, डेप्युटी मेयर और स्टैंडिंग कमिटी के सदस्यों के चुनाव में काफी हंगामा हुआ था.
स्टैडिंग कमेटी को लेकर है सारी कवायद
एमसीडी चुनाव जीतकर भले ही आम आदमी पार्टी का मेयर बन गया हो लेकिन AAP के लिए असली चुनौती स्टैडिंग कमेटी का चुनाव है जिसमें एल्डरमैन को वोटिंग का अधिकार है.स्टैंडिंग कमिटी दिल्ली नगर निगम की सबसे ताकतवर कमेटी है. दिल्ली नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर के पास फैसले लेने की शक्तियां काफी कम है. उसकी एक बड़ी वजह यह है की लगभग सभी किस्म के आर्थिक और प्रशासनिक फैसले 18 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमिटी ही लेती है और उसके बाद ही उसे आगे सदन में पास करवाने के लिए भेजा जाता है. ऐसे में स्टैंडिंग कमिटी काफी पावरफुल होती है और स्टैंडिंग कमिटी का चेयरमैन एक किस्म से एमसीडी का असली राजनीतिक हेड होता है.
आप के लिए मुश्किलें
आम आदमी पार्टी ने मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव तो आसानी से जीत लिया लेकिन 6 सदस्यों में से अपने 4 उम्मीदवार को जिताने में उसे खासी मुश्किल पेश आने वाली है. एक तो उनके पास इन चार उम्मीदवारों को जिताने के लिए पहले प्रिंस के वोट जरूरत से काफी कम है. दूसरी दिक्कत यह आ रही है कि डिप्टी मेयर के चुनाव में आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर दी है जिससे गणित और मुश्किल हो गया है.